अपराधियों और कानून का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ बुलडोजर के इस्तेमाल का जो सिलसिला उत्तर प्रदेश से शुरू हुआ था वह अब मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात व दिल्ली होते हुए हरियाणा तक आ पहुंचा है। अब हरियाणा की मनोहर सरकार योगी सरकार की ही तर्ज पर एक्शन मोड में नजर आ रही है। राज्य सरकार ने बदमाशों व नशा तस्करों की अचल संपत्ति पर बुलडोजर चलाने का मन बना लिया है। राज्य के गृह व स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने भी चेतावनी दी है कि राज्य में किसी भी कीमत पर नशे के कारोबार को पनपने नहीं दिया जायेगा। नशे के सौदागरों को यह धंधा तुरंत बंद करना होगा या फिर राज्य छोड़कर जाना होगा। उन्होंने यहां तक चेतावनी भी दे दी कि सभी जनपदों में टीमें तैयार कर ली गई हैं और सभी जगह बुलडोजर तैयार हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि नशे की कमाई से तस्करों ने जो संपत्ति बनायी है उस पर शर्तिया बुलडोजर चलेगा। दरअसल, उत्तर प्रदेश के कानपुर के बिकरू गांव में गैंगस्टर विकास दुबे के आलीशान घर को नेस्तनाबूद करते समय बुलडोजर का जो रौद्र रूप योगी सरकार ने दिखाया, वह राजनीति में बदमाशों के खिलाफ तुरत-फुरत कार्रवाई का प्रतीक बन गया है। यहां तक कि 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान बुलडोजर एक मुद्दा बना। चुनावी रैलियों, जुलूसों में व गीतों के रूप में बुलडोजर का जमकर उपयोग किया गया। यहां तक कि योगी आदित्यनाथ को बुलडोजर बाबा का नाम दे दिया गया। सत्तारूढ़ सरकारें जहां इसे बदमाशों के खिलाफ व अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई बताती हैं, वहीं विपक्ष इसे महज राजनीति बताता है। इसी तरह बुलडोजर मध्यप्रदेश के खरगोन में भी चला। वहीं एक वर्ग ऐसा भी है कि जो इस कार्रवाई को गैरकानूनी बताता है और इमरजेंसी के दौरान तुर्कमान गेट प्रकरण को तत्कालीन कांग्रेस सरकार की नाकामी के रूप में देखता है। वहीं दूसरी ओर उ.प्र. में दूसरी बार सत्ता में आयी योगी सरकार इसे अपनी कामयाबी के सूत्र के रूप में देखती है।
वहीं दूसरी ओर राजनीतिक विश्लेषक बुलडोजर को भाजपा शासित राज्यों में विनिंग फार्मूले के रूप में देख रहे हैं। जिसके चलते ही बुलडोजर बाबा, बुलडोजर मामा और बुलडोजर जस्टिस जैसे जुमले उछाले जा रहे हैं। वहीं विपक्षी दल बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में बढ़ते अपराधों पर नियंत्रण की विफलता के बाद बुलडोजर को एक सफलता के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया गया। जिसके खिलाफ कुछ पूर्व न्यायाधीशों व वरिष्ठ वकीलों ने योगी सरकार की कारगुजारियों पर सवाल उठाते हुए सर्वोच्च अदालत से मामले में स्वत: संज्ञान लेने की अपील की थी। वहीं इस कार्रवाई को उत्तर प्रदेश व दिल्ली की जहांगीरपुरी में सांप्रदायिक नजरिये से भी देखा जाता है। जानकारों का मानना है कि इस कार्रवाई में कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं होता। कई कानूनविद् इसे भारतीय संविधान का भी उल्लंघन मानते हैं क्योंकि यह जीने के अधिकार का अतिक्रमण करता है। दलील दी जाती है कि ऐसी कार्रवाई से पहले आरोपी को नोटिस दिया जाना चाहिए और फिर सुनवाई का मौका भी मिले। फिर अपील का अवसर भी दिया जाना चाहिये। किसी का अपराध तय करना अदालत का काम है। ऐसी कोई भी कार्रवाई कानून की प्रक्रिया का अतिक्रमण है। वहीं भाजपा शासित राज्यों में अवैध निर्माण गिराने की कार्रवाई को नगर निकाय के नियमों के अनुरूप बताते हैं। खासकर दिल्ली के जहांगीरपुरी प्रकरण में यह दलील दी गई। यह यक्ष प्रश्न है कि क्या वाकई बुलडोजर चलाना गुड गवर्नेंस का मॉडल है? क्या जल्दी इंसाफ देने के फेर में कानूनी प्रक्रिया कमजोर नहीं होती? वहीं सत्ता पक्ष की दलील है कि लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि है। अपराधी यह मान बैठे हैं कि किसी नियम-कानून का उल्लंघन या अतिक्रमण करने का उन्हें अधिकार है। यदि समय रहते उनके भ्रम को तोड़ा जाता है तो उनके मुगालते दूर हो जाएंगे? अपराधियों में बुलडोजर से खौफ पैदा करना जनता को राहत देने जैसा है। वहीं राजनेताओं को लगता है कि इससे उनकी लोकप्रियता में इजाफा होता है। ये भी कि यह मजबूत कानून व्यवस्था का पर्याय है।