आतंकवाद के पोषक पाकिस्तान को तब करारा झटका लगा जब फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स यानी एफएटीएफ ने उसे ग्रे लिस्ट में बनाये रखने का फैसला लिया। पाक को दोहरा झटका इस बात से लगा है कि कश्मीर मुद्दे पर पाक से सुर मिलाने वाला उसका आका तुर्की भी ग्रे लिस्ट में शामिल हो गया है। दरअसल अब तक तुर्की ही पाक को ब्लैक लिस्ट में शामिल होने से रोकने के प्रयासों में लगा रहता था। इसे भारत सरकार की कूटनीतिक कामयाबी माना जा रहा है। भारत, पाक की जमीन से संचालित किये जा रहे आतंकवादी हमलों के खिलाफ विश्व जनमत को चेताता रहा है। पाक इसे भारत के दबाव में की गई कार्रवाई बता रहा है। हालांकि, एफएटीएफ के प्रमुख मार्कस प्लीयर ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया है कि भारत के दबाव में पाक को ग्रे लिस्ट में रखा गया है। उनका कहना था कि यह एक तकनीकी बॉडी है और सर्वसम्मति से ही फैसला लिया जाता है। उन्होंने पाक को नसीहत दी कि वह प्रतिबंधित आतंकवादियों और आतंकवादी समूहों के खिलाफ जांच के साथ सख्त कार्रवाई करे। हालांकि, पाक का दावा है कि उसने 34 में से तीस प्वाइंट पर काम पूरा किया है। दरअसल, वित्तीय संकट से जूझ रहे पाक के लिये यह एक सप्ताह में दूसरा झटका है। पिछले दिनों पाक के तमाम प्रयासों के बावजूद आईएमएफ ने उसे कर्ज की पहली किस्त देने से मना कर दिया था। दरअसल, वैश्विक संस्था एफएटीएफ मनी लॉन्ड्रिंग व आतंकवादियों को वित्त पोषण के खतरे के चलते ही किसी देश को ग्रे लिस्ट में डालती है। जिसके बाद उस देश को आईएमएफ, विश्व बैंक तथा एशिया विकास बैंक आदि से ऋण मिलना मुश्किल हो जाता है। दरअसल, जी-7 देशों ने वर्ष 1989 में एफएटीएफ की स्थापना गैरकानूनी वित्तीय गतिविधियों के नियंत्रण के लिये की थी, जिसका मुख्यालय फ्रांस में है। वर्ष 2001 में आतंकवाद के वित्त पोषण को भी इसमें शामिल किया गया था।
दरअसल, वर्ष 2018 से पाक मनी लॉन्ड्रिंग व आतंकवादियों के वित्त पोषण के चलते इस संस्था की निगरानी में है। पाक ग्रे लिस्ट से बाहर आने के लिये छटपटा रहा है। वह इसके लिये लगातार भारत पर आरोप लगाता रहा है। संस्था के नियमों के हिसाब से तीन देशों के समर्थन से कोई देश ब्लैक लिस्ट में जाने से बच सकता है। अब तक सदस्य देश चीन, तुर्की व मलेशिया पाक की पैरवी करते रहे हैं, लेकिन अब तुर्की के ग्रे लिस्ट में आ जाने से पाक की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। इससे पहले पाक को वर्ष 2011 में भी ग्रे लिस्ट में डाला गया था। एक अनुमान के अनुसार इस लिस्ट में शामिल होने से पाक को हर साल करीब दस अरब डॉलर का नुकसान होता है। दरअसल, किसी देश को ग्रे लिस्ट में शामिल करना एक चेतावनी माना जाता है कि यदि चरमपंथी संगठनों को मिलने वाली आर्थिक मदद को नहीं रोका गया तो उसे ब्लैक लिस्ट में शामिल कर दिया जायेगा। जैसे कि उत्तरी कोरिया और ईरान को शामिल किया गया है। काली सूची में आने के बाद किसी भी देश पर वैश्विक व्यापार करने पर कई तरह के प्रतिबंध लग जाते हैं और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संगठनों से वित्तीय मदद लेने में परेशानी होती है। इतना ही नहीं, वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां भी ऐसे देश की साख का अवमूल्यन कर देती हैं। जाहिर है भारत के खिलाफ आतंकी साजिश रचने वाले तथा यूएन की आतंकवादी सूची में शामिल हाफिज सईद व मसूद अजहर जैसे खूंखार आतंकवादियों के खिलाफ कारगर कार्रवाई न करने पर पाक को ग्रे सूची से बाहर नहीं निकाला जा सका है। इसे एक तरह से भारत की कूटनीतिक जीत कहा जा सकता है जो पाक को ग्रे लिस्ट में बना देखना चाहता है क्योंकि उसने आतंकवादी सरगनाओं के खिलाफ महज दिखावे की कार्रवाई की है। निस्संदेह इससे उसकी अंतर्राष्ट्रीय साख को बट्टा लगा है। उम्मीद है कि पाक एफएटीएफ द्वारा निर्देशित आतंकवादियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई, सजा और आर्थिक सहायता पर प्रतिबंध की शर्तों को पूरा करके ठोस सबूत देगा।