बहुचर्चित रणजीत सिंह हत्याकांड में पंचकूला की विशेष सीबीआई अदालत ने डेरामुखी गुरमीत राम रहीम समेत पांच दोषियों को सोमवार को उम्रकैद की सज़ा सुनाई है। राम रहीम पर 31 लाख तथा अन्य चार दोषियों पर पचास-पचास हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है, जिसकी आधी रकम पीड़ित पक्ष को मिलेगी। सज़ा सुनाते वक्त कोर्ट परिसर में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था रही और पंचकूला में धारा-144 लगायी गई। जहां डेरामुखी गुरमीत को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये अदालत में प्रस्तुत किया गया, वहीं अन्य चार आरोपी पुलिस सुरक्षा में अदालत में पेश हुए। इस मामले में अदालत ने आठ अक्तूबर को फैसला लिखा था, जिसमें सज़ा की घोषणा 12 अक्तूबर को होनी थी, लेकिन डेरामुखी ने रहम की गुहार लगाई और कहा था कि वह कई रोगों से ग्रस्त है और उसने समाज सेवा के बहुत से काम भी किये हैं, अत: उसे सज़ा में छूट दी जाये। यह फैसला भारतीय लोकतंत्र में कानून राज को पुष्ट करता है। कोई व्यक्ति कितना भी ताकतवर क्यों न हो एक दिन कानून के तहत कृत्यों की सज़ा जरूर पाता है। हालांकि, मामले में सज़ा मिलने में 19 साल लगे, लेकिन इस हाईप्रोफाइल मामले को तार्किक परिणति देना इतना आसान भी नहीं था। न्यायिक प्रक्रिया में बाधा पहुंचाने के लिये हिंसा, प्रदर्शन, धरने और यहां तक कि सीबीआई जज को धमकी तक दी गई। राजनीति व पुलिस-प्रशासन में गहरी दखल रखने वाले रसूखदार शख्स को सज़ा मिलना निस्संदेह भारतीय लोकतंत्र व देश की कानून व्यवस्था की मजबूती को ही दर्शाता है। दरअसल, 10 जुलाई, 2002 को कुरुक्षेत्र के रहने वाले डेरे के पूर्व मैनेजर रणजीत सिंह की हत्या कर दी गई थी। डेरामुखी को शक था कि साध्वी के यौन शोषण के मामले के खुलासे में रणजीत सिंह की भूमिका थी। इसके बाद रणजीत सिंह के बेटे ने जनवरी, 2003 में हाईकोर्ट में याचिका दायर करके मामले की सीबीआई जांच की मांग की थी।
कालांतर हाईकोर्ट ने फैसला बेटे के पक्ष में सुनाकर मामले की जांच वर्ष 2003 में सीबीआई को सौंपी थी, जिसमें 2007 में आरोपियों पर आरोप फ्रेम किये गये। उल्लेखनीय है कि डेरामुखी गुरमीत पहले ही एक पत्रकार की हत्या और साध्वी के बलात्कार मामले में जेल में सज़ा काट रहा है। दरअसल, 1948 में शाह मस्तान द्वारा सिरसा में स्थापित डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख की गद्दी श्रीगंगानगर में जन्मे राम रहीम ने येन-केन-प्रकारेण 1990 में हासिल कर ली थी। देश में डेरे के दर्जनों आश्रम और लाखों की संख्या में अनुयायी हैं। डेरा कई सेवा प्रकल्प संचालित करने की बात कहता है। यूं तो डेरे से जुड़े विवाद लंबे समय से सामने आ रहे थे लेकिन बड़ा मामला तब प्रकाश में आया जब वर्ष 2002 में एक साध्वी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर डेरा प्रमुख पर यौन शोषण का आरोप लगाया था। बाद में इस पत्र को छापने वाले एक अखबार के संपादक रामचंद्र छत्रपति की हत्या कर दी गई। इसके उपरांत मामला सीबीआई को सौंप दिया गया। वैसे वर्ष 2007 में सिख गुरु की वेशभूषा में फोटो खिंचवाने पर डेरा समर्थकों व सिखों के बीच लंबा हिंसक टकराव भी हुआ। इस बीच न्यायिक प्रक्रिया को बाधित करने के भी तमाम प्रयास किये गये, लेकिन अंतत: न्याय की जीत हुई। इसके अलावा एक डेरा मैनेजर फकीर चंद की गुमशुदगी के मामले में सीबीआई तार्किक परिणति तक नहीं पहुंच पायी थी। इसी बीच डेरे के सैकड़ों साधुओं को नपुंसक बनाने के भी आरोप लगे। इस बाबत जुलाई, 2012 में उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई। यह मामला अदालत में विचाराधीन है। ये सारे प्रकरण और अदालत का फैसला समाज में अंधभक्ति से इतर तार्किक आस्था की जरूरत बताते हैं। यह भी कि हर व्यक्ति को गलत बात का विरोध करना चाहिए, चाहे ओहदेदार कितना भी बड़ा क्यों न हो। नसीहत धर्म गुरुओं को भी कि नैतिक पथ से भटकने की फिसलन जेल के सींखचों के पीछे ले जाती है।