भारतीय सेनाओं में अत्याधुनिक अस्त्रों-शस्त्रों की आपूर्ति एक सामान्य प्रक्रिया है। मगर भारतीय वायुसेना में 4.5वीं पीढ़ी के अत्याधुनिक विमान राफेल का शामिल होना इस मायने में खास है क्योंकि भारत चीन के साथ सीमा रक्षा में उलझा हुआ है। देश के सामने बड़ी चुनौती है और दुनिया में फिलहाल इस विमान की टक्कर का कोई दूसरा विमान नहीं है। हर संकट के समय में काम आने वाले मित्र देश फ्रांस ने चुनौती के वक्त राफेल की पहली खेप की आपूर्ति की है। ऐसी मदद उसने कारगिल युद्ध के दौरान मिराज लड़ाकू विमान को लेकर भी की थी। इस बेजोड़ लड़ाकू जहाज को एक साल से फ्रांस में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे भारतीय पायलट पूरी तैयारी के साथ भारतीय धरती पर लाये हैं। फिलहाल वे इतने सक्षम हैं कि राफेल की तैनाती तनावपूर्ण क्षेत्र लद्दाख में हो सकती है। इन विमानों के आगमन को लेकर देश में इतना उत्साह था कि लोग महामारी के संकट को भूल लड़ाकू जहाजों के आगमन की प्रतीक्षा करते रहे। यह उत्साह सिर्फ अंबाला में ही नहीं था जहां इन लड़ाकू विमानों को उतरना था, बल्कि सारे देश में था। महत्वपूर्ण इतना कि इनकी अगवानी के लिये खुद वायुसेनाध्यक्ष अंबाला में मौजूद थे। फ्रांस से लंबा सफर तय करके जैसे ही इन पांचों राफेल विमानों ने भारतीय सीमा में प्रवेश किया, दो सुखोई लड़ाकू विमान इनका साथ देने लगे। समय की संवेदनशीलता को देखते हुए सरकार ने इस आयोजन को मीिडया से दूर रखा और अंबाला के कुछ इलाकों में धारा 144 लगाई गई तथा छतों से फोटो खींचने तक पर रोक लगाई गयी। इन लड़ाकू विमानों के आगमन को लेकर सार्वजनिक कार्यक्रम अगस्त के दूसरे हफ्ते में किये जाने की बात कही जा रही है। राफेल विमान के सुर्खियों में होने की वजह जहां एक ओर चीन से चल रहा सीमा विवाद है तो वहीं पिछले आम चुनाव में कांग्रेस द्वारा इसे चुनावी मुद्दा बनाया जाना भी है। बहरहाल, अब राफेल भारतीय वायुसेना का हिस्सा है।
विगत में राफेल की कीमत और संख्या को लेकर विवाद उछाले जाते रहे हैं। लेकिन एक हकीकत यह है कि वायुसेना को रणनीतिक व सामरिक दृष्टि से आधुनिक हथियारों की सख्त जरूरत थी। यह भी एक तथ्य है कि सुखोई विमानों के भारतीय वायुसेना में शामिल होने के दो दशक बाद उसे राफेल के रूप में अत्याधुनिक लड़ाकू जहाज मिले हैं। यह भी एक हकीकत है कि अगले वर्ष के अंत तक मिलने वाले कुल 36 राफेल भारतीय वायुसेना की जरूरतों की पूर्ति पूरी तरह नहीं करते। सरकार को लगातार बदलती तकनीक के दौर में कुछ बड़े कदम वायुसेना की जरूरतों की पूर्ति के लिए उठाने होंगे। यह जानते हुए कि शक्ति के अहंकार में चूर चीन को जवाब देने के लिये भारतीय सेनाओं का आधुनिकीकरण समय की मांग है। निस्संदेह सीमा विवाद को लेकर बातचीत जारी है, मगर जब हम शक्तिशाली होते हैं, तभी हमारी बात सुनी भी जाती है। यानी शक्ति से ही शांति का मार्ग प्रशस्त होता है। यह बात जरूर अखरती है कि राफेल के साथ इसकी तकनीक हस्तांतरण के अधिकार हमें नहीं मिले हैं। बेहतर होता कि हम इसकी तकनीक हासिल करके देश में ही इनका निर्माण करते। लेकिन सरकार के प्रयासों के बावजूद फ्रांसीसी विमान निर्माता कंपनी इसके लिये तैयार नहीं हुई। वैसे भारत व फ्रांस के विश्वास के रिश्तों में हथियारों के आधुनिकीकरण व रखरखाव के मुद्दे पर कभी कोई परेशानी नहीं आई। यह ठीक है कि भारत में आज छोटे लड़ाकू विमानों के निर्माण की दिशा में सार्थक प्रयास हुए हैं, लेकिन हमें लगातार बदलती तकनीकों के साथ अाधुनिक विमान निर्माण की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। तभी आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य पूरे हो सकते हैं। इसके बावजूद भारत को फ्रांस की विमान निर्माता कंपनी पर टेक्नालॉजी ट्रांसफर के लिये दबाव बनाना चाहिए । हालांकि, कंपनी ने भारत को इस बात की छूट दी है कि इस आधुनिक विमान में हम अपनी मिसाइलें लगा सकते हैं।