लोकतांत्रिक असहिष्णुता : The Dainik Tribune

लोकतांत्रिक असहिष्णुता

विपक्ष की अस्मिता भी स्वीकारे सत्ता

लोकतांत्रिक असहिष्णुता

कहना कठिन है कि यह संयोग है या सुनियोजित पटकथा कि गुजरात की एक अदालत ने मानहानि मामले में राहुल गांधी के खिलाफ सज़ा तब सुनाई, जब ब्रिटेन में उनके भारतीय लोकतंत्र के बाबत दिये गये बयानों पर सत्तारूढ़ दल हमलावर बना हुआ है। राहुल पर न केवल सार्वजनिक मंचों से भाजपा नेताओं व मंत्रियों के हमले जारी थे, बल्कि संसद की कार्यवाही भी लंबे समय तक उनके माफी मांगने के मुद्दे पर गतिरोध में फंसी रही है। अब लोकसभा सचिवालय द्वारा शुक्रवार को जारी एक पत्र में राहुल गांधी की संसद सदस्यता भी रद्द कर दी गई है। बहरहाल, वर्ष 2019 में कर्नाटक की एक सभा में मोदी सरनेम को लेकर दिये गये कथित विवादास्पद बयान के बाबत सूरत कोर्ट में दर्ज मानहानि केस में गुरुवार को दो साल की सज़ा सुनाये जाने तथा शुक्रवार को उनकी सदस्यता रद्द करने को विपक्ष राजनीतिक बदले की कार्रवाई बता रहा है। इसमें दो राय नहीं जब देश में बिखरा विपक्ष सत्ता की महत्वाकांक्षाओं को लेकर एकजुट नहीं हो पाया है तो ऐसे में राहुल गांधी ही भारी बहुमत से सत्ता में आई राजग सरकार से हर मामले में मोर्चा लेते रहे हैं। कहीं न कहीं भाजपा अपने कांग्रेस मुक्त भारत के एजेंडे को अमलीजामा पहनाने की कवायद में जुटी नजर आती है। लेकिन यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि राहुल गांधी न केवल सड़क बल्कि संसद में भी केंद्र की रीति-नीतियों को लेकर आक्रामक प्रतिरोध दर्ज कराते रहे हैं। पिछले दिनों कन्याकुमारी से कश्मीर तक की उनकी पदयात्रा को पूरे देश में सकारात्मक प्रतिसाद मिला था। वे विभिन्न मंचों व स्थानों से लगातार प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी पर हमलावर रहे हैं। निस्संदेह, लोकतंत्र में सशक्त विपक्ष अनिवार्य शर्त है। मुखर विपक्ष एक मार्गदर्शक और सचेतक का काम करता है। वह सत्तापक्ष को निरंकुश व्यवहार करने से रोकता है। किसी भी देश में सशक्त विपक्ष लोकतंत्र की खूबसूरती को दर्शाता है। सही मायनों में लोकतंत्र राजतंत्र, कुलीनतंत्र और किसी व्यक्ति केंद्रित शासन के विपरीत सहभागिता-सहयोग का पक्षधर होता है।

निस्संदेह, भारत जैसे विविध संस्कृति और धर्मों के देश में उदार लोकतंत्र की कल्पना हमारे संविधान निर्माताओं ने की है। आज़ादी के बाद कई दशकों तक भारतीय लोकतंत्र उसी राह पर चला। आपातकाल के अलावा भी आज़ादी के बाद देश की राजनीति में वर्चस्व के चलते कांग्रेस सरकारों के दौरान भी विपक्ष को दबाने तथा सरकारी एजेंसियों के दुरुपयोग के मामले जब-तब प्रकाश में आते रहे। हाल के दिनों में राजग सरकार में विपक्षी दलों के नेताओं की घेराबंदी के लिये जिस तरह आयकर विभाग, ईडी तथा सीबीआई का इस्तेमाल किया गया, उसे लोकतंत्र के लिये अच्छा संकेत कभी नहीं कहा जा सकता। सवाल उठाये जाते रहे हैं कि भाजपा शासित राज्यों के नेताओं के खिलाफ ये सरकारी एजेंसियां कार्रवाई क्यों नहीं करतीं? दूसरे दलों से आये दागी नेता भाजपा व अन्य सहयोगी दलों में आने पर दूध के धुले कैसे हो जाते हैं? राहुल गांधी व कांग्रेस को घेरने के लिये भी नेशनल हेराल्ड प्रकरण में छापेमारी चलती रही है। यह जानते हुए कि पार्टी के मुखपत्र नेशनल हेराल्ड के जरिये पार्टी अपने आर्थिक हितों का पोषण करती रही है, फिर भी उसे निशाने पर लगातार लिया जाता रहा है। बहरहाल, मानहानि मामले में राहुल गांधी को सज़ा और उनकी सदस्यता खत्म करने का मामला अगले कुछ समय तक तीखे राजनीतिक विमर्श का मुद्दा बनेगा। निस्संदेह, कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर कुछ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव व अगले साल होने वाले महासमर के चुनावों तक जायेगी। पार्टी राहुल गांधी को पीड़ित के रूप में जनता की चौखट तक ले जायेगी क्योंकि पार्टी को पता है देश की जनता के फैसलों की सहानुभूति जब-तब वोटों में तब्दील होती है। बहरहाल, इस प्रकरण से विपक्ष को भी सबक मिलेगा कि एकजुटता के साथ भाजपा व नरेंद्र मोदी का मुकाबला किया जा सकता है। कयास लगाये जा रहे हैं कि आने वाले दिनों में देश में विपक्ष को एकजुट करने के अभियान में तेजी आयेगी।

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