भारत में बड़ी संख्या में लोग मिर्गी दौरे से पीड़ित हैं। मिर्गी मस्तिष्क की विद्युत गतिविधियों में असंतुलन की स्थिति है जिसकी वजहें सिर की चोट, मस्तिष्क में ट्यूमर, लकवे के अलावा आनुवंशिक भी हैं। विशेषज्ञों की मानें तो मिर्गी को पूरी तरह से रोका नहीं जा सकता, लेकिन सजग रहकर इसके जोखिम को कम किया जा सकता है। इसका इलाज और नियंत्रण बहुत जरूरी है।
भारत में लगभग एक करोड़ से सवा करोड़ के आसपास मिर्गी रोगी हैं, जबकि दुनिया में कुल मिर्गी रोगियों की संख्या करीब 5 करोड़ है। यानी दुनिया का हर पांचवा मिर्गी रोगी भारत में है। इसलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन और लैंसेट न्यूरोलॉजी रिपोर्ट के मुताबिक भारत मिर्गी रोगियों का सबसे बड़ा देश है। भारत जल्दी से जल्दी इस संबोधन से छुटकारा पाने के लिए हर साल 17 नवंबर को राष्ट्रीय मिर्गी दिवस मनाता है ताकि समाज में मिर्गी को लेकर जागरूकता फैलायी जा सके।
मिर्गी रोग की वजह
सवाल है भारत में आखिरकार दुनिया के सर्वाधिक मिर्गी रोगी क्यों रहते हैं? पहली वजह है कि भारत दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश है, इसलिए यहां मिर्गी रोगी भी सबसे ज्यादा हैं। दूसरी बड़ी बात यह कि भारत के ग्रामीण इलाकों और विशेषकर गरीब आबादी के पास मिर्गी जैसे रोगों के इलाज की पहुंच नहीं है। क्योंकि मिर्गी अपने आपमें कोई बीमारी नहीं है बल्कि यह मस्तिष्क की विद्युत गतिविधियों में असंतुलन की स्थिति है और ऐसा कई वजहों से होता है। जन्म के समय या बचपन में मस्तिष्क को गंभीर चोट लग जाना, जिससे कुछ देर के लिए दिमाग के कुछ हिस्से में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। सिर की चोट, मस्तिष्क में ट्यूमर, लकवा यानी स्ट्रोक तथा आनुवंशिक कारण भी भारत में सर्वाधिक मिर्गी रोगियों के लिए अनुकूल स्थितियां बनाते हैं। ज्यादा शराब पीने वाले या बहुत कम नींद लेने वाले लोगों को भी यह समस्या हो जाती है। इसके अलावा 10 फीसदी लोगों के संबंध में मेडिकल साइंस कभी यह नहीं जान पाती कि उन्हें मिर्गी का क्या कारण है।
जोखिम कम करने को लेकर सजगता
विशेषज्ञों की मानें तो मिर्गी को तो पूरी तरह से रोका नहीं जा सकता, लेकिन सजग रहकर इसके जोखिम को कम किया जा सकता है। मिर्गी रोग से बचने के जो सजग उपाय हो सकते हैं, वो इस तरह से हैं- जन्म के समय सुरक्षित प्रसव जरूरी है ताकि बच्चे के स्वास्थ्य की देखभाल सही तरीके से हो सके और प्रसव के दौरान उसके मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी की स्थितियां न पैदा हों। दूसरी बात, सिर की चोट से बचाव करना बहुत जरूरी है, इसलिए हेलमेट पहनने के नियम को सड़क यातायात में कड़ाई से लागू किया जाता है। इसके अलावा मैनिनजाइटिस और जापानी इंसेफेलाइटिस के टीके लगवाना भी जरूरी होता है। पर्याप्त नींद लें, नशे से दूर रहें, तनाव से बचें, ये कुछ ऐसे उपाय हो सकते हैं, जिनसे कि मिर्गी रोग की चपेट में आने से बचा जा सकता है।
इलाज और नियंत्रण
लेकिन एक बार अगर मिर्गी रोग के लपेटे में आ जाएं तो इसका इलाज और नियंत्रण बहुत जरूरी है। मिर्गी से बचाव का सबसे प्रमुख तरीका यह है कि न्यूरोलॉजिस्ट से नियमित दवा लें, दवा अचानक बंद न करें, इससे दौरे बढ़ सकते हैं। संतुलित जीवनशैली अपनाएं, ध्यान, योग और परिवार का सहयोग जैसे उपाय भी मिर्गी के इलाज व स्थिति पर नियंत्रण रखने की दृष्टि से मददगार हैं। कुछ गंभीर मामलों में सर्जरी या वेगस नर्व स्टुमलेशन जैसी आधुनिक तकनीकें भी कारगर होती हैं।
सामाजिक समस्या भी
मिर्गी मस्तिष्क संबंधी बीमारी है। भारत में मस्तिष्क स्वास्थ्य अभी निम्न तथा मध्यवर्ग के लोगों के बीच इससे बचाव की सुविधाएं और समझ सीमित है। भारत के ग्रामीण इलाकों में लोग इसे भूत-प्रेत से जोड़ देते हैं। इससे इलाज में देर होती है। इस कारण इलाज का फायदा भी नहीं मिलता। भारत में हर साल 5 लाख से ज्यादा नये मिर्गी रोगी जुड़ जाते हैं। मिर्गी की बीमारी के कारण कई लोगों को रोजगार, विवाह या शिक्षा के अवसरों से वंचित होना पड़ता है। इसलिए मिर्गी सामाजिक समस्या भी है। कई लोग मिर्गी जैसी बीमारी को आज भी कर्म के फल के रूप में देखते हैं। मिर्गी रोगी हताश हो जाते हैं व इससे बचने के उपाय भी जितने करने चाहिए, उतने नहीं कर पाते। यह डॉक्टरों के लिए एक बड़ी चुनौती है कि वे मिर्गी रोगियों को भरोसा दिलाएं कि यह उपचार और नियंत्रण योग्य समस्या है। इंडियन इपीलैप्सी एसोसिएशन मिर्गी रोगियों को यह भरोसा दिलाने के लिए काम करती है कि मिर्गी एक उपचार योग्य समस्या है।
-इ.रि.सें.
Advertisement
Advertisement
×

