मोदी सरकार की आत्मनिर्भर भारत की पहल के क्रम में रक्षा मंत्रालय ने भी इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए 101 रक्षा उत्पादों के आयात पर चरणबद्ध तरीके से रोक लगाने की घोषणा की है। स्वदेशी आयुध सामग्री के निर्माण का ढांचा तैयार करने के लिये वक्त भी मिल जाये और सेना को रक्षा उत्पादों की आपूर्ति में बाधा भी उत्पन्न न हो, इसीलिये आयात पर रोक चरणबद्ध तरीके से लगायी जायेगी। यह पहल इस मायने में महत्वपूर्ण है कि भारत की गिनती दुनिया में सबसे ज्यादा हथियार खरीदने वाले देशों में होती है। दूसरी ओर पाक व चीन की सीमाओं पर सुरक्षा चुनौतियों में लगातार इजाफा हुआ है। वहीं विगत में हर बड़े रक्षा सौदों में बिचौलियों की भूमिका को लेकर जो विवाद उठते रहे हैं, उसका भी पटाक्षेप हो सकेगा। साथ ही जहां भारत में रक्षा उद्योग का विकास होगा, वहीं देश में रोजगार के अवसरों में आशातीत वृद्धि हो सकेगी। यदि सधे हुए कदम से आगे बढ़ा जाये तो संभव है भविष्य में भारत हथियारों के निर्यातक देशों में भी शुमार हो जाये। निस्संदेह देश में सरकारी स्तर पर सेनाओं की जरूरत के सामान का निर्माण आयुधशालाओं में होता रहा है, लेकिन आधुनिकीकरण के अभाव तथा निजी क्षेत्र की भागीदारी न हो पाने के कारण हम रक्षा उत्पादों के मामले में दूसरे देशों पर ही निर्भर रहे। मौजूदा वक्त में रक्षा उत्पादों के स्वदेशीकरण से सेना को आत्मनिर्भर बनाने में मदद मिल सकती है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का कहना है कि 101 रक्षा उत्पादों के आयात पर रोक लगाने का फैसला मंत्रालय ने सभी संबंधित पक्षों से कई बार विचार-विमर्श करके लिया है। इस विमर्श में सैन्य बल, निजी व सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमी शामिल रहे, जिससे वर्तमान व भविष्य की जरूरत के रक्षा उत्पादों की क्षमता का अनुमान लगाया जा सके। इस प्रयास से भविष्य में सेना को अपनी जरूरत के आवश्यक हथियार समय पर मिलने में कोई दिक्कत नहीं आयेगी। निस्संदेह देश रक्षा जरूरतों की पूर्ति में किसी भी तरह का व्यवधान नहीं चाहेगा।
दरअसल, रक्षा मंत्रालय द्वारा जिन उत्पादों के आयात पर रोक लगाने का निर्णय किया गया है, उनमें सामान्य वस्तुएं ही नहीं वरन सैन्य बलों की जरूरतों को पूरा करने वाली अत्याधुनिक तकनीक वाली असॉल्ट राइफलें, आर्टिलरी गन, रडार व ट्रांसपोर्ट एयरक्राप्ट आदि रक्षा उत्पाद भी शामिल हैं। मंत्रालय का कहना है कि आगामी छह-सात सालों में घरेलू रक्षा उद्योग को लगभग चार लाख करोड़ के अनुबंध दिये जायेंगे, जिसमें पारंपरिक पनडुब्बियां, मालवाहक विमान, क्रूज मिसाइलें व हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टर भी शामिल होंगे। वर्तमान वित्त वर्ष में घरेलू रक्षा उद्योग के लिये बावन हजार करोड़ के पृथक बजट का प्रावधान किया गया है। सेना में हथियारों की आपूर्ति बाधित न हो, इसलिये इसे चरणबद्ध तरीके से वर्ष 2020 से 2024 के मध्य क्रियान्वित करने की प्लानिंग है। इस रणनीति के तहत सेना व वायु सेना के लिये एक लाख तीस हजार करोड़ रुपये तथा नौसेना के लिये एक लाख चालीस हजार करोड़ के उत्पाद तैयार किये जाने की योजना है। हमें मौजूदा तथा भविष्य की रक्षा जरूरतों का गहराई से आकलन करना होगा। इसकी वजह यह भी है कि रक्षा उत्पादों के क्षेत्र में तकनीकों में तेजी से बदलाव होता रहता है। सभी उत्पादों की आपूर्ति निर्धारित समय सीमा में हो और सेना की जरूरतों में किसी तरह का कोई व्यवधान उत्पन्न न हो। देश की रक्षा के मुद्दे पर किसी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता। इसके लिये जरूरी है कि तीनों सेनाओं और रक्षा उद्योग के मध्य बेहतर तालमेल स्थापित हो। इसके लिये कारगर तंत्र विकसित किया जाना भी जरूरी है। अभी अन्य उत्पादों के बारे में भी मंथन की जरूरत है, जिनका निर्माण देश में करके दुर्लभ विदेशी मुद्रा को बचाया जा सके। साथ ही यह भी जरूरी है कि देश रक्षा उत्पाद गुणवत्ता के मानकों पर खरा उतरे क्योंकि यह देश की सुरक्षा का प्रश्न है और हमारे सैनिकों की जीवन रक्षा का भी।