पिछले दिनों बेमौसमी बारिश से खराब हुई फसलों के चलते किसानों के माथे पर जो चिंता की लकीरें थीं, वे केंद्र सरकार के हालिया फैसले से कुछ कम जरूर हुई हैं। हरियाणा सरकार ने बारिश से फसलों की गुणवत्ता में आई गिरावट की जानकारी केंद्र सरकार को दी थी और खरीद के निर्धारित मानकों में छूट देने का आग्रह किया था। जिसके चलते केंद्र सरकार ने समस्या की जटिलता को देखते हुए किसानों को तत्काल राहत देने का फैसला किया है। जिसके बाद हरियाणा में गेहूं की खरीद शर्तों में ढील देते हुए घोषणा की गई है कि राज्य में अस्सी फीसदी तक लस्टर लॉस वाली गेहूं की फसल की खरीद सरकारी एजेंसियां कर सकेंगी। इसके अलावा 18 फीसदी तक सिकुड़े-टूटे गेहूं की भी खरीद की जाएगी। जिसके चलते अब गेहूं खरीद में लगे विभागीय अधिकारियों को नये नियमों के अनुसार खरीद के आदेश जारी कर दिये गये हैं। साथ ही अधिकारियों को निर्देश दिये गये हैं कि हर मंडी में सुचारु खरीद की व्यवस्था सुनिश्चित की जाये। उल्लेखनीय है कि राज्य में इस साल 22.9 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में गेहूं की फसल बोई गई थी। राज्य में हर साल प्रति हेक्टेयर औसतन पैंतालीस से पचास क्विंटल गेहूं की पैदावार होती आई है। आशंका जतायी जा रही है कि बेमौसम बारिश से इस बार फसल में पांच से सात क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार घट सकती है। ऐसे में किसानों को होने वाले नुकसान को कम करने के मकसद से ही खरीद नियमों में बदलाव करके राहत देने का प्रयास किया गया। उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार पहले ही विधानसभा सत्र के दौरान किसानों की फसल को हुए नुकसान का आकलन करने के लिये विशेष गिरदावरी करवाने का भरोसा दे चुकी है। जिसका मकसद यही था कि समय रहते किसानों को हुए नुकसान का आकलन किया जा सके तथा राहत राशि देकर उनका कष्ट कम किया जा सके।
दरअसल, सरकारी आकलन के जरिये बेमौसमी बारिश व ओलावृष्टि से हुए नुकसान का जो आंकड़ा सामने आया है उसके अनुसार करीब सोलह लाख एकड़ फसल को नुकसान पहुंचा है। यही वजह है कि एक अप्रैल से गेहूं खरीद की प्रक्रिया शुरू किये जाने के बावजूद ज्यादा अनाज की आवक मंडियों में नहीं हो पायी है। जिसके चलते खरीद प्रक्रिया में तेजी लाने के आश्वासन किसानों को दिये गये हैं। किसानों का मनोबल बढ़ाने के लिये राज्य के डिप्टी सीएम ने कहा है कि मंडी पहुंचने वाले एक-एक दाने की खरीद सरकार करेगी। साथ ही किसानों की खराब हुई फसल का मुआवजा भी तय कर दिया गया है। सरकार घोषणा कर चुकी है कि यदि किसान की फसल को 75 फीसदी से अधिक का नुकसान हुआ है तो प्रति एकड़ मुआवजा राशि पंद्रह हजार प्रदान की जायेगी। वहीं पच्चीस से पचास फीसदी फसल खराब होने पर नौ हजार रुपये तथा 51 से 75 फीसदी फसल खराब होने पर बारह हजार रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवजा किसानों को दिया जायेगा। इतना ही नहीं, सरकार ने किसानों को हुए नुकसान के प्रति संवेदनशीलता दिखाते हुए कहा है फसल खरीद के 48 से 72 घंटे के बीच भुगतान किसानों के खाते में कर दिया जायेगा। यदि समय पर नहीं मिलता तो सरकार किसानों को नौ फीसदी ब्याज देगी। बहरहाल, प्राकृतिक संकटों के चलते आये दिन किसानों की फसलों को होने वाले नुकसान को देखते हुए राहत समय से मिलने हेतु स्थायी व कारगर तंत्र बनाये जाने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। राहत समय से मिले और उसका प्रभावी आधार तार्किक होना चाहिए। राहत कार्यों में पारदर्शिता की जरूरत है और राहत प्रतीकात्मक भी नहीं होनी चाहिए। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन के चलते मौसम के तेवरों में आ रहे अप्रत्याशित बदलावों के प्रति किसानों को जागरूक करने की भी जरूरत है। किसानों को फसल चक्र में बदलाव के लिये भी प्रेरित किया जाना चाहिए। दरअसल, मुआवजा व राहत इस समस्या का स्थायी व कारगर समाधान नहीं कहे जा सकते हैं।