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मेलजोल व विश्वास से रिश्तों को बनाएं जीवंत

जीवन के केंद्र के रूप में परिवार और समाज की जगह अब महत्वाकांक्षा, कैरियर और डिजिटल जीवन ने ले ली है। लोग सुख-दुख साझा करने की बजाय ‘ऑनलाइन’ रहते हैं। जिससे अकेलापन और अविश्वास बढ़ रहा है। समाज में...
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जीवन के केंद्र के रूप में परिवार और समाज की जगह अब महत्वाकांक्षा, कैरियर और डिजिटल जीवन ने ले ली है। लोग सुख-दुख साझा करने की बजाय ‘ऑनलाइन’ रहते हैं। जिससे अकेलापन और अविश्वास बढ़ रहा है। समाज में सम्मान पूर्वक बने रहने के लिए रिश्तों को समझना, समय देना, आपसी संवाद व संवेदनशीलता जरूरी है।

आपसी संबंध मानव जीवन का सबसे सुंदर आधार है। जन्म से लेकर मृत्यु तक व्यक्ति अकेला नहीं होता। माता-पिता, भाई-बहन, मित्र, पड़ोसी, सहकर्मी ये सब मिलकर उस सामाजिक ताने-बाने को रचते हैं जिसके बिना इंसान का अस्तित्व अधूरा है। रिश्ते केवल भावनाओं का जाल नहीं, बल्कि जीवन की वह ज़मीन हैं जिन पर व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का घर खड़ा करता है। आज के व्यस्त और स्वार्थपूर्ण युग में रिश्तों को लेकर लोगों की प्राथमिकताएं बदल गई।

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डिजिटल जीवन का बढ़ता प्रभाव

पहले परिवार और समाज जीवन का केंद्र होते थे, वहीं अब व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा, कैरियर और डिजिटल जीवन ने वह जगह ले ली है। लोग अपने सुख-दुख साझा करने की बजाय ‘ऑनलाइन’ दिखाई देते हैं, पर भावनात्मक रूप से ‘ऑफलाइन’ हो गए हैं। यही कारण है कि समाज में मानसिक दूरी, अकेलापन और आपसी अविश्वास तेजी से बढ़ रहा है। अगर हमें समाज में सम्मान पूर्वक बने रहना है, तो सबसे पहले अपने रिश्तों को समझना और उन्हें समय देना जरूरी है। क्योंकि, एक-दूसरे से संवाद की कमी रिश्तों को बोझ बना देती है। परिवार को मजबूत बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि हर सदस्य संवाद और सम्मान की डोर से जुड़ा रहे। समय और संवेदना के रिश्ते किसी बैंक खाते की तरह होते हैं।

परिवार : रिश्तों की पहली पाठशाला

रिश्तों की पहली पाठशाला परिवार है, जो वह जगह है जहां इंसान पहली बार प्यार, सहयोग और त्याग का अर्थ सीखता है। माता-पिता का स्नेह और अनुशासन, भाई-बहनों की नोकझोंक, दादा-दादी की कहानियां- ये सभी हमारे भावनात्मक विकास की नींव रखते हैं। जो लोग अपने घर-परिवार के प्रति संवेदनशील रहते हैं, वे समाज में भी सौहार्द फैलाते हैं। आज कई परिवार आर्थिक रूप से तो समृद्ध हैं, पर भावनात्मक रूप से खाली हो चुके हैं। माता-पिता के पास बच्चों के लिए समय नहीं, बच्चे बुजुर्गों की भावनाओं की कद्र नहीं करते। परिणामस्वरूप घरों की दीवारें बनी रहती हैं, पर उनमें गर्माहट खो जाती है।

समय और संवेदना : रिश्तों का सबसे बड़ा निवेश

रिश्तों के लिए हम समय का जितना निवेश करेंगे, उतना ही हमें लाभ मिलेगा। यह निवेश पैसे का नहीं, समय और संवेदनाओं का होता है। एक फोन कॉल, एक स्नेह भरा संदेश या बस किसी का हालचाल पूछ लेना- ये छोटे-छोटे प्रयास न केवल रिश्तों को जीवित रखते हैं, बल्कि जीवन में उमंग भर देते हैं। समय निकालना मुश्किल नहीं, इच्छा का होना जरूरी है। जब हम अपने प्रियजनों को यह महसूस कराते हैं कि वे हमारे लिए महत्त्वपूर्ण हैं, तो वे भी हमें उतना ही स्नेह लौटाते हैं। यही परस्परता समाज का मनोबल बनाए रखती है।

डिजिटल युग में गर्मजोशी की जरूरत

कोई समाज तभी स्वस्थ रह सकता है जब उसके सदस्य एक-दूसरे से जुड़े रहें। रिश्तों के प्रति उपेक्षा केवल परिवारों को नहीं तोड़ती, वह समाज की नींव को भी कमजोर करती है। जब व्यक्ति दूसरों से केवल लाभ के लिए संबंध रखता है, तो सामाजिक एकता टूटने लगती है। आपसी विश्वास और सहयोग समाज के हर क्षेत्र शिक्षा, व्यापार, राजनीति, धर्म का आधार हैं। अगर हम एक-दूसरे की भावनाओं और सीमाओं का सम्मान करेंगे, तो समाज अधिक संगठित और सौहार्दपूर्ण बनेगा। रिश्तों को तवज्जो देना दरअसल सामाजिक स्थिरता को बनाए रखना है। डिजिटल युग में मानवीय संबंधों की ज्यादा जरूरत है। वजह, सोशल मीडिया ने दुनियाभर को जोड़ दिया है। लेकिन, इसने दिलों के बीच की दूरी बढ़ा दी।

रिश्तों में मर्यादा

‘लाइक’ और ‘फॉलो’ के इस युग में वास्तविक बातचीत, आत्मीयता और धैर्य खोते जा रहे हैं। रिश्तों को बनाए रखना अब ‘टाइमलाइन’ की जगह ‘टाइम’ मांगता है। जरूरी है कि हम अपनी डिजिटल दुनिया को सीमित करें और वास्तविक संबंधों को प्राथमिकता दें। मित्रों से मिलें, बुजुर्गों का हाल पूछें, बच्चों के साथ समय बिताएं। ये छोटे-छोटे कदम जीवन में गहराई और अर्थ भर देते हैं। व्यक्ति दूसरों का सम्मान तब करता है, जब वह स्वयं का सम्मान करता है। जो अपने भीतर प्रेम और करुणा रखता है, वही अपने आसपास प्रेम फैला सकता है। रिश्तों की मर्यादा बनाए रखना आत्म-संयम का प्रतीक है। इसमें त्याग, समझ और धैर्य की परीक्षा होती है। लेकिन यही तीन गुण हमें इंसान बनाते हैं। जब व्यक्ति रिश्तों को महत्व देता है, तो वह केवल अपने परिवार का नहीं, बल्कि पूरे समाज का सम्मान बढ़ाता है।

यही संस्कार हमारी संस्कृति की पहचान है। जहां ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का संदेश छिपा है। दरअसल, रिश्ते जीवन की धड़कन हैं। इनके बिना समाज का अस्तित्व कल्पना मात्र है। भौतिक प्रगति चाहे जितनी भी हो जाए, भावनात्मक संबंधों की गर्माहट के बिना इंसान अधूरा रह जाता है। इसलिए, अगर समाज में सम्मान, सुख और स्थिरता चाहिए, तो सबसे पहले अपने रिश्तों को तवज्जो दीजिए। दूसरों के लिए थोड़ी जगह, थोड़ा समय और थोड़ी संवेदना निकालें। यही वह निवेश है जो जीवन को अर्थपूर्ण बनाता है।

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