इंडोनेशिया के बाली में जी-20 सम्मेलन के दौरान चीन के विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात में एलएसी पर चीनी अतिक्रमण खत्म करने का विदेश मंत्री एस जयशंकर का दबाव कितना रंग लाता है, कहना जल्दबाजी होगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि जी-20 सम्मेलन के दौरान वास्तविक नियंत्रण से जुड़े विवाद पर विमर्श की पहल निश्चय ही सकारात्मक वातावरण बनाने में सहायक होगी। कहा जा रहा है कि एलएसी से जुड़े कई इलाकों से सेना की वापसी के लिये भारत ने चीन पर दबाव बनाया है। साथ ही दोनों विदेश मंत्रियों की बातचीत में स्वीकारा गया कि दि्वपक्षीय संबंध संवेदनशीलता और आपसी हितों पर आधारित ही होने चाहिए। ऐसे में उम्मीद जगी है कि विदेश मंत्रियों की मुलाकात के बाद लद्दाख सीमा विवाद सुलझाने की दिशा में सैन्य वार्ताओं के अगले दौर का मार्ग प्रशस्त हो सकेगा। निस्संदेह, बातचीत के जरिये सीमा विवाद से जुड़े सभी मुद्दों का समाधान निकाला जाना चाहिए। जो अब तक हुए दि्वपक्षीय समझौतों के आलोक में आगे बढ़ने की राह प्रशस्त करे। साथ ही अब तक जिन मुद्दों पर सहमति बनी थी, अब उससे आगे बढ़ा जाये। इस बात को चीन भी स्वीकारता है कि एलएसी पर शांति स्थापित करने में दोनों देश सक्षम हैं, दोनों में इसको लेकर इच्छा भी है। साथ ही यह भी कि किसी तीसरे पक्ष द्वारा इसमें दखल की कोई गुंजाइश भी नहीं है। बहरहाल, चीन को एक स्पष्ट संकेत तो भारत की ओर से मिल ही गया कि लद्दाख में पूर्व स्थिति बहाल किये बिना दोनों देशों के संबंध सामान्य नहीं हो सकते। जरूरत इस बात की भी है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा से जुड़े तमाम विवादों का यथाशीघ्र समाधान निकाला जाये। इसके लिये सैन्य कमांडरों की वार्ता से इतर विदेश मंत्रालय के स्तर पर वार्ता का दौर जारी रहना चाहिए। उल्लेखनीय है कि इस साल चीनी विदेश मंत्री वांग यी से विदेश मंत्री एस जयशंकर की यह दूसरी मुलाकात है। पहली मुलाकात मार्च 2022 में तब हुई थी जब वांग यी भारत के दौरे पर आये थे।
बहरहाल, देश के नेतृत्व को वास्तविक नियंत्रण रेखा से जुड़े तमाम विवादों की वास्तविकता से जनमानस को अवगत करना चाहिए। विदेशी सूचना माध्यमों में तथा देश के विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा गाहे-बगाहे एलएसी में चीनी अतिक्रमण का मुद्दा उठाया जाता रहा है। खासकर विपक्षी कांग्रेस एलएसी के मुद्दे पर खासी आक्रामक रही है और राजग सरकार पर सीमाओं को अक्षुण्ण बनाये रखने में विफल होने के आरोप लगाती रही है। अब तक देश का केंद्रीय नेतृत्व कहता रहा है कि चीनी सेना ने भारतीय इलाकों का कोई अतिक्रमण नहीं किया है। विपक्ष द्वारा कहा जाता रहा है कि देश के जनमानस को वास्तविकता का भान होना चाहिए। विपक्षी नेता सवाल पूछते रहे हैं कि यदि अतिक्रमण नहीं हुआ है तो वार्ता का आधार क्या है? निस्संदेह, स्थिति की वास्तविकता का भान न होने से संशय की आशंका रहती है। विडंबना यह भी है कि आजादी के बाद चीन से लगी सीमा का ठीक-ठीक अंकन नहीं हो सका है। दूसरे, यह इलाका भौगोलिक रूप से इतना जटिल है कि स्थायी सीमांकन के मानकों का पालन करना मुश्किल हो जाता है। निस्संदेह, साम्राज्यवादी चीन निरंतर जमीन हड़पने की नीति का अनुसरण करता आया है। हम 1962 का जख्म नहीं भूले हैं। भारत ही नहीं, चीन का दर्जनभर पड़ोसियों से सीमा विवाद जारी है। आर्थिक व सैन्य ताकत हासिल करके चीन विश्व की नंबर एक शक्ति बनने का ख्वाब देखता रहता है। इसी ताकत के नशे में अपने पड़ोसी देशों में अतिक्रमण करके अपने साम्राज्यवादी मंसूबों का पोषण करता है। बहरहाल, एलएसी पर शांति बहाली के लिए जरूरी है कि लंबित मुद्दों का निस्तारण यथाशीघ्र हो। साथ ही दोनों देशों में बातचीत का क्रम जारी रहना चाहिए। जिसके लिये जरूरी है कि पूर्व में हुई सहमतियों पर आगे बढ़ते हुए दि्वपक्षीय समझौतों व प्रोटोकॉल को लागू किया जाये। निस्संदेह बातचीत का यह क्रम तो जारी रहना ही चाहिए। चीन का कारोबार व वार साथ-साथ नहीं चल सकता।