रक्षा प्राथमिकताएं : The Dainik Tribune

रक्षा प्राथमिकताएं

आयात व परियोजना में देरी को टालें

रक्षा प्राथमिकताएं

ऐसे वक्त में जब दुनिया में युद्ध लगातार हाईटेक होते जा रहे हैं, और चीन व पाकिस्तान की तरफ से निरंतर प्रतिरक्षा संबंधी नई-नई चुनौतियां मिल रही हैं, हमें अपनी रक्षा तैयारियों में किसी भी तरह की ढील नहीं देनी चाहिए। इसके लिये उन्नत तकनीक वाले हथियारों से सेना को तुरंत लैस करने तथा रक्षा परियोजनाओं के लक्ष्य भी समय से पूरा करने की सख्त जरूरत है। रक्षा मामलों पर संसद की स्थायी समिति द्वारा बीते मंगलवार को लोकसभा में पेश की गई रिपोर्ट में ऐसी तमाम चिंताओं का जिक्र किया गया है। समिति भारतीय सेना के सामने विद्यमान चुनौतियों का विस्तृत उल्लेख करती है। रिपोर्ट में चिंता व्यक्त की गई है कि वायु सेना को आपूर्ति के लिये हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा तैयार किये जा रहे तेजस लाइट कॉम्बैट एयरक्राप्ट यानी एलसीए की सप्लाई में देरी हुई है। वायुसेना की जरूरतों को देखते हुए सरकार को आगाह किया गया है कि बिना अधिक समय गंवाए पांचवीं पीढ़ी के अत्याधुनिक लड़ाकू विमान खरीदने पर तुरंत विचार किया जाना चाहिए। दरअसल, ये आधुनिक विमान थल सेना को हवाई सहायता, नजदीकी युद्ध और जमीनी हमलों से देश को सुरक्षित करने की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण हैं। यहां उल्लेखनीय है कि एक अन्य संसदीय पैनल ने भी इस समस्या की ओर दो साल पहले ध्यान दिलाया था। पैनल का कहना था कि हितधारकों के बीच समन्वय की कमी और निगरानी एजेंसियों के द्वारा समय सीमा निर्धारित करने के लिये ढुलमुल दृष्टिकोण के चलते तेजस प्रोजेक्ट के कार्यान्वयन में विलंब हुआ है। यह स्वीकार्य नहीं है कि प्रमुख लड़ाकू जेट के डिजाइन, सिस्टम और हथियारों को उन्नत बनाने के मुद्दे में अनावश्यक विलंब हो। निस्संदेह, ऐसी महत्वपूर्ण परियोजना में विलंब से जहां लागत बढ़ जाती है, वहीं समय की चुनौती का मुकाबला करना कठिन हो जाता है। ऐसे में नियामक तंत्र को सजग, सचेत और समय पर आपूर्ति के लिये क्रियाशील रहने की जरूरत है।

इसमें दो राय नहीं कि चारों दिशाओं से देश की घेराबंदी करने वाले चीन और हमेशा भारत विरोधी कृत्यों में लिप्त रहने वाले पाकिस्तान की चुनौती को देखते हुए हमें हर समय उच्च स्तर की रक्षा तैयारियां बनाये रखने की आवश्यकता है। यही वजह है कि संसदीय समिति ने सुझाव दिया है कि चीन व पाकिस्तान की चुनौती को देखते हुए सेना के पूंजीगत बजट को अविलंब बढ़ाया जाये। सीमा पर लगातार उपस्थित खतरे के चलते ऐसा करना अपरिहार्य ही है। निस्संदेह, हर तरह से सेना की क्षमता बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। रक्षा संसाधनों का आधुनिकीकरण और स्वदेशीकरण भी समय की मांग है। सरकार कोशिश करे कि इस कार्य में वित्तीय संसाधनों की कमी न हो। वहीं यह भी जरूरी है कि रक्षा जरूरतों के स्वदेशीकरण व आधुनिकीकरण के लिये आवंटित धन का अधिकतम उपयोग होना चाहिए। साथ ही यह भी कि इनका लाभ सेना को समयबद्ध ढंग से मिले। निस्संदेह, सेना का लगातार बढ़ता आयात बिल एक अन्य बड़ी चुनौती है। ऐसे में आयात कम करना हमारी प्राथमिकता होना चाहिए। आयात तब कम होंगे जब देश सैन्य उपकरणों व आधुनिक हथियारों के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनेगा। ऐसे में हमें न केवल सेना की जरूरतों को देखते हुए उत्पादन बढ़ाना है, बल्कि देश में तैयार सैन्य उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने की भी जरूरत है। निस्संदेह, यदि देश में स्वदेशीकरण के अभियान को गति दी जाती है तो न केवल हम अपनी जरूरतें देश में ही पूरा कर सकेंगे, बल्कि निर्यात के जरिये दुर्लभ विदेशी मुद्रा भी हासिल करके अर्थव्यवस्था को संबल दे सकते हैं। विदेशी स्रोतों पर हथियारों की निर्भरता कम करने से हम अपनी संप्रभुता की रक्षा करने में कामयाब होंगे। लेकिन जरूरी है कि हम विमान, हथियार व अन्य उपयोगी उपकरणों की आपूर्ति समय सीमा के भीतर करें। इस कार्य में सक्षम व योग्य भारतीय निजी उत्पादकों को भी मौका दिया जाना चाहिए। यह जानते हुए कि 21वीं सदी के युद्ध बहुत हाईटेक हो चले हैं। जिसमें रेडी-टू-यूज हथियारों की खास अहमियत है। यह जानते हुए कि किसी सशस्त्र संघर्ष में पिछड़ने के मायने हैं कि शिकस्त को टाला नहीं जा सकेगा।

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