बेहतर परवरिश के लिए ध्यान से सुनें बच्चों की बात
कई बार अभिभावकों का बच्चों के साथ होना भी असल में उनके साथ होने जैसा नहीं होता। कभी स्क्रीन स्क्रॉलिंग में व्यस्त तो कभी कामकाज में। बच्चों का कहा दिल से सुनने वाली गंभीर सहभागिता बहुत से अभिभावक नहीं निभा पा रहे। बच्चों को लगता है कि उन्हें इग्नोार किया जा रहा है। जरूरी है, पैरेंट्स बच्चों के लिए समय निकालें। बच्चों के साथ आपकी फोकस्ड मौजूदगी रहेगी तो वे आपसे गहराई से जुड़ेंगे।
स्मार्ट गैजेट्स से भटका ध्यान, जिम्मेदारियों की आपाधापी या कामकाज की चिंता- इनसे सभी लोगों की माइंडफुलनेस कम हुई है। हम जहां हैं, वहां उस एक पल में हमारा मन-मस्तिष्क हमारे साथ नहीं होता। माइंडफुल ना होने की यह स्थिति परवरिश के मोर्चे पर भी देखने को मिल रही है। बच्चे कुछ कहना चाहते हैं, अभिभावक व्यस्त होते हैं। बच्चे साथ खेलना चाहते हैं, अभिभावक रुखाई से डांट देते हैं। बच्चे हैरान-परेशान हैं, माता-पिता मनः स्थिति जानने के बजाय उनके इस व्यवहार पर शिकायत जताते हैं। आज के समय में बच्चों का मन समझते हुए माइंडफुल पैरेंटिंग करना बालमन के लिए सबसे सुंदर उपहार है।
Advertisementमाइंडफुल पैरेंटिंग का अर्थ
असल में माइंडफुलनेस वर्तमान क्षण पर ध्यान केंद्रित करने की सजगता से जुड़ा पहलू है। दिलो-दिमाग की अवेयरनेस जिसमें किसी स्थिति को जज किए आप विचारों, भावनाओं और अपने आस-पास की दुनिया के प्रति सचेत रहते हैं। समझना कठिन नहीं कि ऐसा होने पर ही किसी परिस्थिति को बेहतर ढंग से समझा जा सकता है। सही प्रतिक्रिया दी जा सकती है। सही एक्शन लिया जा सकता है। यही वजह है कि माइंडफुल पैरेंटिंग परवरिश का सबसे पावरफुल टूल है। कई बार बच्चों के साथ होना भी असल में उनके साथ होने जैसा नहीं होता। कभी स्क्रीन स्क्रॉलिंग में व्यस्त तो कभी कामकाजी आपाधापी। बच्चों का कहा दिल से सुनने और समझने वाली गंभीर सहभागिता बहुत से अभिभावक नहीं निभा पा रहे। ऐसे में बच्चोंन की भावनाओं को सही रूप में समझना कठिन होता है। बच्चों को लगता है कि उन्हें इग्नोनर किया जा रहा है। जरूरी है कि पैरेंट्स बच्चों के लिए समय तो निकालें ही, पूरे भाव-चाव से उनके साथ मौजूद भी रहें। आपकी फोकस्ड मौजूदगी से बच्चे ना केवल अपना मन खोलेंगे बल्कि गहराई से जुड़ेंगे भी।
अनदेखी से उपजी समस्याएं
किसी दिन बच्चे ऐसा कुछ कर जाते हैं, जिसकी भनक तक अभिभावकों को नहीं लगती। आपराधिक गतिविधि में भागीदारी, खुद की जान लेने का प्रयास, अवसाद के घेरे में आना या फिर अभिभावकों से सदा के लिए दूरी बना लेना। असल में माइंडफुल पैरेंटिंग के अभाव में बहुत सी बातें बच्चों के मन में दबकर रह जाती हैं। पैरेंट्स द्वारा जाने-अनजाने की गई उपेक्षा से उनके मन एक हिचक आ जाती है। समय रहते वे अपनी परेशानी अभिभावकों को नहीं बता पाते। अपनी उपलब्धियों का जिक्र नहीं करते। उनका मासूम मन आपकी व्यस्तता को स्वीकार कर खुद को अपनेआप तक समेट लेता है। जबकि माइंडफुल पैरेंटिंग में बच्चा बिना किसी डर और हिचक के अभिभावकों से हर विषय में बात कर पाता है। ऐसी स्थिति में उनके बिखरते मन को समय रहते संभाला जा सकता है। उनकी दिशाहीन गतिविधियों को रोका जा सकता है। असल में माइंडफुलनेस प्रैक्टिस के पीछे का मूल विचार ही बिना पूर्वाग्रह के वर्तमान की स्थिति पर फोकस करना होता है। ऐसे में यह अनदेखी बच्चों के नजर में आपको जजमेंटल अभिभावक बना देती है। इन स्थितियों में वे बातें कहते कम छुपाते ज्यादा हैं। जिसका परिणाम कई बार पीड़ादायी भी साबित होता है।
अभिभावकों की भी बेहतरी
माइंडफुल पैरेंटिंग से केवल परवरिश के मोर्चे पर ही मदद नहीं मिलती, पालन-पोषण की यह माइंडफुलनेस की प्रैक्टिस खुद अभिभावकों के जीवन में भी सकारात्मक बदलाव लाती है। बच्चों की चिंता करते रहने के बजाय फोकस के साथ उनकी बात समझना माता-पिता को भी सहज रखता है। जिम्मेदारियों की भागदौड़ से जूझते हुए माइंडफुलनेस तकनीक अपनाना बड़ों को भी तनाव और एंग्जाइटी से निपटने में सहायता करता है। शोध बताते हैं कि माइंडफुलनेस कॉग्निटिव कंट्रोल में सुधार लाती है। ऐसे में बच्चों के साथ मजबूत गठजोड़ बनाने वाली यह प्रैक्टिस आपके व्यवहार को संयत रखने में मददगार बनती हैं।
बात सुने बिना ही बच्चों पर गुस्सा निकालने का बर्ताव घरों में आम है। बिना कारण जाने उलाहने देने ‘यह तुमने ही किया होगा’ या ‘पढ़ाई तो करते नहीं मार्क्स कम आने ही हैं’ जैसी बातें भी बिना सोचे-समझे कह दी जाती हैं। इसीलिए ध्यान से बच्चों की बात सुनना उनकी नियमित दिनचर्या से जोड़ने का काम भी करता है। अभिभावक जब बच्चों की समस्याओं को नियमित दिनचर्या में समझते रहते हैं तो प्रतिक्रिया सही ढंग से दे पाते हैं। यह पैरेंटिंग स्टाजइल माता-पिता और बच्चों के आपसी कम्युनिकेशन को भी बेहतर बनाती है। संवाद और स्नेह को पोसकर इमोशनल बॉन्डिंग बढ़ाती है।
