बृहस्पतिवार को पिछले 24 घंटे में संक्रमण के 45 हजार से अधिक मामले और ग्यारह सौ से अधिक लोगों की मौत का आंकड़ा सामने आना हर भारतीय की चिंता बढ़ाने वाला है। हर व्यक्ति के दिमाग में तमाम सवालों के बीच बड़ा सवाल यह भी है कि सख्त लॉकडाउन और तमाम सावधानियों के बीच संक्रमितों का आकंड़ा बारह लाख पार कर जाना क्या तंत्र की विफलता और जनता में एक तबके की लापरवाही का नतीजा है? क्या लॉकडाउन के बीच केंद्र व राज्य सरकारें वे तैयारी कर पायी हैं जो इस भयावह चुनौती के मुकाबले में कारगर साबित होतीं? क्यों धारावी, कोटा, केरल व दिल्ली जैसे कोरोना जंग के मॉडल पूरे देश में एक साथ लागू नहीं किये जाने चाहिए थे? नि:संदेह जान के साथ जहान की भी चिंता थी। भारत जैसे आर्थिक विषमता वाले देश में जहां करोड़ों लोग रोज कमाने-खाने वाले थे, वहां लंबे समय तक सख्त लॉकडाउन संभव भी नहीं था। सवाल है कि कोरोना संक्रमण को रोकने में हम कामयाब क्यों नहीं हुए? चूक कहां हुई है? शुरुआती सख्ती के बावजूद स्थिति संभली क्यों नहीं है? निस्संदेह यह जटिलता हमारे देश की ही नहीं है। अमेरिका-ब्राजील जैसे देश भी तेज संक्रमण की दर से गुजर रहे हैं। दुनिया के तमाम गरीब मुल्क आर्थिक झंझावातों से जूझ रहे हैं। लेकिन शुरुआती सख्ती के बावजूद कोरोना संक्रमण पर काबू न पाया जाना सालता है। निस्संदेह हम आबादी के लिहाज से दुनिया में दूसरे नंबर पर हैं और जनसंख्या का घनत्व ज्यादा है। गरीबी की मार है। कोढ़ पर खाज यह है कि इस दौरान तमाम प्राकृतिक आपदाओं ने कहर बरपाया है—चक्रवात, तूफान, बाढ़ और भूकंपों ने भी लोगों को डराया है। ऐसे मौकों पर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना निस्संदेह मुश्किल रहा है। लेकिन कई राज्य सरकारों की संक्रमण से निपटने के तौर-तरीकों पर सवाल खड़े हुए हैं। हमारे चिकित्सा तंत्र की बदहाली भी उजागर हुई है।
खबर आई है कि झारखंड की कैबिनेट ने बुधवार को संक्रामक रोग अध्यादेश-2020 पारित किया है। अब कोरोना संक्रमण रोकने के नियमों का उल्लंघन करने पर सख्त सजा दी जायेगी। मास्क न पहनने वालों पर एक लाख का जुर्माना लग सकता है और दो साल की जेल हो सकती है। निस्संदेह झारखंड में जिस तेजी से कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं, उसे देखते हुए नियम सख्त किये जाने जरूरी हैं, लेकिन क्या इतने बड़े जुर्माने की कोई तार्किकता है? पहली नजर में सजा न्यायसंगत नजर नहीं आती। आर्थिक रूप से अल्पविकसित राज्य में इतने बड़े जुर्माने का औचित्य नजर नहीं आता। निर्णय का प्रतीकात्मक महत्व तो है मगर इसे लागू करना सहज नहीं होगा। इसके दुरुपयोग के मामले भी सामने आएंगे। सवाल यह भी है कि राज्य के मंत्री, नेता, प्रशासनिक अधिकारी व पुलिस अधिकारी क्या कोरोना नियमों का सख्ती से पालन कर रहे हैं? देश में अभिजात्य वर्ग व राजनीतिक दलों के शीर्ष नेताओं को मास्क न लगाने, आधा-अधूरा लगाने, राजनीतिक आयोजनों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न करने के मामले गाहे-बगाहे नजर आते हैं, क्या उन पर भी ऐसे सख्त जुर्माने लगाये गये हैं? पंजाब ने भी मास्क न लगाने, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न करने पर जुर्माना लगाया है। क्वारंटीन से भागने पर पांच हजार का तथा सामाजिक आयोजनों में लापरवाही पर दस हजार का जुर्माना तय किया गया। ये जुर्माना तर्कसंगत नजर आता है। बहरहाल, इस मुश्किल समय में कोरोना संक्रमण के नियमों का पालन करना हर नागरिक का दायित्व है। मगर साथ ही देश के राजनीतिक नेतृत्व, नौकरशाहों व पुलिस अधिकारियों को अनुकरणीय उदाहरण पेश करना चाहिए। शासन-प्रशासन और जनता के बीच विश्वास व सद्भाव का रिश्ता कायम होना चाहिए। इस बीच कोरोना योद्धाओं के हितों की अनदेखी और उनके वेतन तथा अन्य जरूरी सुविधाओं के न मिलने की खबर विचलित करने वाली है। अपना जीवन दांव पर लगा लोगों की सेवा में जुटे कोरोना योद्धाओं का ख्याल रखना सरकार और समाज की जवाबदेही है।