केंद्र सरकार लंबे समय से कहती रही है कि जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्जा परिसीमन के बाद बहाल होगा। परिसीमन आयोग की रिपोर्ट हाल ही में आने के बाद अब यहां चुनाव का रास्ता भी साफ हुआ है। हालांकि, परिसीमन को विपक्षी दल भाजपा पर राजनीतिक लाभ उठाने की कवायद बता रहे हैं। वे भाजपा के प्रभुत्व वाले जम्मू को बढ़त देने की बात कह रहे हैं। बहरहाल, अब राज्य की विधानसभा बहाल हो सकेगी। साथ ही लद्दाख के केंद्रशासित प्रदेश बनाये जाने के बाद कम हुई सीटों की भरपाई नये परिसीमन से होगी। दरअसल, 1995 के बाद हुए परिसीमन में वर्ष 2011 की जनगणना को आधार बनाया गया है। बड़ा बदलाव यह है कि जम्मू संभाग में विधानसभा सीटों की संख्या 37 से बढ़कर 43 हो गई हैं, जबकि कश्मीर के लिये एक विधानसभा सीट बढ़ाई गई है। अब नई विधानसभा की नब्बे सीटों में कश्मीर संभाग की सीटों की संख्या 47 होगी। निस्संदेह, कश्मीर की बढ़त तो कायम रहेगी, लेकिन बढ़त का यह अंतर पहले से कम हो जायेगा। वहीं कश्मीरी पंडितों व पाक अधिकृत कश्मीर के विस्थापितों को भी प्रतिनिधित्व दिये जाने की बात कही जा रही है। निस्संदेह, नये बदलावों के गहरे निहितार्थ हैं। कहा जा रहा है कि जम्मू संभाग में पहले से मजबूत भाजपा और मजबूत होकर उभरेगी।
दरअसल, विपक्षी दलों की आलोचना का एक पक्ष यह भी है कि जनसंख्या की दृष्टि से बड़े कश्मीर संभाग को कम प्रतिनिधित्व दिया गया है। वहीं राजनीतिक पंडित कयास लगा रहे हैं कि इससे घाटी की सियासत में बदलाव आयेगा। वहीं दूसरे पक्ष का कहना है कि परिसीमन आयोग ने दोनों संभागों को एक इकाई के रूप में देखा है। आयोग ने जनसंख्या के बजाय विभिन्न क्षेत्रों की भौगोलिक स्थिति, इलाके की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि तथा पाक सीमा से लगे इलाकों की संवेदनशीलता को तरजीह दी है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि सेना व सुरक्षा बलों के तमाम प्रयासों के बावजूद राज्य में सुरक्षा चुनौतियां बनी हुई हैं। ऐसे में राष्ट्र की मुख्यधारा से राज्य का जुड़ाव प्राथमिकता होनी चाहिए। इसके अलावा राज्य में अनुसूचित जाति की सीटों को बरकरार रखते हुए अनुसूचित जनजाति के लिये नौ सीटों का प्रावधान किया गया है जिसे सामाजिक न्याय की दृष्टि से सकारात्मक पहल कहा जा सकता है। वहीं विस्थापित कश्मीरियों व पाक अधिकृत कश्मीर के लोगों को प्रतिनिधित्व दिये जाने के प्रस्ताव को एक सार्थक पहल के रूप में देखा जाना चाहिए। यह भी कि पांच संसदीय सीटों को बरकरार रखते हुए अनंतनाग सीट की भौगोलिक परिधि में बदलाव करके इसमें जम्मू के कुछ इलाकों को शामिल किया गया है। बहरहाल, अब 2018 के बाद जम्मू-कश्मीर में सामान्य लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली के साथ अब इसे राज्य का दर्जा मिल सकेगा। आशा है इस साल के अंत में हिमाचल व गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनाव के साथ यहां भी चुनाव हो सकेंगे।