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बदले हालात में हमें अच्छे दोस्तों की ज़रूरत

हमें दुश्मनों, आगे उनके दोस्तों और उनकी क्षमताओं की भी अच्छी समझ बनाए रखनी होगी। हम स्वीकारें कि इस मामले में, फिलहाल हम लगभग अकेले पड़े हैं, और दोस्तों और हमारे सशस्त्र बलों के लिए पर्याप्त संसाधनों के बिना इस...
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हमें दुश्मनों, आगे उनके दोस्तों और उनकी क्षमताओं की भी अच्छी समझ बनाए रखनी होगी। हम स्वीकारें कि इस मामले में, फिलहाल हम लगभग अकेले पड़े हैं, और दोस्तों और हमारे सशस्त्र बलों के लिए पर्याप्त संसाधनों के बिना इस विशाल काम का सामना करना मुश्किल होगा।

क्या कश्मीर समस्या ‘सुलझ’ गई है? एक पूर्ण युद्ध की कगार से वापसी कर, शांति और सुकून की मौजूदा घड़ी बनने तक का यह बदलाव अचानक हुआ। दो परमाणु शक्ति संपन्न ताकतें एक-दूसरे पर बमबारी, ड्रोन हमले, लड़ाकू विमान और नौसेना तैनात करने और सैन्य टुकड़ियों को सक्रिय करते-करते अचानक से युद्धविराम करते हुए, जीत के आपसी दावे तक पहुंच गईं।

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जो लोग अंजान हैं, उनके लिए, जैसे पहले स्थिति बनी, फिर पैमाना बढ़ा और फिर अचानक युद्धबंदी हो गई, उन्हें हैरानी हुई होगी- क्या दोनों पक्ष सिर्फ़ नए हथियारों का परीक्षण कर रहे थे ? मगर जानकार के लिए, यह किसी पुराने नाटक का एक अन्य दृश्य है, ऊंचे कोरस गायन सहित। आज़ादी के बाद से, हमने चार युद्ध लड़े हैं व पाक के साथ अनेकानेक झड़पें हुई हैं। विभाजन सांप्रदायिक आधार पर हुआ, और खूनी संघर्ष एवं घृणा की नींव बना, जिस पर बाद के टकराव आधारित रहे। जम्मू और कश्मीर भारत का एकमात्र मुस्लिम बहुल राज्य है जो कि अब केंद्रशासित प्रदेश है। पाक पूरा कश्मीर पाना चाहता है। यह तथ्य कि पाक के कब्जे वाले कश्मीर सहित, यह इलाका सामरिक रूप से चार मुल्कों (अफगानिस्तान, पाकिस्तान, चीन और भारत) के संगम पर स्थित है, जो इसे और वांछनीय बनाता है।

चीनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई), जिसे नया सिल्क रोड कहा जाता है, उसकी धुरी चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा है, जो कि चीन के शिनजियांग को, पीओके से होकर, ग्वादर से जोड़ता है। यह गलियारा चीनी माल की भूमार्गीय पहुंच मध्य एशियाई देशों से यूरोप तक बनाता है। यह सड़क चीन को बारास्ता ग्वादर तट, आगे समुद्री मार्ग से मध्य पूरबी मुल्कों से भी जोड़ती है। बीआरआई में चीनी अनुबंध और निवेश 124 बिलियन डॉलर का है, जिसमें इस साल की पहली छमाही में 176 से अधिक के अनुबंध हुए हैं। जिससे परियोजना में निवेश 1.3 ट्रिलियन डॉलर हो गया। सबसे ज़्यादा निवेश अफ़्रीका व मध्य एशिया में हुआ है (स्रोत ः फ़ाइनेंशियल टाइम्स, 17 जुलाई)।

लिहाजा, कोई आश्चर्य नहीं कि चीन बार-बार पाक सरकार को अपना अगाध समर्थन देता है। हालिया टकराव में भी पाक द्वारा कथित तौर पर चीन निर्मित लड़ाकू विमान, मिसाइलें, संचार, निगरानी उपग्रह और सुरक्षा प्रणालियों का इस्तेमाल किया गया।

मीडिया और बुद्धिजीवियों के उन वर्गों के लिए, जो पाक को एक दिवालिया और आसानी से हराया जाने वाला देश बताते रहते हैं- उनका भू-राजनीति की वास्तविक दुनिया में स्वागत है। पाक उस व्यावसायिक फर्म की तरह है जो कहने को तो अध्याय 11 (दिवालियापन संहिता) में आती हैं, लेकिन अपने देनदारों से तालमेल बिठाते हुए और व्यवस्था से खेल करते हुए, संभावित दाताओं के समक्ष खुद को कैसे पेश करना है, बखूबी जानते हैं।

हालिया सैन्य टकराव का पैमाना विस्तारित होकर, लड़ाई के कहीं अधिक जटिल पटल तक फैल गया था। लेकिन इन दिनों, पुंछ और राजौरी में गोलीबारी की कोई ख़ास सुर्खियां नहीं आ रहीं। युद्ध के नए युग में ड्रोन, उपग्रह, निर्देशित मिसाइलें और जाने क्या-क्या उपयोग होता है। इससे इनकी मार केवल सीमावर्ती क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि पूरे देश में महसूस होगी- हमें इस हिसाब से तैयारी करनी होगी। विदेश मंत्रालय ने 11 जुलाई को वार्षिक रिपोर्ट वेबसाइट पर डालते हुए कहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर भारत कोई समझौता नहीं करेगा। सुरक्षा व क्षेत्रीय अखंडता को कमज़ोर करने की सभी कोशिशों से निपटने के लिए दृढ़ और निर्णायक कदम उठाएगा। हालांकि, निवारक कार्रवाई के बाद भी पाक का रवैया नहीं बदला है।

उसके सेना प्रमुख, फील्ड मार्शल असीम मुनीर का लहजा और बोल और आक्रामक हुए हैं, और वे कश्मीर को पाक की श्वास नली बताते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ने उन्हें व्हाइट हाउस में भोज पर आमंत्रित किया, जिससे उन्हें और शह मिली। पाक वायुसेना प्रमुख भी शीर्ष अमेरिकी अधिकारियों से विचार-विमर्श हेतु पेंटागन में आमंत्रित किए गए। अमेरिकी राष्ट्रपति ने युद्धविराम (जो भारत-पाक डीजीएमओ के बीच एक द्विपक्षीय मामला था) का श्रेय लेक भारत व पाक को एक-बराबर रखने की कोशिश की है। आर्थिक मोर्चे पर, अमेरिकी दबाव में विश्व बैंक और आईएमएफ ने पाक को ऋण मंजूर किया। वित्तीय कार्रवाई कार्यबल ने भी पाक को डिफॉल्टर सूची में न डालते हुए बख्श दिया। इन घटनाक्रमों के मद्देनजर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना रुख स्पष्ट कर दिया है। भारत ने नीतिगत रुख में संशोधन करते हुए कहा है कि आइंदा हर आतंकी कार्रवाई को युद्ध माना जाएगा और उससे उसी तरह निपटा जाएगा।

ऐसे हालात में, अब आगे हमारे लिए क्या? कश्मीर या भारत में अन्यत्र कहीं, उकसावे वाला कांड होने की पूरी आशंका है। पाक के विभाजन उपरांत खुमार और चार युद्धों में भारी क्षति, व उसके निहित स्वार्थ, कश्मीर कब्ज़ाने की कोशिशों को मजबूर करते हैं।

पहले, यह काम आतंकवाद को शह और मदद देकर बढ़ावा देकर होता रहा, यह तरीका आईएसआई ने अमेरिका की मदद से अफ़ग़ान तालिबान तैयार करते वक्त अच्छी तरह सीखा। आईएसआई ने इसका इस्तेमाल भारत को एक छद्म युद्ध में फंसाए रखने, मनोबल गिराने, मुद्दे को ज़िंदा रखने और जख्म देने के लिये किया।

तो, अगला पहलगाम जैसा कुछ होने पर क्या होगा? क्या प्रतिक्रिया घोषणा के मुताबिक पूर्ण युद्ध की रहेगी? या फिर सीमित झड़पों वाली रहेगी? क्या हम टकराव से लाभ कमाने वारे शरारती तत्वों के हाथों में खेलेंगे? हम बदली नीति के मद्देनज़र, तमाम महत्वपूर्ण सैन्य पहलुओं में सदैव उच्च-स्तरीय तत्परता बनाए रखें। हम सुनिश्चित करें कि जैसे-जैसे हम तनाव के पायदान चढ़ते जाएंगे, सैन्य मानव-बल, गोलाबारी, निगरानी प्रणाली, तकनीक आदि में इष्टतम जरूरतों की पूर्ति बनी रहे।

वायु सेना प्रमुख, एयर चीफ मार्शल एपी सिंह, पदभार ग्रहण करने के दिन से ही शिकायत करते आए हैं कि उनके पास स्वीकृत स्क्वाड्रनों की संख्या तक नहीं है। साथ ही स्वदेशी उत्पादन बहुत सुस्त है, इसलिए हमें ‘जो भी, जैसा भी उपलब्ध है’ हथियार खरीदने पड़ रहे हैं। नौसेना की स्थिति कुछ बेहतर प्रतीत होती है, लेकिन निरंतर उन्नयन जरूरी है।

सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने भी कहा है कि पुराने हथियारों से आधुनिक युद्ध नहीं जीते जा सकते हैं। उन्होंने ‘भविष्य-उपयुक्त’ तकनीक अपनाने की जोर दिया है, मुख्यतः स्वदेशी विकास के माध्यम से। हमें नीतियां उपलब्ध व खरीदे जाने वाले उपकरणों के आधार पर बनानी होगी ।

जैसे-जैसे भारत वैश्विक पटल पर ऊंची जगह बनाने की कोशिश कर रहा है, वैसे ही वे शक्तियां भी आगे बढ़ेंगी, जिन्हें हमसे खतरा महसूस होता है। हमें कूटनीतिक मोर्चे पर बहुत सतर्क रहना चाहिए। हमें अन्य मित्रों और सहयोगियों की आवश्यकता है। हालिया टकराव के दौरान, एक भी पड़ोसी या दुनिया की कोई बड़ी ताकत हमारे साथ खड़ी नहीं हुई। वहीं पाक को चीन और तुर्किए का ठोस समर्थन मिला।

हमें अपनी विदेश नीति पर गहराई से पुनर्विचार करना होगा । इसके लिए उच्चतम राजनीतिक एवं नौकरशाही स्तर पर काम करना होगा। इस बारे में निर्णय में कोई देरी स्वीकार्य नहीं, और हमें अंतरिम एवं दीर्घकालिक उपायों के मुताबिक निर्णय लेना होगा।

हमें दुश्मनों, आगे उनके दोस्तों और उनकी क्षमताओं की भी अच्छी समझ बनाए रखनी होगी। हम स्वीकारें कि इस मामले में, फिलहाल हम लगभग अकेले पड़े हैं, और दोस्तों और हमारे सशस्त्र बलों के लिए पर्याप्त संसाधनों के बिना इस विशाल काम का सामना करना मुश्किल होगा।

लेखक मणिपुर के राज्यपाल और जम्मू-कश्मीर में पुलिस महानिदेशक रहे हैं।

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