ऐसे वक्त में जब डेल्टा वेरिएंट के मुकाबले तीन गुणा अधिक संक्रमण वाले वायरस ओमिक्रॉन ने भारत के कई शहरों में दस्तक दे दी है तो सरकार व नागरिकों की चिंता स्वाभाविक है। हालांकि, भारत में अभी इसके मामले गिनती के ही हैं लेकिन जिस तेजी से यह फैलता है, उसने चिंता बढ़ा दी है। इसे भारत में कोरोना की तीसरी लहर की दस्तक तक कहा जा रहा है। लेकिन सबसे बड़ी चिंता यह है कि अब तक देश में हुआ टीकाकरण किस हद तक इस नये वायरस के विरुद्ध रोग प्रतिरोधक क्षमता उपलब्ध कराता है। दक्षिण अफ्रीका में कई ऐसे मामले देखने को मिले हैं, जिनमें दोनों टीके लगे लोगों को इसने संक्रमित किया है। दुनिया की वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां निश्चित रूप से नहीं कह पा रही हैं कि उनकी वैक्सीन सुरक्षा कवच देने में सक्षम है। इसकी मूल वजह इस वायरस के रूप में निरंतर होने वाले बदलाव हैं। आशंका जतायी जा रही है कि सबसे तेजी से म्यूटेट होने वाला यह वायरस एंटीबॉडी को भी भ्रमित कर सकता है। ऐसे में भारत में बूस्टर डोज दिये जाने की मांग सामने आई है। वह भी तब जब डब्ल्यूएचओ ने इसे चिंता का वायरस कहा है। हालांकि, भारत में ऐसे लोगों की संख्या भी कम नहीं है जिन्होंने दूसरी डोज लगवाने में कोताही बरती है। अमेरिका, रूस व यूरोप मे तीसरी-चौथी लहर में एक बात स्पष्ट दिखी कि जिन लोगों ने वैक्सीन नहीं लगवाई, वे ही ज्यादा संक्रमण की चपेट में आये हैं। अच्छी बात यह है कि ओमिक्रॉन का संक्रमण तेज जरूर है लेकिन इससे गंभीर रूप से बीमार होने व मरने के आंकड़े सामने नहीं आये हैं। धीरे-धीरे जब इस वायरस को लेकर वैज्ञानिक अध्ययन सामने आएंगे तब इसकी मारक क्षमताओं को लेकर ठीक-ठीक निष्कर्ष निकाले जा सकेंगे। लेकिन तीसरी लहर की आशंका के बीच सरकार और नागरिकों के स्तर पर अतिरिक्त सुरक्षा के उपाय अपनाये जाने चाहिए। हम अपनी पिछली गलतियों से सबक लें।
निस्संदेह पहली लहर के बाद यदि हम लापरवाह न हुए होते तो दूसरी लहर की घातकता से हमें नहीं जूझना पड़ता। दूसरी लहर में चिकित्सातंत्र की लाचारगी को देखते हुए सरकारों को अतिरिक्त सुरक्षा उपाय अपनाने चाहिए। ओमिक्रॉन को खतरे की घंटी मानकर हमें सतर्क होना होगा। दक्षिण अफ्रीका जहां यह वायरस सबसे पहले चिन्हित किया गया वहां पांच साल के कम उम्र के बच्चों के चपेट में आने की खबर चिंता बढ़ाने वाली है। ऐसे में जब देश में अभी बच्चों को टीका नहीं लग पाया है, अतिरिक्त सतर्कता की जरूरत है। इस दिशा में गंभीर प्रयास होने चाहिए कि नये वायरस के मुकाबले को रोग प्रतिरोधक तंत्र कैसे मजबूत किया जाये। डेल्टा वेरिएंट पर आईसीएमआर के एक अध्ययन में टीकों की प्रभावी क्षमता में कमी पायी गई है। इसी सोच के चलते नये वेरिएंट के मुकाबले बूस्टर डोज की जरूरत बतायी जा रही है। चिकित्सा विशेषज्ञों का मकसद यही है कि कोविड-19 के तेज संक्रमण को रोकने, मरीज अस्पतालों में भर्ती न हों, मृत्युदर को रोकने उद्देश्य से बूस्टर डोज दी जाये। हालांकि, दुनिया में कई नामी दवा कंपनियां व वैज्ञानिकों ने ओमिक्रॉन के खिलाफ प्रतिरोधक तंत्र विकसित करने के लिये नये टीकों पर काम करना शुरू कर दिया है, लेकिन इनके उपयोग के लिये उपलब्ध होने में वक्त लग सकता है। तब तक सतर्कता के उपाय ही प्राथमिक उपचार साबित होंगे। नई चुनौती के मुकाबले के लिए कॉन्टैक्ट-ट्रेसिंग और टेस्टिंग में कोई लापरवाही नहीं बरती जानी चाहिए। एक नागरिक के रूप में भी हमारी जिम्मेदारी है कि अनावश्यक यात्रा को टालें, मास्क पहनें, हाथ धोने और सुरक्षित दूरी के विकल्प को अपनाएं। व्यक्ति और सामुदायिक रूप में हमारी जागरूकता उपचार का ही काम करेगी। इसे तीसरी लहर की चेतावनी मानते हुए जहां फिर से टीकाकरण में तेजी लाने की जरूरत है, वहीं टेस्टिंग की गति बढ़ाने की भी जरूरत है। साथ ही यदि कहीं हॉट स्पॉट नजर आते हैं तो उन्हें अलग-थलग किया जाये ताकि अर्थव्यवस्था की गति थामने वाले लॉकडाउन लगाने की जरूरत न पड़े।