डिजिटल अरेस्ट
यह विडंबना है कि जब तक देश में कथित डिजिटल अरेस्ट के नाम पर अनुमानित तीन हजार करोड़ रुपये से अधिक ठगी की जा चुकी है, कई लोग अपनी जान गवां चुके हैं, अपराधियों पर शिकंजा कसने की बड़ी मुहिम शुरू हो पा रही है। वह भी सरकार के बजाय शीर्ष अदालत की पहल पर। सुप्रीम कोर्ट ने डिजिटल अरेस्ट पर गंभीर चिंता जताते हुए सीबीआई को निर्देश दिए हैं कि वह अन्य साइबर अपराधों की जांच बाद में करे, डिजिटल अरेस्ट की जांच को अपनी प्राथमिकता बनाए। कोर्ट ने केंद्रीय बैंक से पूछा है कि क्या एआई की मदद से साइबर ठगों के खाते फ्रीज हो सकते हैं? कोर्ट ने सीबीआई से कहा है कि यदि किसी गंभीर डिजिटल अपराध का दायरा भारत से बाहर की सीमा में हो तो वह इंटरपोल की मदद ले सकती है। दुखद है कि साइबर अरेस्ट के मामलों में सबसे अधिक निशाना बुजुर्गों को ही बनाया जाता है, जिन्हें डिजिटल लेन-देन की गंभीर जानकारी नहीं होती। बुजुर्गों को निशाना बनाने का यह प्रतिशत 78 से 82 फीसदी बताया जाता है। कई जगह यह प्रतिशत 99 फीसदी तक है। वहीं जनवरी से अप्रैल 2024 में साइबर धोखाधड़ी और डिजिटल अरेस्ट के 46 फीसदी मामलों के तार म्यांमार,कंबोडिया और लाओस जैसे दक्षिण पूर्व एशिया के देशों से जुड़े रहे हैं। निस्संदेह, हाल के वर्षों में डिजिटल गिरफ्तारी साइबर अपराध के सबसे कुटिल रूप में बनकर उभरी है। यह अपराध न केवल देश की वित्तीय सुरक्षा और स्थिरता के लिये, बल्कि कानून प्रवर्तन तंत्र में जनता के विश्वास के लिये भी बड़ा खतरा है। ऐसे में कहा जा सकता है कि इन घोटालों की देशव्यापी जांच सीबीआई को सौंपने का सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय समय के अनुरूप सार्थक हस्तक्षेप है। इसी क्रम में कोर्ट ने सभी राज्यों को निर्देश दिया है कि वे अपने अधिकार क्षेत्र में अपराधों की जांच के लिये सीबीआई को सहमति दें।
दरअसल, न्यायालय ने इस हकीकत को स्वीकार किया है कि साइबर अपराधी राज्यों की सीमाओं का लाभ उठाते हैं। वहीं दूसरी ओर टुकड़ों-टुकड़ों में जांच सीमा-पार के साइबर अपराधियों के नेटवर्क को बढ़ावा देती है। दरअसल, साइबर अपराधी डिजिटल अरेस्ट के जरिये भोले-भाले लोगों व बुजुर्गों को निशाना बनाते हैं। वे कानून प्रवर्तन अधिकारी या जज बनकर मोटी रकम देने के लिये उन्हें आतंकित करते हैं। उल्लेखनीय है कि हरियाणा के एक बुजुर्ग दंपति से एक करोड़ रुपये की ठगी के बाद अदालत ने इस व्यापक समस्या का स्वत: संज्ञान लिया। उन्हें धमकाने के लिये सुप्रीम कोर्ट के फर्जी आदेशों का इस्तेमाल किया गया। यह बेहद परेशान करने वाली स्थिति है कि साइबर अपराधी सार्वजनिक संस्थाओं के प्रति लोगों के विश्वास को खतरे में डाल रहे हैं। तभी शीर्ष अदालत ने महसूस किया कि अब पानी सिर के ऊपर से गुजरने लगा है, देश की केंद्रीय एजेंसी को इस मामले की तह तक तुरंत पहुंचना चाहिए। उल्लेखनीय है कि सीबीआई को डिजिटल अरेस्ट के मामलों में एफआईआर दर्ज करने और धोखाधड़ी से जुड़े बैंक खातों को फ्रीज करने की पूरी छूट दी गई है। साथ ही भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत बैंक अधिकारियों की कथित मिलीभगत की जांच का अधिकार भी दिया गया। इसके अलावा दूरसंचार विभाग को भी सिम कार्ड के दुरुपयोग पर अंकुश लगाने के लिये कहा गया है। निश्चित रूप से कोर्ट की सार्थक पहल के बाद यदि ये सभी उपाय सिरे चढ़ते हैं तो इस गंभीर अपराध के खिलाफ एक राष्ट्रीय प्रतिक्रिया दे पाना संभव होगा। कोर्ट ने विश्वास जताया है कि केंद्रीय एजेंसी बिना किसी भय या पक्षपात के जिम्मेदारी से अपने दायित्वों का निर्वहन करेगी। इसमें राज्य सरकारों की सक्रियता व सजगता भी सीबीआई को अपराध की तह तक पहुंचने में मददगार सबित हो सकती है। यह भी जरूरी है कि एजेंसी की कार्रवाई में लालफीताशाही और राजनीतिक हस्तक्षेप न हो। इसके साथ ही नागरिकों को भी ऐसे अपराधों के प्रति सजग रहना होगा। जागरूकता-सतर्कता उन्हें अपराधियों के चंगुल में फंसने से बचा सकती है। ऐसी किसी कॉल के आने पर उन्हें रुककर विचार करना चाहिए और हड़बड़ी में बैंक से जुड़ी कोई जानकारी देने से बचना चाहिए।
