योगी सरकार और अदालत में फर्क यह है कि योगी सरकार तो अगर आपको दंगे-वंगे कराने का दोषी मान लेती है तो जुर्माने के तौर पर आपकी सारी संपत्ति जब्त कर सकती है, पर अगर अदालत आपको अवमानना का दोषी मान ले तो वह एक रुपये जुर्माने को भी काफी मान सकती है। प्रशांत भूषण पर सर्वोच्च अदालत ने एक रुपये का ही जुर्माना लगाया है। बल्कि वह तो उन्हें माफ करने के लिए भी तैयार थी, अगर वे माफी मांग लेते। पर उन्होंने माफी नहीं मांगी। इस माने में वे कुछ-कुछ मोदीजी टाइप के निकले, जिन्होंने गुजरात के दंगों पर कभी माफी नहीं मांगी।
वे चाहते तो उस तरह से माफी मांग सकते थे, जिस तरह से कांग्रेस ने चौरासी के दंगों के लिए मांगी। हालांकि समझाने वालों ने उन्हें बहुत समझाया था कि माफी तो बड़े-बड़े लोग मांग लेते हैं। बल्कि कुछ ने तो सावरकर जैसे लोगों के उदाहरण भी दिए और बताया कि उन्होंने अंग्रेजों से माफी मांगी थी, फिर भी वीर बने रहे। कुछ तो संघ प्रमुख तक का उदाहरण देने तक चले गए और बताया कि उन्होंने इमरजेंसी में इंदिराजी से माफी मांग ली थी। लेकिन प्रशांत भूषण ने माफी नहीं मांगी। बोले कि यह हमारे संविधान तथा न्यायपालिका की अवमानना होगी। वे गंाधी को टेरते रहे।
अगर प्रशांत भूषण ने माफी नहीं मांगी और अपनी बात पर अड़े तो अदालत भी उन्हें दंडित करने पर अड़ी रही। हालांकि बड़े-बड़े लोग दुहाइयां देते रहे कि मी लॉर्ड बंदे को माफ कर दिया जाए। खुद अटॉर्नी जनरल ने दुहाई दी कि हुजूर माफ कर दीजिए। पर अदालत ने कहा कि नहीं, इसने हमें अनुचित कहा है, कैसे माफ कर दें। इस पूरे प्रकरण में एक अच्छी बात यह हुई कि स्वरा भास्कर बच गयी। अटॉर्नी जनरल ने उनके खिलाफ अवमानना का केस चलाने की इजाजत देने से इनकार कर दिया। अवमानना के एक मामले में तो इतना हंगामा था, अगर दूसरा भी शुरू हो जाता तो क्या होता, अंदाजा ही लगाया जा सकता है।
खैर, समझाने वाले इधर भी और उधर भी समझा रहे थे। कुछ ने तो इतना तक समझाने की कोशिश कि अगर अदालत ने सज़ा दी तो अदालत का कद छोटा हो जाएगा। पर कद छोटा होने की परवाह न करते हुए अदालत ने सज़ा दे ही दी। एक रुपया जुर्माना। अब आप यह मत कहना कि एक रुपया तो आजकल भिखारी भी नहीं लेता। तो जनाब रुपया बड़ी चीज नहीं होता, जुर्माना बड़ी चीज होता है। कई बार हमारी पंचायतें भी ऐसे ही जुर्माने लगाती हैं। अब यह तो नहीं कह सकते कि अदालतें, पंचायतें बन गयी हैं, पर कई बार यह जरूर लगता है कि पंचायतें अदालत बन गयी हैं।