आखिरकार राजग सरकार ने इस सत्य को स्वीकारा है कि देश में परिवहन व माल ढुलाई के सबसे सुलभ साधन रेलवे के उत्थान के बिना विकास को गति नहीं मिलेगी। तभी बजट में रेलवे के लिये अब तक उच्चतम पूंजी परिव्यय निर्धारित किया गया है। संसद में प्रस्तुत हालिया बजट में अब तक का सर्वाधिक पूंजीगत परिव्यय 2.4 लाख करोड़ रुपये रखा गया है। यह राशि वर्ष 2013-14 के मुकाबले नौ गुनी है। निस्संदेह,यह देश की जीवन रेखा कही जाने वाले रेलवे के विकास -आधुनिकीकरण के लिये शुभ संकेत है। यह अच्छी बात है कि कोविड संक्रमण के दौरान रेलवे जिस बड़े संकट से जूझा है, उससे अब उबरने लगा है। हालांकि, उस दौरान भी प्रवासी श्रमिकों को उनके गांव पहुंचाने व खाद्यान्न आपूर्ति में निर्णायक भूमिका निभाई थी। रेलवे की अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही है, वह इस बात से पता चलता है कि पूरे देश में ‘वंदे भारत ट्रेन’ शृंखला को विस्तार दिया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि वंदे भारत एक्सप्रेस भारत की पहली स्वदेशी सेमी हाई-स्पीड ट्रेन है। जिसका निर्माण चेन्नई स्थित कोच फैक्ट्री द्वारा किया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर यह उत्साहवर्धक है कि देश को अपनी पहली हाइड्रोजन ट्रेन दिसंबर तक मिलने जा रही है। जो आत्मनिर्भर भारत अभियान की नई कामयाबी कही जा सकती है। महत्वपूर्ण यह भी कि अब तक भारत के पिच्चासी फीसदी से अधिक रेलवे नेटवर्क का विद्युतीकरण किया जा चुका है। निश्चित रूप से रेलों के लिये जहां ईंधन में स्वदेशी आत्मनिर्भता जरूरी है, वहीं पर्यावरणीय मुद्दों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। भारत की हरित ऊर्जा की प्राथमिकताओं के प्रति गंभीरता रेलवे के अभियानों में नजर आनी चाहिए। साथ ही रोजगार की प्राथमिकताओं को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
बहरहाल, रेलवे प्रशासन के सामने मौजूद चुनौतियों के मद्देनजर हालिया बजट में वित्तीय संसाधनों की बड़ी वृद्धि इस क्षेत्र में अपार संभावनाओं के द्वार खोलती है। जहां रेलवे एक ओर आम लोगों का सस्ता व सुलभ आवागमन का जरिया है, वहीं करोड़ों लोगों का रोजगार भी इससे प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़ा होता है। राजस्व के मोर्चे पर मिल रहा सकारात्मक प्रतिसाद उम्मीद जगाने वाला है। अच्छी बात यह है कि अप्रैल से दिसंबर 2022 के बीच रेलवे यात्री किराये से विभाग की कुल आय 48,913 करोड़ रुपये हुई है। उल्लेखनीय है कि यह वृद्धि वर्ष 2021 में इसी समान नौ महीने की अवधि के दौरान हुई आय के मुकाबले 71 फीसदी अधिक है। यद्यपि माल ढुलाई राजस्व में भी वृद्धि हुई है, लेकिन यात्री भाड़े के मुकाबले तेजी उसमें नहीं देखी गई। निस्संदेह विभागीय प्रचालन तंत्र की लागत घटाना रेलवे के लिये एक बड़ी चुनौती है, जिसके चलते उसके मुनाफे में कमी आ जाती है। पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी सुझाव दिया था कि देश को बहु-मॉडल परिवहन के साथ एकीकृत दृष्टिकोण अपनाने के बारे में सोचना चाहिए। जिसके अतंर्गत देश के जलमार्ग, राजमार्ग और रेलवे नेटवर्क आपस में जुड़े हों। इन प्रयासों से रेलवे की लागतों को कम करने तथा राजस्व को बढ़ाने में मदद मिल सकती है। जलमार्गों की क्षमता का उपयोग बढ़ाने से माल ढुलाई लागत में कमी लायी जा सकती है। वहीं दूसरी ओर रेलवे का माल ढुलाई का बोझ कम किया जा सकता है। निस्संदेह, यदि ऐसा होता है तो रेलवे को यात्री सुविधाओं के विस्तार के लिये अधिक ऊर्जा व धन मिलना संभव हो पायेगा। इस दिशा में गंभीरता से विचार किया जाना जरूरी है। देश में करोड़ों लोग प्रतिदिन ट्रेनों का उपयोग करते हैं। इसके मद्देनजर यात्रियों की संतुष्टि रेलवे की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। यह अच्छी बात है कि पूरे देश में ‘अमृत भारत स्टेशन’ योजना के तहत 1275 रेलवे स्टेशनों को नये सिरे से विकसित किया जा रहा है। अब चाहे देश में स्वचालित ट्रेन सुरक्षा प्रणाली हो या रेल परिवहन को दुर्घटना मुक्त बनाने के प्रयास, इस दिशा में गंभीरता से कार्य करने की जरूरत है। हाई स्पीड ट्रेन चलाने से ज्यादा जरूरी यह है कि यात्रियों को सुरक्षित सफर का भरोसा मिले।