कुछ विपक्षी सांसदों की असहमति के बीच संसद की संयुक्त समिति ने निजी डेटा सुरक्षा विधेयक पर रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया। समिति में शामिल विपक्षी सांसद केंद्रीय जांच एजेंसियों को कानून के दायरे से बाहर रखने का विरोध कर रहे थे। उनकी आशंका है कि इससे सरकारी एजेंसियों को असीमित अधिकार मिल जायेंगे। वहीं समिति का कहना था कि सरकार को जांच एंजेसियों को बाहर रखने का अधिकार है और ऐसी अनुमति केवल राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर ही दी जा सकती है। करीब दो साल तक चली लंबी चर्चा के बाद संयुक्त संसदीय समिति ने सोमवार को इस रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया, जिसके कुछ बिंदुओं पर असहमति का नोट कांग्रेस, बीजू जनता दल व तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने दिया। दरअसल, लोगों के निजी डेटा की सुरक्षा तथा डेटा सुरक्षा प्राधिकरण के स्थापना के उद्देश्य से यह विधेयक वर्ष 2019 में सदन में पेश किया गया था। कालांतर में इस विधेयक को इससे जुड़े विभिन्न पहलुओं पर व्यापक विचार-विमर्श तथा जरूरी सुझावों के लिये जेपीसी के पास भेजा गया था। इस विधेयक के अनुसार केंद्र सरकार देश हित, राज्य की सुरक्षा, लोक व्यवस्था तथा राष्ट्र की संप्रभुता व अखंडता संरक्षण हेतु जांच एजेंसी को प्रस्तावित कानून के दायरे से छूट दे सकती है। वहीं विपक्षी सदस्य एजेंसियों को असीमित छूट देने के पक्ष में नहीं थे। उनका सुझाव था कि ऐसी छूट के मामले में संसद की मंजूरी लेना आवश्यक किया जाना चाहिए ताकि इन एजेंसियों को जवाबदेह बनाया जा सके। बहरहाल, माना जा रहा कि आसन्न शीतकालीन सत्र में यह विधेयक सरकार को घेरने का विपक्ष का हथियार बन सकता है। उल्लेखनीय है कि जेपीसी ने इस प्रस्तावित कानून को लेकर 93 अनुशंसाएं प्रस्तुत की हैं। समिति का कहना है कि सरकार के कार्य व नागरिकों की निजता की सुरक्षा के बीच सामंजस्य बनाने का प्रयास किया गया है। वहीं समिति प्रमुख का तर्क है कि इस प्रस्तावित कानून से डेटा सुरक्षा के अंतर्राष्ट्रीय मानकों का निर्धारण होगा।
दरअसल, संयुक्त संसदीय समिति ने प्रस्तावित विधेयक में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को पब्लिशर्स के रूप में मानने के साथ ही उससे संबंधित डेटा को निगरानी व जांच के अधिकार को भी विधेयक के दायरे में लाने की संस्तुति की है। इसी मकसद से विधेयक में डेटा सुरक्षा प्राधिकरण की स्थापना प्रस्तावित है। दो साल के व्यापक मंथन के बाद कई सुधारों से संबंधित सुझावों को मान लिया गया है। समिति ने विधेयक के कार्यक्षेत्र विस्तार के लिये दिये सुझाव में गैर-व्यक्तिगत डेटा व इलेक्ट्राॅनिक हार्डवेयर द्वारा जुटाये गये डेटा को भी इस विधेयक के अधिकार क्षेत्र के दायरे में रखा है, जिसमें तमाम सोशल मीडिया मंच भी शामिल हैं। समिति का तर्क रहा है कि सरकार के कार्य व नागरिकों की निजता की सुरक्षा के मध्य सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास किया गया है। कहा जा रहा है कि शीतकालीन सत्र में पेश किये जाने वाले विधेयक का असर डिजिटल अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा। समिति की मान्यता रही है कि गैर-व्यक्तिगत डेटा के संरक्षण हेतु व्यवस्था बनाने के लिये इस बिल को विस्तार दिया जाना चाहिए। समिति का सुझाव है कि डिजिटल, सॉफ्टवेयर कंपनियों, इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर द्वारा एकत्र डेटा को भी प्रस्तावित कानून के दायरे में लाया जायेगा। साथ ही डेटा सुरक्षा प्राधिकरण निगरानी, परीक्षण व सर्टिफिकेशन के लिये नया तंत्र विकसित करेगा ताकि हार्डवेयर उपकरणों की प्रामाणिकता सुनिश्चित होने से लोगों की निजता की रक्षा की जा सके। साथ ही सोशल मीडिया संचालकों की जवाबदेही भी तय की जा सके, जिसके लिये संसदीय समिति ने डेटा जुटाने वाली फर्मों को दो वर्ष का समय देने की बात कही है, ताकि वे अपनी कार्यप्रणाली को प्रस्तावित कानून के प्रावधान के अनुरूप ढाल सकें। इसके साथ ही समिति ने निजी कंपनियों को भी बिल की परिधि में लाने हेतु दो वर्ष का समय देने का सुझाव दिया है। बहरहाल, संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में इस मुद्दे पर गरमा-गरम बहस होने की बात कही जा रही है।