हाल के वर्षों में पहली बार भारत ने अपने सख्त बयान में चीन को चेताया है कि भारत किसी भी सूरत में चीन के अवैध कब्जे और सीमा को लेकर उसके अनुचित दावों को स्वीकार नहीं करेगा। अमेरिकी रक्षा विभाग, पेंटागन की एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि अरुणाचल प्रदेश सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा से लगे एक विवादित क्षेत्र में चीन ने एक बड़ा पक्का गांव बनाया है। इस पर पहली आधिकारिक प्रतिक्रिया में भारत ने चीन को दो टूक शब्दों में अपनी यह बात कही। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि भारत अपनी सुरक्षा पर प्रभाव डालने वाले सभी घटनाक्रमों पर निरंतर नजर रखता है। इसके साथ ही अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिये सभी आवश्यक कदम उठाता है। वहीं दूसरी ओर सरकार का कहना है कि राजनयिक स्तर पर पूरी मजबूती के साथ इस तरह की गतिविधियों के प्रति अपना विरोध दर्ज कराया गया है और भविष्य में हम ऐसा ही करेंगे। वहीं भारत का यह भी कहना है कि सीमावर्ती इलाकों में जहां चीन ने दशकों से कब्जा कर रखा है, उन क्षेत्रों में उसने कुछ निर्माण भी किया है, तो उसे हम स्वीकार नहीं करते। दरअसल, हाल ही में चीन ने अपने साम्राज्यवादी मंसूबों को पूरा करने के लिये नया विवादित सीमा कानून पारित किया है। आशंका है कि नये सीमा कानून की आड़ में वह इस निर्माण को स्थायी सैन्य शिविर में न तबदील कर दे। कहा जा रहा है कि जिस विवादित इलाके में चीन ने गांव का निर्माण किया है, उसके पास ही 1962 के युद्ध के दौरान भारत की अंतिम पोस्ट हुआ करती थी। कालांतर में इलाका विवादित घोषित होने के बाद भारतीय सेना की स्थिति में बदलाव किया गया था। हालांकि, भारतीय सेना की तरफ से कहा जाता रहा है कि चीन का बुनियादी ढांचे का निर्माण एलएसी में चीन के अधिकार क्षेत्र में हुआ है।
यह सर्वविदित है कि अरुणाचल प्रदेश पर चीनी की टेढ़ी नजर दशकों से रही है और वह इसे तिब्बत के विस्तार के रूप में बताता रहा है। चीन गाहे-बगाहे भारतीय राजनेताओं के अरुणाचल जाने पर तल्ख प्रतिक्रिया देता रहा है, जिसे भारत ने सदा खारिज ही किया है। इस साल जनवरी में कुछ सैटेलाइट तस्वीरों के हवाले से दावा किया गया था कि चीन ने अरुणाचल प्रदेश में भारत के नियंत्रण वाले इलाकों में पक्के घरों वाला एक गांव बसाया है। तब विदेश मंत्रालय ने कहा था कि वह खबरों पर नजर बनाये हुए है। बताया जाता है कि सारी चू नदी के तट का यह इलाका वर्ष 1962 के युद्ध में हिंसक संघर्ष का प्रत्यक्षदर्शी रहा है। ऐसा भी नहीं है कि विषम भौगोलिक जटिलताओं वाले निर्जन इलाकों की सु्रक्षा को लेकर भारत सजग नहीं है। भारत ने इस इलाके में बड़े पैमाने पर सड़कों, सुरंगों, पुलों और रेल सेवा के विस्तार की दिशा में सार्थक प्रयास किये हैं ताकि सेना की आपूर्ति को सुगम बनाकर सुरक्षा की किसी भी चुनौती से मुकाबला किया जा सके। इसके साथ ही लद्दाख व अरुणाचल प्रदेश क्षेत्र में सशस्त्र सेना की तैनाती को बढ़ाया गया है। अब इस इलाके में आधारभूत संरचना निर्माण में तेजी लाने से सेना की एलएसी पर पहुंच आसान व समय रहते हो पायेगी। साथ ही सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले भारतीयों को भी इन विकास कार्यों का लाभ मिलेगा। दरअसल, पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश और तिब्बत के बीच के इलाके को मैकमोहन रेखा विभाजित करती है। लेकिन चीन इस पर ईमानदार नजर नहीं आता। वहीं कुछ अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार मानते हैं कि संभवत: चीन इस्राइल जैसी रणनीति अपना रहा है। इस्राइल भी गाजा पट्टी में पहले इसी तरह के भवन बना देता है और फिर उस इलाके में आबादी को बसा देता है। जिसका लगातार फिलस्तीन की तरफ से विरोध किया जाता रहा है। यद्यपि आम लोगों में यह जानने की उत्सुकता बनी रहेगी कि गांव का निर्माण चीन नियंत्रित क्षेत्र में है या भारतीय क्षेत्र में। बहरहाल, चीन को अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के हिसाब से सीमाओं का सम्मान करना चाहिए।