गलवान घाटी में संघर्ष के बाद चले लंबे गतिरोध के बीच खबर आई कि भारतीय व चीनी सैनिकों ने दस चौकियों पर नये साल के मौके पर मिठाइयां बांटी। उम्मीद जगी थी कि दोनों देशों के रिश्तों पर जमी बर्फ अब पिघलने को है। लेकिन तभी चीन सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स द्वारा एक चित्र सोशल मीडिया पर जारी किया गया, जिसमें चीनी राष्ट्रीय ध्वज लहराते सैनिकों को गलवान घाटी में बताया गया। साथ ही चीनी सैनिकों का वीडियो भी मंदारिन भाषा में जारी किया गया, जिसमें कहा गया कि हम एक इंच जगह भी नहीं छोड़ेंगे। इस फोटो के साझा होने के बाद विपक्ष मोदी सरकार पर हमलावर हुआ और राहुल गांधी ने टि्वट करके प्रधानमंत्री से तीखे सवाल पूछे। इससे पहले भारत प्रशासित अरुणाचल के क्षेत्रों व नदियों के नाम बदलने की चीनी कोशिश को भारत ने कपोल-कल्पना बताकर खारिज किया था। ऐसे में चीन की अविश्वसनीय चालों के प्रति सतर्क रहने की जरूरत है। एक ओर वास्तविक नियंत्रण रेखा पर स्थित चौकियों पर मिठाइयों का आदान-प्रदान और फिर भारत के इलाकों पर कुदृष्टि। तथ्य सार्वजनिक है कि पीएलए वास्तविक नियंत्रण रेखा पर लगातार स्थायी बुनियादी ढांचे का निर्माण कर रही है। चीन को अपने इलाके में निर्माण का हक है लेकिन वह किसके लिये कर रहा है? इस सीमा पर कोई दूसरा देश भी नहीं है, जिससे चीन के दीर्घकालिक घातक मंसूबों का पता चलता है। अभी उपग्रह से मिलने वाली कुछ तस्वीरों के आधार पर मीडिया में खबर आई कि चीन पैंगोंग त्सो झील पर एक पुल का निर्माण कर रहा है जो तिब्बत-शिनजियांग राजमार्ग की दूरी 180 किलोमीटर घटा देगा, जिससे चीन की सेना को उत्तर और दक्षिण किनारे के बीच तेजी से सैनिकों की तैनाती में मदद मिलेगी। इसी उकसावे की कार्रवाई में चीन ने सेला पास, अरुणाचल के आठ गांवों और कस्बों, चार पहाड़ों और दो नदियों का नाम बदलकर उन्हें दक्षिण तिब्बत नाम दे दिया।
दरअसल, चीन भारत सरकार की ओर से वास्तविक नियंत्रण रेखा से लगते क्षेत्र पर किये जा रहे सामरिक निर्माण से बौखलाया हुआ है। भारत के सीमा सड़क संगठन द्वारा निर्मित की जा रही सेला सुरंग के इस साल जून तक तैयार हो जाने की उम्मीद है। दरअसल, इस सुरंग के जरिये अरुणाचल के तवांग में भारतीय सैनिकों की तेजी से आवाजाही में मदद मिलने वाली है। दरअसल, तवांग चीन सीमा से लगा रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण जिला है। यह वही तवांग सेक्टर था जहां पिछले साल अक्तूबर में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच टकराव हुआ था। उसके बाद कोर कमांडर स्तर की सैन्य वार्ता का 13वां दौर गतिरोध में समाप्त हुआ था। यही वजह है कि भारत सरकार सीमावर्ती क्षेत्रों में दीर्घकालिक शांति सुनिश्चित करने के लिये गंभीर बातचीत न करने के लिये बीजिंग को जिम्मेदार ठहराती रही है। निस्संदेह, इस स्थिति में भारत को बेहद चौकस रहते हुए एलएसी के साथ बुनियादी ढांचे के विस्तार को प्राथमिकता देनी चाहिए। दरअसल, इस इलाके में प्रतिरक्षा तैयारियों में तेजी लाने तथा रूस से अत्याधुनिक वायुरक्षा मिसाइल प्रणाली हासिल करने की कवायद चीन को परेशान कर रही है। हालांकि इसके बावजूद चीन की उकसावे की कोशिशों के बीच संयम बरतना भारत के लिए एक चुनौती होगी। फिर भी चीन के हर दुस्साहस का कड़ा जवाब दिया जाना होगा। विगत के अनुभवों को देखते हुए क्षेत्र में शक्ति संतुलन के लिये भारत की रक्षा तैयारियों से किसी भी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता। हालांकि, भारतीय सैनिकों के गलवान घाटी में तिरंगा लहराने का चित्र सरकार द्वारा जारी करने के बाद चीनी मीडिया बचाव की मुद्रा में नजर आ रहा है। दलील दे रहा है कि सीमा पर गोलियों के बजाय मिठाई का आदान-प्रदान अच्छा है। यह भी कि भारतीय विपक्ष अपने राजनीतिक हितों के लिये सामरिक नीतियों को ढाल की तरह इस्तेमाल कर रहा है। वहीं कूटनीतिज्ञ कह रहे हैं कि इस साल राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपने तीसरे ऐतिहासिक कार्यकाल के लिये मैदान में उतरेंगे, इसीलिए वे घरेलू जनता व नेशनल पीपल्स कांग्रेस में अपनी राष्ट्रवादी नेता की छवि बनाने के लिये ऐसे हथकंडे अपना रहे हैं।