भारत-अमेरिकी निकटता चीन को करारा जवाब
भारत और अमेरिका के रक्षा-विदेश मंत्रियों की दो जमा दो वार्ता के बाद महत्वपूर्ण समझौतों से जहां दोनों देश और करीब आये हैं, वहीं एलएसी पर चीन द्वारा लगातार दिखायी जा रही आक्रामकता को भी करारा जवाब मिला है। ऐसे वक्त में जब अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव अंतिम निर्णायक दौर में है, इस समझौते का होना इस बात का भी प्रतीक है कि ये संबंध राष्ट्रनायकों के निजी संबंधों से परे दोनों देशों के बीच स्थायी रूप से बन रहे हैं। यानी राष्ट्रपति कोई भी बने, दोनों देशों के संबंध निरंतर जारी रहेंगे। इस दो जमा दो वार्ता का महत्वपूर्ण निष्कर्ष बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट यानी बेका है। यह दोनों देशों के बीच होने वाले चार समझौतों में अंतिम है जो कालांतर सैन्य व लॉजिस्टिक्स सहयोग में वृद्धि करेगा। सबसे पहले सैन्य सूचनाओं की सुरक्षा को लेकर दोनों देशों में 2002, 2016 तथा 2018 में महत्वपूर्ण समझौते हुए थे। इसी कड़ी में बेका के अंतर्गत दोनों देशों में सुरक्षा सहयोग, रक्षा सूचनाओं को साझा करना, सैन्य वार्ता व रक्षा कारोबार से जुड़े समझौते शामिल हैं। इन समझौतों से जुड़ी आशंकाओं और अन्य पहलुओं को लेकर दोनों देशों के बीच लंबे समय से विमर्श चल रहा था। निस्संदेह यह समझौता दोनों देशों के बीच रक्षा और भू-राजनीतिक क्षेत्र में सहयोग व तालमेल में वृद्धि करेगा। यह समझौता तब और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जब चीन पिछले छह महीने से एलएसी का निरंतर अतिक्रमण करने की फिराक में है और भारत पर दबाव बनाने का प्रयास करता रहा है। दरअसल, यह समझौता दोनों देशों के हितों में ही नहीं बल्कि क्षेत्रीय संतुलन के नजरिये से भी महत्वपूर्ण है। खासकर बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट पर समझौते के बाद अब अमेरिकी सैन्य उपग्रहों द्वारा प्रदत्त संवेदनशील जानकारी व चित्र रियल टाइम के आधार पर भारत को उपलब्ध हो सकेंगे, जिससे भारत अब अपने सामरिक लक्ष्य बेहद सटीक ढंग से हासिल कर सकेगा जो सामरिक दृष्टि से देश की बड़ी उपलब्धि है।
दरअसल, भारत और अमेरिका के करीब आने की वजह यह भी है कि चीन अपनी आक्रामक नीतियों से वैश्विक शांति के लिये खतरा बनता जा रहा है। ट्रंप शासनकाल में अमेरिका व चीन के बीच व्यापारिक व तकनीकी मुद्दों पर लगातार जारी टकराव के चलते व्यापारिक युद्ध की स्थिति बनी हुई है, जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी प्रतिकूल असर पड़ रहा है। जब पूरी दुनिया कोरोना संकट से उबरने में लगी है, चीन अपने साम्राज्यवादी मंसूबों को पूरा करने में लगा है। वह कोरोना संकट में कमजोर हुई विश्व की प्रतिष्ठित कंपनियों को खरीदने और कई देशों की संप्रभुता को रौंदने में लगा है। ऐसे में भारत-अमेरिका के बीच बेका पर समझौता होना न केवल लद्दाख में चीनी हस्तक्षेप को जवाब है बल्कि चीन की वैश्विक आक्रामकता पर लगाम लगाना भी है। दरअसल, भारत व अमेरिका वर्ष 2005 में हुए असैन्य परमाणु समझौते के बाद लगातार करीब आये हैं। भारत अमेरिकी कंपनियों से लगातार युद्ध सामग्री व अत्याधुनिक हथियार खरीद रहा है जो कि भारत की पाक व चीन की सीमाओं पर लगातार जारी तनाव के मद्देनजर जरूरी भी है। अब भारत व अमेरिका की सेनाओं के बीच संवेदनशील सूचनाओं के आदान-प्रदान से ये संबंध और प्रगाढ़ होंगे। साथ ही इससे क्षेत्रीय सहयोग को भी बढ़ावा मिलेगा। भारत ने इस वार्ता के दौरान इस बात पर भी बल दिया कि अमेरिकी कंपनियां भारत में रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में निवेश करें। भारतीय कंपनियों के सहयोग से बनने वाले अत्याधुनिक हथियारों से देश आत्मनिर्भरता के लक्ष्यों को भी हासिल कर सकेगा। निस्संदेह इस समझौते के इतर अगले माह क्वाड देशों के मालाबार में होने वाले युद्धाभ्यास से चीन व पाक को भी कड़ा संदेश मिलेगा। इस युद्धाभ्यास को पिछले दिनों टोक्यो में क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में अंतिम रूप दिया गया। अब इस युद्धाभ्यास में भारत, अमेरिका, जापान के साथ आस्ट्रेलिया भी भाग लेगा जो मुक्त इंडो पैसिफिक व्यवस्था के लक्ष्य की दिशा में बड़ा कदम होगा।