भारत-चीन सीमा पर लगभग छह माह से जारी गतिरोध के बीच छठे चरण की कमांडर स्तरीय मैराथन बैठक में इस बात को लेकर सहमति बनी है कि दोनों देश सीमा पर और सैनिकों को भेजना बंद करेंगे। साथ ही कोई भी पक्ष यथास्थिति को एकतरफा नहीं बदलेगा। इसके अलावा गतिरोध को खत्म करने के लिए बातचीत की प्रक्रिया जारी रहेगी। सैन्य कमांडर स्तर की बातचीत में दोनों देशों के नेताओं के मध्य बातचीत में बनी सहमति को लागू करने की आवश्यकता पर बल दिया गया। साथ ही ऐसा कोई कदम न उठाने पर सहमति हुई जो हालात को जटिल बनाये और एलएसी में स्थिरता कायम करने में बाधक हो। यह भी तय हुआ कि एलएसी पर किसी तरह का निर्माण नहीं होगा। मगर एलएसी पर सैनिकों के पीछे हटने को लेकर कोई सहमति होती नजर नहीं आती। दोनों पक्ष इस बात पर भी सहमत नजर आए कि यथाशीघ्र कोर कमांडर स्तर के सातवें चरण की बैठक आयोजित करने के लिए प्रयास किये जायेंगे। यह भी कि सीमा पर शांति बनाये रखने के लिये सार्थक प्रयास किये जाने चाहिए। उल्लेखनीय है कि सितंबर के पहले सप्ताह में मास्को में विदेश मंत्री एस. जयशंकर और उनके चीनी समकक्ष वांग यी के मध्य पांच बिंदुओं पर सहमति हुई थी, जिसके बाद ही कोर कमांडर स्तर की बातचीत आरंभ हुई। उस बैठक में भारत की मांग थी कि चीन सभी संवेदनशील इलाकों से अपने सैनिकों को वापस बुलाये। भारत का कहना था कि सैनिकों की वापसी पारस्परिक स्तर पर नहीं होगी, बल्कि चीन तनावपूर्ण बने स्थानों से अपने सैनिकों को वापस बुलायेगा। इसके बावजूद चीन इस दिशा में कोई गंभीर पहल करता नजर नहीं आता। लगता है कि चीन इस विवाद को लंबा खींचने का प्रयास कर रहा है। दरअसल, एलएसी पूरी तरह परिभाषित नहीं होने का लाभ चीन उठाना चाहता है। इसे विवादित बनाकर वह भारत को उलझाये रखना चाहता है।
बहरहाल, अतीत के छल को ध्यान में रखते हुए भारत को लंबे समय तक चीन की चुनौती से मुकाबले के लिये रणनीति तैयार करनी होगी। चीन के साम्राज्यवादी मंसूबों का दंश ताइवान, वियतनाम, जापान से लेकर नेपाल तक झेल रहे हैं। सैन्य व आर्थिक ताकत ने चीन की भूमि कब्जाने की भूख को कई गुणा बढ़ा दिया है। हाल में आई ग्लोबल सिक्यॉरिटी कंसल्टेंसी की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि चीन ने एलएसी पर अपनी रक्षा तैयारियों को कई गुना बढ़ाया है। चीन ने एयरबेस की क्षमता दुगनी कर दी है। चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर करीब तेरह सैन्य ठिकानों का निर्माण आरंभ किया है, जिसमें स्थायी रक्षा तैनातियां और हेलीपैड भी शामिल हैं। मई में पूर्वी लद्दाख में भारतीय सेना से पीएलए के टकराव के बाद से ही चीन ने स्थायी सैन्य निर्माण में तेजी दिखायी है। रक्षा विशेषज्ञ बताते हैं कि डोकलाम विवाद में शिकस्त खाने के बाद से ही चीन ने अपनी सामरिक तैयारियों में तेजी कर दी थी। भारत उसके खतरनाक मंसूबों को भांपने में कहीं न कहीं चूका ही है। हालांकि, मास्को में विदेश मंत्री एस. जयशंकर की चीनी समकक्ष के साथ हुई बातचीत में स्पष्ट किया गया था कि भारत एलएसी में तनाव को नहीं बढ़ाना चाहता और चीन के प्रति हमारी नीति में कोई बदलाव नहीं आया है। इसके साथ ही दोनों पक्ष नेताओं के मध्य हुई सहमतियों का अनुपालन करेंगे। दोनों देशों ने बातचीत को बनाये रखने तथा तनाव को टालने के लिये प्रयास करने पर सहमति जतायी थी। इसके अलावा सीमा पर शांति बनाये रखने के लिये विगत में हुए समझौतों और प्रोटोकॉल का पालन करने पर भी सहमति बनी थी। लेकिन भारत चाहता है कि मार्च से पहले की स्थिति को बहाल करके विवादों को सुलझाने की दिशा में आगे बढ़ा जाये। ऐसे वक्त में जब सैन्य व राजनयिक स्तर की बातचीत के ठोस परिणाम नजर नहीं आए तो जरूरी हो जाता है कि तनाव कम करने के लिये शीर्ष राजनीतिक स्तर पर पहल की जाये।