
तकरीबन आधी सदी से रोगियों के उपचार के लिये समर्पित बाबा फरीद मेडिकल यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. राज बहादुर के साथ पंजाब के सेहत मंत्री ने जो दुर्व्यवहार किया,वह अक्षम्य ही कहा जाएगा। चिकित्सा बिरादरी, डॉक्टरों के संगठनों व तमाम राजनीतिक दलों ने इस कृत्य की एक सुर में निंदा की है। घटना से आहत डॉ. राज बहादुर ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। निस्संदेह, सत्तर साल की उम्र में भी लोगों को नया जीवन देने के लिये प्रयत्नशील अनुभवी व नामी चिकित्सक द्वारा अभद्रता से आहत होकर यह प्रतिक्रिया देना स्वाभाविक ही है। यह घटना जहां हमारे मंत्रियों की अनुभवहीनता व अपरिपक्वता को दर्शाती है, वहीं यह सोचने को भी विवश करती है कि किसी पेशे में अपना जीवन समर्पित करने वाले विशेषज्ञों के साथ राजनेताओं को ऐसे व्यवहार की इजाजत किसने दी? हमारे नौकरशाह हों या वरिष्ठ चिकित्सक, वे लंबी पढ़ाई, प्रतियोगिताओं में सफलता और समर्पण से अर्जित अनुभव के बाद इस मुकाम पर पहुंचते हैं। यह लोकतंत्र की विडंबना ही है कि जो व्यक्ति किसी विभाग के मूल चरित्र को नहीं समझता और उसकी प्रारंभिक जानकारियों से भी अनभिज्ञ है, वह उस विभाग के शीर्ष पर पहुंचे अधिकारियों को अपमानित करने में देर नहीं लगाता। फिर बाबा फरीद मेडिकल यूनिवर्सिटी के कुलपति से पहले डॉ. राजबहादुर की विषय विशेषज्ञ के रूप में देश में बड़ी प्रतिष्ठा रही है। ऐसे में समाचार पत्रों में उनके व्यथित करने वाले चित्र मेडिकल शिक्षा में भविष्य देखने वाली प्रतिभाओं को हताेत्साहित ही करेंगे।
इसमें दो राय नहीं कि देश व राज्य में चिकित्सा व्यवस्था में सुधार होना चाहिए। आम आदमी को सस्ता व सहज उपचार मिलना चाहिए। लेकिन यह सुधार डॉक्टरों व व्यवस्थापकों से दुर्व्यवहार से नहीं आयेगा। जनप्रतिनिधियों को यह भी विचार करना चाहिए कि क्या सरकार से पर्याप्त बजट अस्पतालों को मिल रहा है? क्या अस्पतालों में पर्याप्त संख्या में चिकित्सकों व कर्मचारियों की नियुक्ति हो पायी है? यह भी कि हाल के दिनों में मरीजों का दबाव कितनी तेजी से बढ़ा है, जिसके चलते सुविधाएं कम पड़ रही हैं। लेकिन राजनीतिक लाभ व सस्ती लोकप्रियता के लिये अनुभवी चिकित्सकों से दुर्व्यवहार से व्यवस्था में सुधार नहीं होगा। इसके लिये योजनाबद्ध ढंग से प्रयास करने होंगे और पर्याप्त बजट चिकित्सालयों व उपचार से जुड़ी सुविधाओं के लिये उपलब्ध कराना होगा। महंगाई से त्रस्त आम आदमी बड़ी उम्मीदों से सरकारी चिकित्सा सुविधाओं की तरफ देखता है, लेकिन वहां पहुंचकर उसे निराशा ही हाथ लगती है। सरकारों को चिकित्सा व्यवस्था में सुधार के लिये व्यापक पैमाने पर सुधार करने होंगे। लेकिन साथ ही ध्यान रखना होगा कि पूरे जीवन के अनुभव से मुकाम हासिल करने वाले व चिकित्सा व्यवस्था की रीढ़ बने चिकित्सकों के आत्मसम्मान की भी रक्षा की जाये। उन्हें यह भी स्वीकार करना होगा कि सरकारी चिकित्सालय मरीजों के बोझ से चरमरा रहे हैं। बढ़ते मरीजों के अनुपात में यदि सुविधाएं उपलब्ध न कराई गईं तो चिकित्सा व्यवस्था ही बीमार हो जायेगी। कोरोना संकट के दौरान चरमराई चिकित्सा व्यवस्था ने भी यही सबक दिये हैं।
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