क तर में खेले जा रहे फीफा फुटबॉल वर्ल्ड कप में इंग्लैंड के विरुद्ध एक मैच में ईरानी खिलाड़ियों ने अपना राष्ट्रगान गाने से इनकार करके अपने देश में जारी महिला अधिकारों के आंदोलन की ओर दुनिया का ध्यान खींचा है। इस इस्लामिक गणतंत्र में सख्त ड्रेस कोड के मामूली उल्लंघन के चलते एक युवती को दी गई यातना से हुई मौत के बाद पूरा ईरान आंदोलनों से उबल रहा है। लोग सड़कों पर उतर रहे हैं और ‘वुमन, लाइफ, फ्रीडम’ के नारे लगा रहे हैं। मानवाधिकार कार्यकर्ता आरोप लगा रहे हैं कि आंदोलन के दमन के लिये शासन-प्रशासन निर्दोष लोगों को मार रहा है। आरोप है कि इस आंदोलन में अब तक बड़ी संख्या में लोग मारे जा चुके हैं, जिसमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं। पूरी दुनिया में ईरानी महिलाएं और उनके समर्थन में जुटे लोग ईरान की निरंकुशता का पुरजोर विरोध कर रहे हैं। वे पिछले दो महीनों में हिजाब विरोधी प्रदर्शनों के दमन के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दबाव बनाने का प्रयास कर रहे हैं। दरअसल, आक्रोश के लावे पर बैठे ईरान में 16 सितंबर को बाईस वर्षीय महसा आमिनी की मौत के बाद स्थिति बेहद खराब हो गई। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का आरोप है कि सुरक्षाबलों के साथ टकराव में जहां चार सौ के करीब लोग मारे गये हैं, वहीं करीब सत्रह हजार लोगों को गिरफ्तार किया गया है। दूसरी ओर ईरानी सत्ताधीश इस आंदोलन को पश्चिमी देशों की मदद से चलने वाले राष्ट्रविरोधी आंदोलन बता रहे हैं। दरअसल, ईरान में फुटबॉल बेहद लोकप्रिय खेल है, लेकिन उसका राजनीतिक पक्ष भी है। एशिया का माराडोना कहे जाने वाले अली करीमी इस्लामिक गणतंत्र के कटु आलोचक रहे हैं। दरअसल, ईरान में महिला अधिकारों के समर्थक विश्वकप से पहले फुटब़ॉल टीम के खिलाड़ियों के ईरानी राष्ट्रपति से मिलने की आलोचना करते रहे हैं। वे चाहते थे कि इस अंतर्राष्ट्रीय आयोजन के बहाने दुनिया में ईरान के हालात को उजागर किया जाये।
बहरहाल, कतर में फुटबॉल विश्वकप के आयोजन स्थलों को ईरानी सत्ता विरोधी लोग विरोध के मंच में तब्दील करने की कोशिश में रहे हैं। दुनिया के मीडिया का ध्यान खींचने का कोई मौका ये लोग हाथ से नहीं जाने देना चाहते। आंदोलन के दौरान मारे गये लोगों की तस्वीरें लिए ये लोग ईरानी शासकों के खिलाफ प्रतिरोध के सुर मुखर कर रहे हैं। यही वजह है कि इंग्लैंड से हुए मुकाबले से पूर्व ईरानी फुटबॉल टीम के कप्तान ने कहा था कि खिलाड़ी ईरान के उन लोगों के समर्थन में खड़े हैं, जिन्होंने आंदोलन के दौरान जीवन गंवाया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि विषम हालात से लोग नाखुश हैं। हम आंदोलन के प्रति संवेदना जताते हुए विरोध करने वाले लोगों के पक्ष में खड़े हैं। यही वजह है ईरानी खेलप्रेमी अपने खिलाड़ियों का हौसला बढ़ाने के लिये जोर-शोर से जुटे हैं। इसके साथ ही ईरानी खिलाड़ियों को आयोजकों ने चेताया है कि वे तभी तक ईरान की महिलाओं के समर्थन में खड़े रह सकते हैं जब तक उनकी गतिविधि आयोजन व खेल की भावना का अतिक्रमण न करती हो। ऐसे में भले ही ईरान के खिलाड़ियों द्वारा राष्ट्रगान न गाने के निहितार्थ प्रतीकात्मक ही हों, लेकिन इस घटना ने पूरी दुनिया का ध्यान जरूर खींचा है। यही सोच ईरानी आंदोलनकारियों की भी थी कि फीफा के इस बड़े मंच से ईरान में जारी दमन की तस्वीर पूरी दुनिया के सामने आ सके। दूसरी ओर ईरान सरकार इस बात पर जोर दे रही थी कि खिलाड़ी वैश्विक मंच पर ईरानी सत्ता का प्रतिनिधि चेहरा बनें। आशंका जतायी जा रही है कि खिलाड़ियों को देश लौटने पर इस कोशिश के परिणाम भी भुगतने पड़ सकते हैं। उनके परिवारों को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। इसकी वजह यह भी कि राजनीतिक प्रभाव वाली ईरान फुटबॉल फेडरेशन के शीर्ष सत्ता से जुड़े रिवॉल्यूशनरी गार्ड से करीबी रिश्ते रहे हैं। बहरहाल, उम्मीद की जानी चाहिए कि ईरानी सत्ता प्रतिष्ठान समस्या के समाधान के लिये संवेदनशील रवैया अपनाएंगे।