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‘नीट’ अब क्लीन

कोर्ट ने प्रवेश कार्यक्रम को दी प्राथमिकता
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नीट परीक्षाओं को लेकर देशव्यापी हंगामे व राजनीतिक बयानबाजियों के बावजूद यह सुखद ही है कि देश की शीर्ष अदालत ने चिकित्सा संस्थानों में प्रवेश के लिये आयोजित हुई नीट परीक्षा को दुबारा कराने की मांग खारिज कर दी है। हालांकि, मंगलवार को आए फैसले का मानवीय पक्ष यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने 24 लाख अभ्यर्थियों को होने वाली परेशानी को प्राथमिकता दी है। इसके बावजूद शीर्ष अदालत का फैसला भारत में परीक्षा प्रक्रियाओं में प्रणालीगत सुधार की आवश्यकता को रेखांकित करता है। कोर्ट के व्यावहारिक फैसले के बावजूद इस विवाद ने हमारी शैक्षिक व परीक्षा प्रणाली के भीतर व्याप्त विसंगतियों को भी उजागर किया है। बहरहाल, मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की यह टिप्पणी कि लीक परीक्षा प्रणाली का उल्लंघन नहीं है, एक अस्थायी राहत जरूर प्रदान करता है। लेकिन इस सिस्टम में अंतर्निहित कमजोरियों को संबोधित किया जाना जरूरी है। इसके बावजूद राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी यानी एनटीए और आईआईटी दिल्ली द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों के अनुसार बिहार के हजारीबाग और पटना में लीक महत्वाकांक्षी चिकित्सा पेशेवरों के लिये होने वाली महत्वपूर्ण परीक्षा आयोजन के तौर-तरीकों की विश्वसनीयता पर प्रश्न तो उठाते ही हैं। प्रभावित छात्रों के मामलों को निपटाने के लिये, राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी पर न्यायालय की निर्भरता समस्या के दीर्घकालीन समाधान के बजाय एक कामचलाऊ दृष्टिकोण को ही दर्शाती है। वहीं दूसरी ओर गत जून माह में यूजीसी-नेट परीक्षा का रद्द होना भी चिंताओं को और बढ़ा देता है। केंद्रीय गृह मंत्रालय को अज्ञात सूत्रों से मिले तथ्यों के आधार पर शिक्षा मंत्रालय ने स्वत: संज्ञान लेते हुए यह कार्रवाई की थी। हालांकि यह कदम छात्रों के हितों की तात्कालिक रक्षा की दृष्टि से सार्थक है लेकिन यह घटनाक्रम हमारी परीक्षातंत्र के बुनियादी ढांचे की कमजोरी को ही उजागर करता है। कह सकते हैं कि परीक्षा तंत्र की संवेदनशीलता के मद्देनजर ऐसे तदर्थवाद व पारदर्शिता की कमी छात्र समुदाय में अविश्वास व चिंता को बढ़ाते हैं।

बहरहाल, हाल की ये घटनाएं प्रतियोगी परीक्षाओं तथा परीक्षाएं आयोजित करने वाले तंत्र के ढांचे में व्यापक बदलाव की जरूरत को बताती हैं। शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा है कि एन.टी.ए. की संरचना की समीक्षा के लिये एक उच्च स्तरीय समिति की स्थापना की जाएगी, निश्चित रूप से यह संस्था की विश्वसनीयता बनाये रखने की दिशा में एक उचित कदम है। हालांकि, इसके साथ ही परीक्षाओं में सुरक्षा, पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के लिये मजबूत उपायों को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए। निस्संदेह, गाहे-बगाहे होने वाले परीक्षा घोटाले न केवल शैक्षणिक संस्थानों की विश्वसनीयता को कमजोर करते हैं बल्कि शिक्षा और कैरियर के नाजुक मोड़ पर खड़े युवा उम्मीदवारों के भविष्य को भी प्रभावित करते हैं। भारत एक युवाओं का देश है। ऐसे में अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का सदुपयोग करने के लिये प्रतियोगी परीक्षाओं की शुचिता सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है। इस घटनाक्रम के बाद सरकार को परीक्षा व्यवस्था में विश्वास बहाल करने और युवाओं की आकांक्षाओं को संबल देने के लिये इस क्षेत्र में सुधारों को वरीयता देनी चाहिए। निस्संदेह, मेडिकल प्रवेश परीक्षा के मामले के निस्तारण में सर्वोच्च न्यायालय की सक्रियता की सराहना की जानी चाहिए। बड़ी संख्या में याचिकाएं परीक्षा दोबारा आयोजित कराने के लिये दायर किये जाने के बावजूद, लाखों छात्रों के हित व वक्त की जरूरत के मुताबिक कोर्ट ने तार्किक फैसला दिया। जिसमें इस बात पर ध्यान दिया गया कि किसी गड़बड़ी से परीक्षा किस सीमा तक प्रभावित हुई है। कोर्ट ने इस बाबत ठोस व तार्किक पक्ष को प्राथमिकता दी। साथ ही परीक्षा के सामाजिक पक्षों को भी ध्यान में रखा। निश्चित रूप से जिन परीक्षार्थियों का चयन हो चुका था, उन्हें पुन: परीक्षा देने को बाध्य करना न्यायोचित नहीं कहा जा सकता। बहरहाल, इस मामले में सीबीआई द्वारा तत्परता से की गई कार्रवाई और संदिग्धों की गिरफ्तारी उन लोगों में भय पैदा करेगी, जो लंबे अर्से से परीक्षा लीक के काले धंधे में धंसे हुए थे। जाहिर है कि शासन-प्रशासन की सक्रियता, सख्ती व समय रहते कार्रवाई किसी भी क्षेत्र में शुचिता स्थापित करने में सहायक हो सकती है।

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