एक रूढ़िवादी मुस्लिम समाज से निकलकर इस्तांबुल में अपने मुक्कों के दमखम से सोना लाने वाली निखत जरीन की कामयाबी सचमुच नई उम्मीद जगाती है। अभी उसकी उम्र महज पच्चीस साल ही है। ऐसी स्वर्णिम सफलताएं हासिल करने के लिये उसके पास काफी वक्त है। उसका अगला निशाना पेरिस ओलंपिक है। उसने यह सुनहरा तमगा हाल ही में संपन्न महिला विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में 52 किलोग्राम वर्ग में तुर्की में जीता। जरीन ने विश्व फ्लाइवेट फाइनल मुकाबले में थाईलैंड की जितपोंग को हराया। इस सुनहरे तमगे को जरीन अपने माता-पिता को समर्पित करती है। वह कहती है कि जब मेरा बुरा समय था और नाते-रिश्तेदारों से ताने ही मिल रहे थे, उस वक्त सिर्फ मेरे माता-पिता ही मेरे साथ थे। निखत कहती है कि मेरे पूरे फाइनल मुकाबले के दौरान मेरी मां ऊपर वाले से दुआ मांगती रही और वे दुआएं कबूल भी हुई हैं। वह कहती है- मेरे बुरे वक्त और चोट ने मुझे और मजबूत बनाया है। यूं तो जरीन विश्व महिला मुक्केबाजी चैंपियनशिप में सोना जीतने वाली पांचवीं महिला है, लेकिन उसकी यह कामयाबी इस मायने में खास है कि उसकी उम्र अभी सिर्फ पच्चीस साल है और उसका बहुत खेल बाकी है। उससे तमाम दूसरे सोने के तमगों की उम्मीद देश कर रहा है।
निखत की इस कामयाबी ने पूरे देश को गौरवान्वित किया। प्रधानमंत्री व खेल संघों द्वारा दी गई बधाई से वह फूली नहीं समाई। गोल्ड मेडल जीतने के बाद पत्रकारों से जब निखत को पता चला कि वह सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रही है तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। उसका कहना था कि उसका सपना था कि वह ट्विटर पर ट्रेंड करे। हालांकि, उसकी उपलब्धि किसी ट्रेंड से बहुत बड़ी है, लेकिन लगता है कि कहीं न कहीं दिल में पुरानी कसक बाकी थी। दरअसल, टोक्यो ओलंपिक के दौरान चयन को लेकर जरीन निराश थी। तब उसने खेल मंत्री से ओलंपिक के लिये चयनित विश्व मुक्केबाज मेरी कॉम से मुकाबला करने की मांग की थी। यह मुकाबला दिल्ली में हुआ और जरीन को करारी हार मिली, जिसके बाद वह ट्विटर पर ट्रोल हुई। कहीं न कहीं अवचेतन में यह कसक जरीन के मन में रही कि एक दिन वह जीत के जरिये ट्विटर पर ट्रेंड करे। इस सुनहरी सफलता ने उसे यह मौका दिया और उसे दोहरी खुशी मिली।
तेलंगाना की निखत जरीन की इस कामयाबी में उसके परिवार का बड़ा योगदान रहा। उनका कहना था कि इस दिन के लिये वे सालों से प्रतीक्षा कर रहे थे; समाज के ताने सुन-सुनकर हमारे कान पक गये थे। इन चुनौतियों ने बेटी को मजबूत बनाया और मां-बाप उसके पीछे चट्टान की तरह खड़े रहे। नाते-रिश्तेदारों के उलाहने को दरकिनार करके उन्होंने बेटी की क्षमता पर भरोसा दिखाया। मां परवीन सुल्तान कहती हैं कि इस्तांबुल की जीत ने उनकी मुद्दतों की मुराद पूरी कर दी थी। इस दिन के लिये परिवार को लंबी प्रतीक्षा करनी पड़ी। वहीं पिता जमील अहमद की वर्षों की कसक को भी निखत ने दूर किया क्योंकि वे बचपन में बाॅक्सर बनना चाहते थे, परिवार के हालात व अच्छे मौके न मिलने से वे ऐसा न कर सके। वे अपनी इस दशकों पुरानी इच्छा को जरीन के सुनहरे तमगे में पूरा होते देख प्रफुल्लित हैं।
निस्संदेह, जरीन की वैश्विक स्तरीय कामयाबी नई पीढ़ी के मुक्केबाजों के लिये एक प्रेरणा ही है। उल्लेखनीय है कि निखत जरीन ने महज तेरह साल की उम्र में मुक्केबाजी की स्पर्धाओं में भाग लेने की शुरुआत की। इसके सिर्फ छह माह बाद उसने राज्यस्तरीय चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीत लिया। उसके कुछ महीने बाद वह सब जूनियर चैंपियनशिप में सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाज बनी। उसकी प्रतिभा में तब निखार आया जब उसे भारतीय खेल प्राधिकरण से विधिवत प्रशिक्षण मिलने लगा। फिर जरीन ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वर्ष 2011 में विश्व जूनियर व युवा चैंपियनशिप में स्वर्ण हासिल करके जरीन ने अपने सुनहरे इरादे जाहिर कर दिये। इसके बाद थाइलैंड में संपन्न एशियाई चैंपियनशिप में रजत पदक व बुल्गारिया में संपन्न मुक्केबाजी चैंपियनशिप में सोने का तमगा हासिल करके जरीन ने अपने विजय अभियान को जारी रखा। इसके बावजूद जरीन ने बॉक्सिंग रिंग व बाहर अपनी जगह बनाने के लिये बड़ा संघर्ष किया। तुर्की में मेरी कॉम की अनुपस्थिति और जरीन की कामयाबी यह बताती है कि भारतीय मुक्केबाजी में जरीन का नया दौर शुरू हो रहा है, जिसके लिये निखत जरीन आत्मविश्वास से भरी है। वह हैदराबादी नजाकत व मुक्कों के दमखम के साथ कामयाबी के नये सोपान तय करने को बेताब है।
बहरहाल, एक परंपरावादी मुस्लिम परिवेश से निकलकर मुक्केबाजी के क्षेत्र में शिखर की कामयाबी हासिल करना, निखत जैसी हजारों लड़कियों को प्रेरणा देगा। जो बताता है कि इरादे मजबूत हों तो बाक्सिंग रिंग व बाहर भी अपनी अलग जगह बनायी जा सकती है। अपने सपनों को हकीकत बनाया जा सकता है। विश्व मुक्केबाजी चैंपियनिशिप में चार साल बाद भारत की झोली में स्वर्ण पदक डालने वाली निखत अब अगले पेरिस ओलंपिक की तैयारी में जुट गई है। अभी तो जरीन की शुरुआत है, उसे बड़े लक्ष्य हासिल करने हैं।