नये दौर के रिश्ते : The Dainik Tribune

नये दौर के रिश्ते

मिस्र से पुरानी दोस्ती को नई ऊर्जा

नये दौर के रिश्ते

मिस्र उन देशों में शुमार है जिनके साथ आजादी के चंद दिनों के बाद कूटनीतिक रिश्ते कायम हो गये थे। पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू और मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल जमाल नासिर की दोस्ती दुनिया भर में चर्चा में रही है। ये दोनों कालांतर गुटनिरपेक्ष संगठन के आधार स्तंभ भी बने। लेकिन बाद में कतिपय कारणों से दोनों देशों के संबंधों में ठहराव आ गया भी। फिर कोरोना संकट के दौर में दोनों फिर तब करीब आए जब मिस्र ने मेडिकल ऑक्सीजन आपूर्ति में भारत का सहयोग किया। वैसे ही भारत ने भी रूस-यूक्रेन संकट के चलते गेहूं आपूर्ति बाधित होने पर मिस्र की मदद की है। निस्संदेह, अब मिस्र के राष्ट्रपति के तीन दिवसीय भारत दौरे से इन रिश्तों में गर्माहट बढ़ी है। दरअसल, मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल फतह अस-सीसी हालिया गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि बनकर भारत आये थे। इस दौरान पांच महत्वपूर्ण समझौते भी हुए। खासकर रक्षा क्षेत्रों में दोनों देश सहयोग बढ़ाने को तैयार हुए हैं। वास्तव में भारत मिस्र को स्वनिर्मित हथियारों के बड़े बाजार के रूप में देखता है। काहिरा भी भारतीय रक्षा उपकरणों में रुचि दिखाता रहा है। निस्संदेह, हालिया प्रयासों से दोनों देशों के संबंधों में नई ऊर्जा का संचार हुआ है। खासकर भारत-मिस्र ने जिस तरह आतंकवाद के खिलाफ मिलकर लड़ने की प्रतिबद्धता जतायी है, वह उम्मीद जगाती है। विशेष रूप से मिस्र ने उन देशों की आलोचना की है जो आतंकवाद को समर्थन करते हैं। निश्चित रूप से अपरोक्ष रूप से पाकिस्तान को संदेश दिया गया है। इसके अलावा इस्लामिक देशों का संगठन जिस तरह कश्मीर के मुद्दे पर पाक के इशारे पर भारत विरोधी रवैया अपनाता है, मिस्र से हमारी दोस्ती उसमें काम आ सकती है। साथ ही भारत व मिस्र साइबर सुरक्षा, सूचना प्रोद्योगिकी, प्रसारण व संस्कृति जैसे मामलों में सहयोग करने पर सहमत हुए हैं। इस हकीकत को स्वीकारा गया है कि बदलते वैश्विक परिदृश्य में दोनों देशों की दोस्ती के गहरे निहितार्थ हैं।

निस्संदेह, अफ्रीका महाद्वीप में मिस्र जैसा मित्र होना भारत के लिये कई मायनों में महत्वपूर्ण है। दोनों देशों के कूटनीतिक संबंधों के 75 साल पूरा होना इस बात का परिचायक है कि पुराने रिश्तों में निर्विवाद स्वाभाविक प्रवाह है। भारतीय नेतृत्व को इस बात का अहसास है कि उसके साथ बेहतर संबंधों से देश मध्य पूर्व में सार्थक भूमिका निभा सकता है। मिस्र केवल अफ्रीका ही नहीं, मध्य एशिया में मिस्र प्रभावपूर्ण उपस्थिति रखता है। व्यावसायिक दृष्टि व अंतर्राष्ट्रीय कारोबार के नजरिये से भी भूमध्य सागर व हिंदमहासागर के बीच आवाजाही में मिस्र महत्वपूर्ण घटक है। जिसकी वजह एशिया को यूरोप से जोड़ने वाली स्वेज नहर का निर्णायक मार्ग भी है। जिससे हमारे व्यापारिक हित भी जुड़े हैं। वहीं तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि मिस्र फिलहाल विषम आर्थिक परिस्थितियों से दो-चार है। घटता विदेशी मुद्रा भंडार उसकी बड़ी चिंता है, अत: वह भारतीय कारोबारियों के बड़े निवेश की आस लगाये हुए है। यूं तो भारतीय उद्योगपतियों ने मिस्र के ऊर्जा, वाहन निर्माण तथा रसायन उद्योगों में बड़ा निवेश किया है। वहीं हालिया रूस-यूक्रेन युद्ध से खाद्य आपूर्ति में आई बाधा ने मिस्र की दिक्कतों को बढ़ाया है। यही वजह है कि मुश्किल वक्त में मिस्र पुराने मित्र भारत की ओर देख रहा है। जिस पर भारत ने भी सकारात्मक प्रतिसाद दिया है। तभी गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के बावजूद भारत ने मिस्र की मदद की है। वहीं दूसरी ओर मिस्र चाहता है कि वैश्विक मंदी के प्रभाव से बदहाल होती अर्थव्यवस्था को गति देने में भारत रचनात्मक भूमिका निभाये। दूसरी ओर भारतीय निर्यात को अपेक्षा के अनुरूप गति न मिलने से उत्पन्न स्थिति से निबटने में मिस्र से बढ़ता कारोबार सहायक भी हो सकता है। यदि दोनों देशों के बीच कारोबार बढ़ता है तो भारत के बड़े उद्योगों को भी गति मिल सकती है। निस्संदेह, दोनों देशों की जरूरतों का संतुलन साढ़े सात दशक पुराने रिश्तों का नये आयाम दे सकता है। मिस्र को रणनीतिक साझेदार बनाकर भारत अफ्रीका व मध्य एशिया में अपने हितों की रक्षा कर सकता है।

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