गुणवत्ता-तकनीक भी उन्नत होनी जरूरी
सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी द्वारा भारतीय वायुसेना के लिये स्वदेशी 83 अपग्रेडेड तेजस लड़ाकू विमान खरीद की अनुमति देना निस्संदेह रक्षा उत्पादों में आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़ा कदम है। वैसे भी लंबे समय से भारतीय वायुसेना में आधुनिक लड़ाकू विमानों और रक्षा साजो-सामान की कमी महसूस की जा रही थी। खासकर ऐसे समय में जब चीन व पाक से भारतीय सीमाओं को लगातार चुनौती मिलती रहती है। इस कुल 47 हजार करोड़ के सौदे को गेम-चेंजर बताया जा रहा है। निस्संदेह यह कदम भारतीय एयरोस्पेस उद्योग के लिये आत्मनिर्भर पारिस्थितिकीय तंत्र विकसित करने में प्रेरक की भूमिका निभायेगा। इसके निर्माण और डिजाइन में सूक्ष्म, लघु और मध्यम श्रेणी के कई उद्योग भी भूमिका निभायेंगे। इन सैकड़ों कंपनियों के हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के साथ मिलकर काम करने से देश में रक्षा उत्पादन की कार्य संस्कृति विकसित होगी। बीते वर्ष केंद्र सरकार ने एक सौ एक रक्षा वस्तुओं के आयात पर रोक लगाकर स्वदेशी उत्पादों को प्रोत्साहन देने का फैसला किया था। यह कदम उसी दिशा में लिया फैसला है। इतना ही नहीं, इस क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को 74 फीसदी तक बढ़ाया गया है। निस्संदेह सरकार ने विदेशी रक्षा उत्पादों पर निर्भरता कम करने के दिशा में पहल की है, लेकिन जरूरत इस बात की भी है कि स्वदेशी रक्षा विनिर्माण देश की सुरक्षा जरूरत को उन्नत तकनीक के साथ पूरा करे। दरअसल, रक्षा उत्पादों से जुड़ी तकनीकों में बहुत तेजी से बदलाव होता रहता है क्योंकि युद्धक रणनीतियां तेजी से हाईटैक होती रहती हैं। नये मार्क-1ए तेजस फाइटर में वायुसेना की आधुनिक जरूरतों के हिसाब से बदलाव करने की आवश्यकता होगी। कोशिश होनी चाहिए कि इन युद्धक विमानों की वायुसेना को यथाशीघ्र आपूर्ति हो पाये।
निस्संदेह यह भारत में निर्मित रक्षा उत्पादों का सबसे बड़ा सौदा होगा। जिससे उम्मीद है कि हम दुनिया के दूसरे देशों पर निर्भरता कम कर सकेंगे और दुर्लभ विदेशी मुद्रा की बचत भी कर सकेंगे। अब तक भारत की गिनती दुनिया के सर्वाधिक हथियार खरीदने वाले देशों के रूप में होती रही है। इसके साथ ही देश में रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि होगी। कोशिश हो कि सार्वजनिक क्षेत्र की दिग्गज कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड इसे अपने विस्तार के अवसर के रूप में देखते हुए समय पर लड़ाकू जहाजों की आपूर्ति भारतीय वायुसेना को करे। उसे अपनी उत्पादन क्षमता को बढ़ाने और उसे तेज करने की जरूरत होगी, जिससे देश की आर्थिकी और रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे। विगत में भी देश में रक्षा अनुसंधान के क्षेत्र में अग्रणी संस्था डीआरडीओ ने आकाश मिसाइल, अर्जुन टैंक, टैंकरोधी मिसाइल व ध्रुव हेलीकॉप्टर के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इससे जहां देश की रक्षा उत्पादों के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ी है, वहीं सेना का आत्मविश्वास बढ़ा है। ऐसे हथियार जब हमारी भौगोलिक परिस्थितियों व सेना की जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाये जाते हैं तो सेना को उसका अतिरिक्त लाभ मिलता है। बहुत संभव है कि आने वाले वर्षों में भारत में रक्षा उपकरणों के उत्पादन की ऐसी कार्य संस्कृति विकसित हो सके, जिससे हम हथियारों के आयातक से निर्यातक देशों में शुमार हो जायें। इससे जहां देश की सामरिक शक्ति बढ़ेगी, वहीं हम अपने विकास कार्यों को गति दे पायेंगे। देश में युवा शक्ति की प्रचुरता को देखते हुए हमें कौशल विकास को प्राथमिकता देनी चाहिए। हमारी रक्षा उत्पादों में आत्मनिर्भरता जहां हमारी संप्रुभता की रक्षा में सहायक होगी वहीं हमारी विदेश नीति भी प्रभावशाली रहेगी। खासकर जब हमारा पड़ोसी चीन रक्षा उत्पादों व अत्याधुनिक तकनीकों में पूरी दुनिया को चुनौती दे रहा है। उसके संतुलन के लिये हमें रक्षा उत्पादों में आत्मनिर्भर होना बेहद जरूरी है। कोशिश हो कि हम उन्नत तकनीकों और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में महारथ हासिल करें। आने वाला समय साइबर और सैटेलाइट युद्ध का होगा। इस दिशा में लक्ष्य हासिल करने के लिये सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के साथ ही निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने की भी जरूरत है, जिससे इस क्षेत्र में स्वस्थ स्पर्धा विकसित हो सके।