लुप्त होने के बावजूद आधी सदी से भी अधिक समय तक भारतीयों के अवचेतन में मौजूद रहा चीता अब एक हकीकत बन गया है। जिसे पारिस्थितिकीय तंत्र की बहाली की दिशा में सार्थक पहल बताया जा रहा है। पर्यटकों व वन्यजीवियों के उत्साह के इतर इससे स्थानीय समुदायों के लिये अाजीविका के अवसर बढ़ने की बात कही जा रही है। इस अंतर-महाद्वीपीय परियोजना को लेकर देश-दुनिया में खास चर्चा है। बहरहाल, मध्यप्रदेश के कूनो राष्ट्रीय पार्क में इन अफ्रीका से लाये गये आठ चीतों को लेकर खूब गहमागहमी है। कुछ दिन अलग रखने के बाद जब ये चीते भारतीय वातावरण के अनुकूल हो जायेंगे तो विशेष रेडियो-कॉलर लगे चीते नेशनल पार्क का हिस्सा बन जायेंगे। बताते हैं कि पांचवें दशक में चीता भारत से लुप्त हो गया था। अब इसे फिर से आबाद करने के लिये वन व पर्यावरण मंत्रालय ने महत्वाकांक्षी योजना को अंजाम दिया। लेकिन इस परियोजना को लेकर जहां उत्साह है, वहीं आशंकाएं भी कम नहीं हैं। कुछ पर्यावरणवादी कह रहे हैं कि इस प्रयास से जैव विविधता और पर्यावरण संरक्षण सेवाओं को लाभ मिलेगा। स्थानीय पर्यटन बढ़ेगा। कूनो राष्ट्रीय उद्यान में फूड चेन का जो असंतुलन हो रहा था उसमें सुधार आयेगा। वहीं एक वर्ग आशंका जता रहा है कि यह उद्यान चीतों के लिये आदर्श नहीं क्योंकि बाघ व तेंदुओं के बीच संघर्ष में चीतों को शिकार करने में बाधा पैदा होगी। निस्संदेह यह यक्ष प्रश्न बना रहेगा कि चीते खुद को भारत के वातारवरण के अनुरूप सहजता से ढाल पायेंगे?
बहरहाल, इस कदम को जैव विविधिता के संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। दुनिया ने देखा है कि भारत ने बाघों का संरक्षण करके मिसाल कायम की है। वह बात अलग है कि तस्करों व शिकारियों के हमलों से वन्य जीवों के जीवन पर संकट बरकरार है। वहीं अन्य जीवों को पर्याप्त संरक्षण नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में दूसरे महाद्वीप में बसाये जा रहे चीतों को लेकर शेष दुनिया की नजर बनी रहेगी। वहीं भारत में हर किसी की इच्छा होगी कि नामीबिया से लाये गये चीतों का कुनबा भारत में बढ़े। कोशिश करें कि राष्ट्रीय उद्यानों व अभ्यारण्यों में मानवीय हस्तक्षेप कम से कम हो। हमें यह ध्यान रखना होगा कि कई दुर्लभ प्रजातियों पर अस्तित्व का संकट मंडरा रहा है। ग्लोबल वार्मिंग के संकट के दौर में देश के जनमानस को पर्यावरण व जैव विविधता के महत्व को बताना होगा और वन्य जीवों के संरक्षण के प्रति जागरूक करना होगा। उन्हें बताना पड़ेगा कि मानव अस्तित्व भी जैव विविधिता के संरक्षण से जुड़ा है। ये आने वाला वक्त बतायेगा कि ये चीते शेरों व तेंदुओं से अपना बचाव किस हद तक कर पाते हैं। निस्संदेह सरकार ने सभी पहलुओं पर विचार करके ही यह कदम उठाया होगा। जनजागरण के लिये चीता मित्रों की फौज भी एक रचनात्मक पहल ही कही जायेगी। यह सार्थक ही है कि मनमोहन सरकार के समय हुई पहल नरेंद्र मोदी सरकार के दौरान सिरे चढ़ सकी।