खेलो इंडिया यूथ गेम्स में हरियाणा की चौधराहट से साबित हुआ कि राज्य के खिलाड़ियों में जीत का दमखम उम्मीदों भरा है। निश्चित रूप से पदक तालिका में नंबर वन आना बताता है कि राज्य में जो खेल संस्कृति विभिन्न सरकारों के दौरान विकसित हुई, उसकी प्रतिष्ठा की फसल अब राज्य को नसीब होने लगी है। राज्य के खिलाड़ी ओलंपिक, विश्व स्पर्धाओं, एशियाड व कॉमनवेल्थ खेलों में अपने खेल कौशल का प्रदर्शन गाहे-बगाहे करते रहे हैं, इन खेलों की पदक तालिका में टॉप पर आना उसी का विस्तार है। इस कामयाबी के कई निष्कर्ष भी हैं। दूध-दही के खाणे ने खिलाड़ियों को जो ऊर्जा-खेल क्षमता दी है वह शेष राज्यों से विशिष्ट है। यह भी कि राज्य के युवा हृष्ट-पुष्ट हैं व शारीरिक ताकत हासिल करना उनकी प्राथमिकता है। निस्संदेह, विजयी खेल संस्कृति विकसित होने में लंबा वक्त लगता है। ऐसा भी नहीं है कि शेष देश में खेल प्रतिभाओं की कमी है, या दमखम का अभाव है। विगत में राज्य में जो खेल नीति बनी और जिस बेहतर ढंग से उसका क्रियान्वयन हुआ, वह भी काफी मायने रखता है। कोई खिलाड़ी रातों-रात तैयार नहीं होता। खिलाड़ी का संकल्प, घर का सहयोग और स्कूल-काॅलेजों में खेलने के बेहतर अवसर प्रतिभा को निखारते हैं। निस्संदेह, इस सफलता में राज्य के तमाम खेल संस्थानों, नीति-नियंताओं और प्रशिक्षकों का योगदान भी है। फिर युवाओं की जीवटता सोने पर सुहागे का काम करती है। विगत में हरियाणा सरकार ने जो बड़े-बड़े नगद इनाम घोषित किये, उसने भी राज्य के खिलाड़ियों में नया जोश भरा। जो अन्य राज्यों के खिलाड़ियों को भी सोचने को बाध्य करता है कि काश हम भी हरियाणा के लिये खेलते। जाहिरा तौर पर एक खिलाड़ी के खेल का काल सीमित होता है। खेल की क्षमता में गिरावट के बाद उसे रोजगार के नये विकल्प तलाशने पड़ते हैं। ऐसे में राज्य सरकार की वह नीति सराहनीय है जिसमें अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में पदक जीतने वालों को नौकरी देने का प्रावधान है।
निस्संदेह, इस साल संपन्न खेलो इंडिया यूथ गेम्स में हरियाणा द्वारा 52 स्वर्ण पदकों के साथ कुल 137 पदक जीतने की महक में हरियाणा के खिलाड़ियों का खून-पसीना भी शामिल है। खेल मानवीय जीवन की सुंदरतम अभिव्यक्ति है जो एक सामान्य व्यक्ति की विशिष्ट बनने की प्रक्रिया भी है। कहावत भी है कि सुबह जिसकी हुई सचमुच वो सारी रात नहीं सोया होगा। एक तपस्या की तरह होता है किसी खेल में शिखर की उपलब्धि हासिल करना। अपने आराम, सुख-सुविधाओं का परित्याग करना होता है। तब जाकर साधारण से विशिष्टता हासिल होती है। सैकड़ों दौड़ने वालों में एक ही गोल्ड मेडल जीतता है। उसमें भी तमाम जोखिम होते हैं। इन खेलों के दौरान ग्यारह सौ से अधिक खिलाड़ियों का चोटिल होना बताता है कि खेलों में कितने जोखिम हैं। जो यह भी बताता है कि हमारे खिलाड़ियों को पूरी तरह प्रशिक्षण नहीं मिल पाया कि वे चोटों से अपना बचाव कर सकें। इस दिशा में हरियाणा सरकार को भी गंभीरता से सोचना होगा। कई बार कोई गंभीर चोट खिलाड़ी का करिअर खराब कर देती है और उसकी टीस जीवनपर्यंत सालती रहती है। हरियाणा सरकार को भी चीन, अमेरिका, रूस, जापान, कोरिया व आॅस्ट्रेलिया के खेल पैटर्न का अध्ययन करना चाहिए कि कैसे ये देश अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में पदकों की झोली भरकर ले जाते हैं। चीन आदि देशों में बच्चों को कड़े अनुशासन में खेलों का प्रशिक्षण दिया जाता है तभी सोने का तमगा जीतने वाले खिलाड़ी तैयार होते हैं। राज्य के तमाम इलाकों में ऐसे गुदड़ी के लालों को तलाशा जाना चाहिए। उन्हें मुफ्त प्रशिक्षण व खेल के संसाधन उपलब्ध कराये जाने चाहिए। राज्य सरकार की वह पहल सराहनीय है, जिसमें कहा गया है कि राज्य में राष्ट्रीय खेल अकादमी बनेगी। साथ ही राज्य में ग्यारह सौ खेल नर्सरी खोली जाएंगी। खेलो इंडिया यूथ गेम्स में हासिल स्वर्णिम सफलता से पैदा हुआ उत्साह कम नहीं होना चाहिए जिससे आगे हमारे खिलाड़ी और बेहतर प्रदर्शन कर पायें।