Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

मनोहारी मानसून

सहेजें जीवनदायिनी जलधारा को
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

भले ही विज्ञान और इंजीनियरिंग की तरक्की से देश-दुनिया ने सिंचाई के तमाम संसाधन जुटा लिए हों, मगर मानसून का इंतजार किसान ही नहीं, हर भारतीय को बेसब्री से रहता है। कृषक के लिये मानसून जहां धान व अन्य फसलों के लिये प्राणधारा का काम करता है, वहीं आम आदमी को गर्मी की तपिश से मुक्त करता है। इस बार जैसे-जैसे पारा आसमान की तरफ चढ़ता रहा, लोगों को मानसून का इंतजार तीव्र होता गया। अब जबकि मानसून ने केरल व पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों को भिगो दिया है तो शेष देश भी उत्साहित है कि देर-सवेर मानसून उनके दरवाजे तक भी दस्तक दे जाएगा। वैसे हाल में आये चक्रवाती तूफान की वजह से भी कुछ पश्चिम बंगाल व पूर्वोत्तर के राज्यों में बारिश हुई है और बाढ़ जैसा मंजर भी पैदा हुआ। बहरहाल तपते उत्तर भारत को तो अब मानसूनी फुहारों का बेसब्री से इंतजार है। मानसून के बादल धीर-धीरे मध्य भारत व उत्तर की ओर बढ़ते जाएंगे। यह सुखद है कि हाल के वर्षों में मौसम विभाग की भविष्यवाणियां कमोबेश सच साबित होने लगी हैं। कहा गया था कि इस साल मानसून निर्धारित समय से पहले आ जाएगा, वैसा हुआ भी है। मानसून ने समय से पहले केरल में दस्तक देकर जन-जन को प्रफुल्लित कर दिया है। उम्मीद है कि जून के अंत तक मानसून उत्तर भारत को भिगोने लगेगा। ऐस वक्त में जब पारा नित नये रिकॉर्ड बनाता रहा है और लू से मरने वालों की संख्या बढ़ती रही है, मानसून की सूचना निश्चित रूप से राहतकारी कही जाएगी। यह निर्विवाद सत्य है कि मानसून के पास हमारी तमाम समस्याओं के समाधान हैं। खासकर धान का कटोरा कहे जाने वाले राज्यों के लिये तो यह जीवनदायिनी है। मानसूनी बारिश से जहां खेतों को पर्याप्त पानी से संतुष्टि मिलती है, वहीं बिजली व अन्य ऊर्जाओं की बचत भी होती है। गर्मी बढ़ते ही हमारे बिजली उत्पन्न करने वाली विभिन्न इकाइयों पर दबाव बढ़ जाता है। मानसून के आने से वह दबाव भी धीरे-धीरे कम होने लगता है।

इसमें दो राय नहीं है कि सदियों से मानसून देश में मौसम की विशिष्ट संस्कृति का पोषण करता है। आज भी मानसून हमारी कृषि व्यवस्था की रीढ़ है। मौसम की तल्खी को खत्म करके यह जन-जन को राहत देता है। विश्वास है कि हमारी संस्कृति व अर्थव्यवस्था में मानसून की निर्णायक भूमिका निरंतर जारी रहेगी। अनेक विदेशी लेखकों ने मानसून के प्रभावों का अध्ययन करते हुए रोचक साहित्य का सृजन भी किया है। मानसून का हमारे खान-पान व पहनावे तक पर गहरा प्रभाव पड़ता है। भले ही मानसून भारतीय समाज में सुखद बदलाव का पर्याय रहा हो, लेकिन हाल के वर्षों में मौसम के मिजाज में बदलाव से बारिश के पैटर्न में भी भिन्नता आई है। जिसके मूल में ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव भी शामिल हैं। विडंबना यह है कि हमारे नीति-नियंता और स्थानीय प्रशासनिक इकाइयां वर्षा जल को सहेजने में नाकाम रही हैं। मानसून के पानी का एक बड़ा हिस्सा यूं ही नदी-नालों के जरिये समुद्र में चला जाता है। यदि इस पानी को सहेजकर हम भू-जल का स्तर बढ़ाने का प्रयास युद्ध स्तर पर करें तो शेष महीनों में जल संकट से हम निजात पा सकते हैं। बढ़ती आबादी और जल निकासी के रास्तों पर निरंतर होते अतिक्रमण ने देश के तमाम शहरों में जलभराव का संकट पैदा किया है। पानी की निकासी के प्राकृतिक मार्गों पर अवैध निर्माणों ने इस संकट को बढ़ाया है। स्थानीय निकायों के अधिकारी नालों व सीवर लाइनों की सफाई समय रहते नहीं करते। जिसकी वजह से शहर व कस्बे जलभराव के संकट से जूझने लगते हैं। नागरिक हित में इस दिशा में गंभीर प्रयासों की जरूरत है। निस्संदेह मानसून न केवल हमारी कृषि की प्राणवायु है बल्कि हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ भी है। सामान्य मानसून से जहां किसान व गांव समृद्ध होते हैं, वहीं देश को भी पर्याप्त खाद्यान्न मिल पाता है। हमें मानसून के जल को सहेजने के लिये जन-जन की भागीदारी से देशव्यापी मुहिम चलाने की जरूरत है। पिछले दिनों आग से सुलगते जंगलों को भी मानसूनी फुहारों का इंतजार है।

Advertisement

Advertisement
×