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दिमाग में चिप

इंसान को गिनी पिग न बना दें कारोबारी

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प्रथम दृष्टया यह खबर चौंकाती है कि इंसान के दिमाग में कृत्रिम चिप का प्रत्यारोपण सफलता पूर्वक किया गया है। विज्ञान के जरिये मानव कल्याण के क्षेत्र में किये गये हर शोध-अनुसंधान का स्वागत ही किया जाना चाहिए। लेकिन संवेदनशील मस्तिष्क में चिप लगाने के क्रम में इंसान के रोबट बन जाने की आशंकाएं भी निर्मूल नहीं हैं। ध्यान रहे कि यह प्रत्यारोपण किसी सरकारी चिकित्सा शोध संस्थान या विश्वविद्यालय में नहीं हुआ है। यह प्रत्यारोपण दुनिया के सबसे अमीर शख्सों में शुमार एलन मस्क की कंपनी न्यूरालिंक ने किया है। वही मस्क जिन्होंने ट्विटर खरीदने और उसे एक्स में तब्दील करने के क्रम में कर्मचारियों की निर्ममता से छंटनी की थी। वही मस्क जो विश्व के अरबपतियों को अंतरिक्ष में सैर-सपाटा कराने के अलावा दुनिया के तमाम बड़े मुनाफे के कारोबार में लगे हुए हैं। जाहिर है मस्तिष्क में चिप लगाने का प्रयोग उनके बाजार के गणित का ही हिस्सा है। बहरहाल, अभी चिप लगाने की शुरुआत हुई है। आम लोगों तक इसका लाभ पहुंचने में दशकों लग सकते हैं। वहीं इसके प्रत्यारोपण की प्रक्रिया इतनी खर्चीली होगी कि शायद ही आम आदमी के हिस्से में कभी इसका लाभ आ सके। बहरहाल, हर नये अनुसंधान व शोध का स्वागत किया जाना चाहिए। लेकिन यह सवाल मानवीय बिरादरी के लिये हमेशा मंथन का विषय रहेगा कि विज्ञान की खोज मानवता की संहारक न बने। जैसे अल्फ्रेड नोबेल को अपने डायनामाइट के आविष्कार के संहारक होने का अपराध बोध हुआ। उन्होंने इसके चलते विश्व शांति व मानवता को समृद्ध करने वाले विभिन्न विषयों की प्रतिष्ठा के लिये अपनी कमाई से कालांतर नोबेल प्राइज की शुरुआत की थी। बहरहाल, शुरुआती संकेत बताते हैं कि इंसानी दिमाग में चिप लगाने का प्रयास सफल रहा है। इस प्रयोग से इंसानी जीवन में विज्ञान व तकनीक की भूमिका के नये अध्याय की शुरुआत मानी जा सकती है। यह मानव कल्याण के लिये वरदान भी साबित हो सकती है बशर्ते यह निर्मम बाजार का हथियार न बने।

वैसे ऐसा भी नहीं है कि न्यूरालिंक इस तकनीक का प्रयोग सफलतापूर्वक करने वाली पहली कंपनी है। इससे पहले इस कंपनी की प्रतिस्पर्धी कंपनी ब्लैकरॉक न्यूरोटेक भी इंसान के दिमाग में चिप प्रत्यारोपण का सफल प्रयोग कर चुकी है। कहा जा रहा है कि इसका लाभ उन लोगों को होगा जो जन्मजात या किसी दुर्घटना तथा बीमारी के चलते अपने कुछ अंगों से वंचित हैं। चिप लगाने के बाद इन लोगों के महज सोचने भर से फोन, कंप्यूटर आदि निर्देशों का पालन करने लगेंगे। किसी बीमारी के चलते किसी व्यक्ति के निष्क्रिय अंग सक्रिय हो सकेंगे। विशेष रूप से मानसिक रोगों, मसलन पार्किंसन व भूलने की बीमारी अल्जाइमर में यह चिप कारगर हो सकती है। इतना ही नहीं अवसाद व विभिन्न लतों से मुक्ति दिलाने में भी इसे सहायक बताया जा रहा है। लेकिन आने वाले वर्षों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के जरिये यदि इंसान के दिमाग पर ऐसी चिप के जरिये नियंत्रण के नकारात्मक प्रयास होने लगें तो निस्संदेह, स्थिति खासी विकट हो सकती है। निश्चित रूप से किसी व्यक्ति के दिमाग का मामला बेहद संवेदनशील होता है। यही वजह है कि कुदरत की बनायी जटिल दिमागी प्रक्रिया से छेड़छाड़ या कहें सर्जरी से आधुनिक चिकित्सा भी परहेज करती है। यहां यह भी सवाल कायम रहेगा कि चिप कितने समय तक काम करती रहेगी। यानी कितने समय तक यह चिप इंसान के कुदरती दिमाग से साम्य बना सकेगी। अभी यह प्रयोग शुरुआती दौर में है और कहना मुश्किल है कि इससे वास्तविक लाभ कितना होता है। वैसे तार्किक बात यह है कि भारत जैसे विकासशील देशों में आम आदमी की पहुंच में यह सुविधा शायद मुश्किल से ही आए। यहां महत्वपूर्ण यह है कि हमें अपनी जीवनशैली और खानपान में इतनी सावधानी रखनी चाहिए कि इस तरह के रोगों से बचा जा सके। भारत द्वारा दुनिया को दिये गए योग के वरदान से तमाम मनोविकारों का समाधान संभव है। अमेरिका के नोबेल पुरस्कार विजेता मनोवैज्ञानिक भी मानते रहे हैं कि प्राणायाम के जरिये अनेक मानसिक रोगों का उपचार संभव है। हम अपनी सेहत का संवर्धन करें ताकि चिप लगाने की नौबत न आए।

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