इस साल के दौरान यह दूसरा अवसर है जब सरकारी भर्ती प्रक्रिया को लेकर उपजे आक्रोश के चलते हिंसक प्रदर्शन हुए हैं। हाल-फिलहाल तो सेना में भर्ती की अग्निपथ योजना के खिलाफ बिहार समेत कुछ राज्यों में हिंसक प्रदर्शन व आगजनी की घटनाएं सामने आई हैं, लेकिन इससे पहले जनवरी में रेलवे में भर्ती प्रक्रिया में विलंब को लेकर बिहार में ही हिंसक प्रदर्शन हुए थे। यह स्थिति युवाओं के सपने दरकने और इससे उपजे आक्रोश की बानगी दर्शाती है। निस्संदेह, देशकाल परिस्थितियों के चलते देश में बेरोजगारी संकट गहरा रहा है। युवाओं के इस गुस्से को शांत करने के लिये सरकार ने अग्निपथ योजना में कुछ रियायतों व सुविधाओं की घोषणा की है। कहना कठिन है कि इन घोषणाओं से युवाओं का आक्रोश किस हद तक थमा है। बहरहाल केंद्र सरकार को भी इस बात का अहसास है कि देश में बेरोजगारी का संकट गहरा है। तभी केंद्र ने अगले डेढ़ वर्षों में सरकार के विभिन्न विभागों में दस लाख भर्तियों की घोषणा की है। कयास यह भी हैं कि घोषणा आम चुनाव से पहले राजनीतिक बढ़त हासिल करने हेतु की गई है। बहरहाल, रोजगार संकट को गंभीरता से लेने की जरूरत है। केंद्र की तरह राज्यों में भी मिशन मोड में भर्ती योजनाएं चलाने की जरूरत है। खासकर आवश्यक सेवाओं मसलन चिकित्सा व पुलिस आदि विभागों में, जहां रिक्त पदों के चलते नागरिक सेवाएं बाधित हो रही हैं।
दरअसल, विडंबना ही है कि युवा आबादी के इस देश में हम उन्हें रोजगार के पर्याप्त अवसर मुहैया नहीं करा पा रहे हैं। ऐसा भी नहीं है कि यह संकट अचानक पैदा हुआ है। वर्ष 2017-18 में राष्ट्रीय नमूना सर्वे कार्यालय ने रोजगार सर्वेक्षण में बताया था कि देश में बेरोजगारी पिछले 45 साल के उच्च स्तर छह प्रतिशत से अधिक है, जिसको लेकर सरकार की तरफ से लीपापोती का प्रयास किया गया। एक अन्य अध्ययन के निष्कर्ष में अप्रैल, 2019 में बताया गया कि नवंबर, 2016 की नोटबंदी के चलते देश भर में पचास लाख लोगों ने काम के अवसर खो दिये थे। वहीं 2020 में कोविड महामारी रोकने को लगाये गए सख्त लॉकडाउन के चलते देश में बड़ी संख्या में नौकरियां खत्म हुईं। विशेष रूप से अनौपचारिक क्षेत्र में बड़ी संख्या में रोजगार के अवसरों का संकुचन हुआ। निस्संदेह, इस स्थिति को सामान्य होने में लंबा वक्त लग सकता है। मगर देश में जारी युवाओं के असंतोष के कई घातक परिणाम भी सामने आ सकते हैं। रोजगार के अवसरों में कमी व नौकरी की सुरक्षा को लेकर कमी के चलते उपजे हिंसक आंदोलन से देश में आर्थिक सुधारों के पटरी से उतरने का खतरा भी पैदा हो गया है। जाहिर तौर पर सामाजिक असंतोष के चलते उपजे हालात में आकर्षक निवेश आने में बाधा उत्पन्न हो सकती है। वहीं दूसरी ओर लगातार जारी असंतोष से कानून व्यवस्था बाधित होने से सामाजिक अस्थिरता को बढ़ावा मिल सकता है। खासकर ऐसे वक्त में जब सांप्रदायिक सद्भाव को चुनौती मिल रही है।