बाजार की उछाल आर्थिकी में भी नजर आये
बीते बृहस्पतिवार का दिन बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हुआ। तकरीबन डेढ़ सदी के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि इसके संवेदी सूचकांक ने पचास हजार के मनोवैज्ञानिक स्तर को छू लिया। यद्यपि दिन के अंत में कुछ गिरावट भी दर्ज की गई। दलाल स्ट्रीट ने इस ऊंचाई का जश्न भी मनाया लेकिन एक आम आदमी को यह सवाल जरूर कचोटता है कि शेयर बाजार कुलांचे भर रहा है और अर्थव्यवस्था कोरोना संकट से लड़खड़ाने के बाद चलनी ही शुरू हुई है। अर्थव्यवस्था का सिमटना और बाजार का उछाल लेना उसे तार्किक नजर नहीं आता। मार्च में लॉकडाउन लगने के बाद बाजार में तेज गिरावट और तेज उछाल आम आदमी को असमंजस में डालती है। इसके बावजूद यह हकीकत है कि बीते दस महीने में शेयर बाजार के सूचकांक में दुगनी वृद्धि हुई है और बीते साल शेयर बाजार के निवेशकों ने पंद्रह फीसदी का लाभ लिया। जाहिर है कोरोना संकट के दौर में किसी अन्य क्षेत्र में शायद ही निवेश का ऐसा प्रतिफल मिला हो। लेकिन इसके बावजूद सवाल वही है कि शेयर बाजार अर्थव्यवस्था का आईना क्यों नहीं है। ऐसा नहीं है कि ऐसा भारत में ही हो रहा है। यह वैश्विक रुझान है और अमेरिका समेत कुछ अन्य देशों की अर्थव्यवस्था में भी ऐसा ही रुझान देखने को मिल रहा है। कुछ अर्थशास्त्री बताते हैं कि अर्थव्यवस्था के संकुचन के बावजूद शेयर बाजार में उछाल के मूल में बाजार में नकदी की तरलता का अधिक होना है। दरअसल, एक हकीकत यह भी है कि बाजार अर्थव्यवस्था को भविष्य के नजरिये से देखता है। निवेशक की नजर भविष्य में अर्थव्यवस्था के रुझान पर होती है। वहीं आम आदमी की नजर अर्थव्यवस्था में उत्पादन और रोजगार की स्थिति पर होती है। दरअसल, शेयर बाजार की तुलना कार चलाने से की जाती है, जिसमें चालक की नजर दूर से आने वाले वाहन पर होती है। वह यह नहीं देख पाता कि सड़क में कहां गड्ढे हैं।
वास्तव में विश्वव्यापी शेयर बाजार में उछाल के तात्कालिक कारण भी रहे हैं। हाल ही में अमेरिका में चुनाव के बाद जो बाइडेन के सत्ता संभालने के बाद विश्वास बढ़ा कि विदेश नीति बेहतर होने से अब शांति कायम होगी। दूसरे, बाइडेन ने 19 खरब डालर के राहत पैकेज की घोषणा की है, जिससे बाजार संवेदनशील हुआ है। राहत पैकेज से डॉलर कमजोर होगा, जिसका लाभ उभरती अर्थव्यवस्थाओं को होगा। ऊंची ब्याज दर निवेशकों को भारत खींच लाती है। एक अन्य कारण यह भी कि कोरोना संकट के बाद ग्लोबल सेंट्रल बैंक ने बड़ी मात्रा में वैश्विक अर्थव्यवस्था में पैसा डाला, जिसका लाभ भारतीय शेयर बाजार को भी मिला। वहीं बड़ी अर्थव्यवस्थाएं महामारी से निपटने के लिये आर्थिक पैकेज दे रही हैं, जिससे बाजार में तरलता आने से शेयर बाजार में रौनक आई है। एक महत्वपूर्ण घटक यह भी है कि कोरोना संकट के दौरान वैश्विक शेयर बाजार से जुड़ी ऐसी कंपनियों में बहार आई जो अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधि चेहरा नहीं हैं। उनकी आय अन्य सैकड़ों कंपनियों के बराबर रही। भारत के संदर्भ में देखें तो अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने की उम्मीद में शेयर बाजार में उछाल है। दूसरे सरकार द्वारा जो संरचनात्मक सुधार किये थे, उसका असर अब अर्थव्यवस्था पर दिखायी देने लगा है। वहीं बीते दस महीने में स्टॉक मार्केट में एक करोड़ नये खाते खोला जाना बता रहा है कि नयी पीढ़ी शेयर बाजार को बेहतर निवेश विकल्प के रूप देख रही है। वह प्रॉपर्टी व बैंकों में निवेश करने के बजाय तेज लाभ की राह शेयर बाजार में देख रही है। वहीं अब नये बजट की उम्मीदों ने बाजार की संवेदनशीलता को बढ़ाया है। बाजार को भरोसा है कि सरकार कमजोर क्षेत्रों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में ज्यादा पैसा डालेगी, जिससे आर्थिकी में सकारात्मक बदलाव नजर आयेगा। निस्संदेह शेयर बाजार मुनाफे की आकांक्षा और आशंकाओं से गहरे तक प्रभावित होता है। यही वजह है कि वैश्विक शेयर बाजार में शुक्रवार को आई गिरावट ने भारतीय शेयर बाजार को भी झटका दिया।