आखिरकार डेढ़ साल की मेहनत के बाद एनआईए ने पुलवामा हमले में पाक की भूमिका के महत्वपूर्ण साक्ष्य जुटाये हैं। जो भारत सरकार के उन आरोपों की पुष्टि करते हैं कि इस हमले को अंजाम देने में पाक की खुफिया एजेंसी आईएसआई और संस्थाओं की भूमिका रही है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआईए ने पुलवामा हमले पर 13,800 पन्नों का आरोप पत्र जम्मू की विशेष अदालत में दाखिल किया है, जिस पर सितंबर में सुनवाई होनी है। गत वर्ष 14 फरवरी को हुए इस घातक हमले में सीआरपीएफ के काफिले पर बारूद से भरी कार टकराकर चालीस जवानों को शहीद कर दिया गया था। आरोप पत्र में 19 लोगों के नाम हैं, जिन्होंने हमले को अंजाम दिया था। इस सूची में जैश-ए-मोहम्मद का सरगना मसूद अजहर, उसका भाई रऊफ असगर और अम्मार अल्वी तथा भतीजा मुहम्मद उमर फारूख भी शामिल हैं, जिसे सुरक्षाबलों ने एक मुठभेड़ में मार गिराया था। वह वर्ष 1999 में एयर इंडिया के अपहृत विमान आईसी-814 का अपहरण करने वाले मुहम्मद अतहर का पुत्र था। उल्लेखनीय है कि इस अपहरण के एवज में मसूद अजहर की रिहाई कराई गई थी। बहरहाल, इस जांच में सारे घटनाक्रम के तकनीकी व परिस्थितिजन्य पाक की भूमिका वाले पुख्ता साक्ष्य हैं। सावधानीपूर्वक की गई जांच में अजहर के भाई की आवाज फोरेंसिक रूप में मेल खाती है। हमले की चर्चा करने वाले पाक के अधिकारियों के साक्ष्य, फारूख का आई-कार्ड, तमाम स्थितियों की तस्वीरें और व्हाट्सएप कॉल के लॉग ऐसे ठोस सबूत हैं जो भारत में होने वाले बड़े हमलों में पाक की खुफिया एजेंसी और सरकारी विभागों की संदिग्ध भूमिका की ओर इशारा करते हैं। साक्ष्य बताते हैं कि कैसे एक सुनियोजित साजिश को अंजाम देते हुए दो सौ किलो विस्फोटक से लदी कार को सीआरपीएफ के काफिले से टकराया गया। इस मामले में 19 लोगों को अभियुक्त बनाया गया था, जिसमें छह को खत्म कर दिया गया, सात को गिरफ्तार किया गया और छह अभियुक्त फरार हैं।
जाहिर हुआ है कि सीमा पार से रची गई इस भयानक साजिश में सीमापार के आतंकियों समेत तीन स्थानीय आतंकवादी शामिल थे। जब एक सितंबर को मामले में सुनवाई होगी तो पाकिस्तान के आतंकवाद पोषण की हकीकत से दुनिया वाकिफ होगी। हालांकि, अतीत के अनुभव बताते हैं कि ठोस साक्ष्य देने के बावजूद पाकिस्तान ने भारत की दलीलों को नजरअंदाज किया है। मुंबई में 26/11 हमले के सूत्रधार हाफिज सईद के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य दिये जाने के बाद भी वह खुलेआम घूम रहा है और भारत के खिलाफ विषवमन कर रहा है। भारत को इन साक्ष्यों को आधार बनाकर विश्व बिरादरी को पाक की हकीकत बतानी चाहिए। दुनिया में आतंकवाद को संरक्षण देने वाली सरकारों पर नजर रखने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था एफएटीएफ को भी साक्ष्य उपलब्ध कराये जाने चाहिए, जिसने पाकिस्तान की संदिग्ध भूमिका के चलते उसे ग्रे सूची में शामिल किया हुआ है, जिसके चलते ऐसे देश को अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सहायता प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है। यदि भारत ऐसा करता है तो एफएटीएफ की अक्तूबर में होने वाली बैठक में पाक को काली सूची में डाला जा सकता है। यही वजह है कि पिछले दिनों पाकिस्तान सरकार ने उन आतंकवादियों व उनके संगठनों पर कार्रवाई का प्रपंच किया, जिन्हें एफएटीएफ ने सूचीबद्ध किया हुआ है। इस सूची में करीब सौ लोग शामिल हैं। इनमें लश्कर के प्रमुख हाफिज सईद, 26/11 हमले के आरोपी लखवी व मसूद अजहर भी शामिल हैं। पाकिस्तान से तो यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह अब भी सीमा पार से आतंकियों को भेजने और हथियार आदि देने से पीछे हटेगा। यह तभी संभव होगा जब उस पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बनाया जायेगा। भारत सरकार की कोशिश होनी चाहिए कि एनआईए की मेहनत बेकार न जाये। पुलवामा हमले के दोषियों को सजा दिलाने के लिये नई रणनीति बनाने की जरूरत है। बालाकोट की सर्जिकल स्ट्राइक जैसे कठोर कदम के लिये भारत को आगे भी तैयार रहने की जरूरत है। साथ ही देश के खुफिया तंत्र को मजबूत बनाने की भी जरूरत है।