ऐसे वक्त में जब महसूस किया जा रहा था कि कश्मीर घाटी में जनजीवन सामान्य होने की ओर बढ़ रहा है, हाल के दिनों में हुए आतंकी हमले चिंता बढ़ाने वाले हैं। हाल ही में कुछ गैर-स्थानीय लोगों व एक कश्मीरी पंडित दुकानदार पर हुए आतंकी हमले को पाक प्रायोजित आतंकवाद की कड़ी में दहशत फैलाने की साजिश के रूप में देखा जा रहा है जो सांप्रदायिक संघर्ष भड़काने के षड्यंत्र का हिस्सा कहा जायेगा। पाक पोषित आतंकवादियों की साजिशें किसी से छिपी नहीं रही हैं। जब भी घाटी में जनजीवन पटरी पर लौटने लगता है सीमा पार बैठे आतंकियों के आकाओं की नींद हराम हो जाती है। हाल के दिनों में कश्मीर घाटी पर्यटकों से गुलजार रही है। गुलमर्ग में बड़ी संख्या में बाहरी राज्यों के सैलानी पहुंचे हैं। घाटी के बहुचर्चित ट्यूलिप गार्डन में रिकॉर्ड आगंतुकों की संख्या दर्ज की गई है। वहीं पिछले दो साल से कोरोना महामारी के चलते बाधित रही अमरनाथ यात्रा की तैयारियां भी जोर-शोर से चल रही हैं। ऐसे में सुरक्षाबलों की चौकसी और राज्य में आर्थिक गतिविधियों के सामान्य होने की गति से हताश आतंकी संगठन अपने खतरनाक मंसूबों को अंजाम देने निकल पड़े। वे असहाय व आम लोगों पर अंधाधुंध गोलीबारी करके अपनी भड़ास निकाल रहे हैं जिसे आतंकवादियों की हताशा के रूप में ही देखा जा सकता है। ये घटनाएं ऐसे समय पर सामने आई हैं जब घाटी से कश्मीरी पंडितों के पलायन का मुद्दा हाल में रिलीज एक बहुचर्चित फिल्म के चलते सुर्खियों में रहा है। पूरे देश में इस मुद्दे पर विमर्श चल रहा है। साथ ही कश्मीरी पंडितों की गरिमापूर्ण वापसी की मांग भी जोर पकड़ती रही है। निस्संदेह, कश्मीर में पृथकतावादियों व आतंकवादियों के खिलाफ देशभर में बन रहे माहौल से आतंकवादियों में हताशा का भाव बढ़ रहा था जिसकी कुंठा को हालिया हमलों के रूप में सामने आने के तौर पर देखा जा सकता है।
हाल के दिनों में सेना व सुरक्षा बलों ने आतंकवादियों के खिलाफ जीरो टॉलरेंस दिखायी है। बड़े अभियान आतंकवादियों के खात्मे हेतु चलाये गये हैं जिसके बाद आतंकवाद की घटनाओं में कमी देखी जा रही थी। सेना की उत्तरी कमान ने जम्मू-कश्मीर में फिलहाल सक्रिय आतंकवादियों की संख्या करीब 172 बतायी है। इसमें विदेशी भाड़े के आतंकवादियों की संख्या 79 के करीब है। निस्संदेह, इन्हें सीमा पार से भेजा जाता है और पाकिस्तान के सत्ता प्रतिष्ठान व कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई की इसमें भूमिका रही है। वैसे कयास लगाये जा रहे थे कि आर्थिक कंगाली की दहलीज पर खड़े और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहे पाक के हुकमरान जनता का ध्यान बंटाने के लिये घाटी में आतंकी संगठनों को शह दे सकते हैं। वहीं दूसरी ओर, सुरक्षा बलों व खुफिया तंत्र की तरफ से बताया जा रहा है कि आतंकवादी संगठनों में शामिल युवाओं की संख्या में गिरावट आई है। यह एक अच्छा संकेत माना जा सकता है कि युवामन राष्ट्र की मुख्यधारा की ओर उन्मुख हो रहा है। इसके बावजूद सुरक्षा बलों को इन हमलों को गंभीरता से लेना होगा। हालिया हमलों में शामिल लोगों की तलाश के प्रयास में और तेजी लानी होगी। साथ ही पाक पोषित उस तंत्र को भी ध्वस्त करना होगा, जो घाटी में भय का माहौल पैदा करना चाहता है। यह अच्छी बात है कि दोनों देशों की सेनाओं के बीच गोलाबारी रोकने के लिये हुआ समझौता अभी कायम है और सीमा पर घुसपैठ की घटनाओं में कमी आई है। उम्मीद की जानी चाहिए कि 2019 में अनुच्छेद 370 निरस्त होने के बाद रुकी हुई राजनीतिक प्रक्रिया जल्दी से फिर सक्रिय होगी। हालांकि, केंद्र द्वारा राज्य में परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद चुनाव कराने का वायदा किया जाता रहा है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में परिसीमन पैनल की सिफारिशों को चुनौती दिये जाने के बाद लोकतांत्रिक संस्थाओं की प्रतिष्ठा स्थापित करने में कुछ विलंब हो सकता है। निस्संदेह, राज्य में शांति भंग करने के प्रयासों से राजनीतिक प्रक्रिया बाधित ही होगी। घाटी का परिदृश्य अशांत होने से अविश्वास को ही बढ़ावा मिलेगा। हिंसा के खिलाफ स्वर मुखर होने चाहिए।