प्रदीप कुमार दीक्षित
कोरोना की दूसरी लहर काफी हद तक शांत हो चुकी है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वायरस हमेशा के लिए चला गया है। वायरस अभी भी हमारे बीच घूम रहा है। वह मौके की तलाश में है। अगर फिर से लापरवाही की तो इसके परिणाम भयावह हो सकते हैं। तीसरी लहर आ सकती है। अभी जश्न मनाने का समय नहीं है। गुणी लोग यह चेतावनी बार-बार दे रहे हैं।
लेकिन दिशा-निर्देशों को बड़ी संख्या में लोग सिर पर कफन बांध कर पहले भी नहीं मान रहे थे, अब भी सुनेंगे क्या। ऐसे लोगों के लिए मास्क लगाना, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना ऐच्छिक ही रहा। कुछ वीरजादे दो-दो बार कोरोना से पीड़ित हुए और फिर बिना मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग के ताल ठोकने लगे।
इसी अवधि में एक युवक और एक युवती ने तो पीपीई किट पहन कर सात जन्मों का साथ निभाने के फेरे लिए। युवती के कोरोना पीड़ित होने के बावजूद विवाह हुआ। जब इस जन्म में ही साथ निभ जाने का पक्का नहीं तो भी यह दुस्साहस किया गया। लोगों ने बात-बिना-बात मिलना-जुलना नहीं छोड़ा। चौपाल लगा कर देश-परदेस की चर्चा करते रहे। इसी दौरान चुनाव भी हुए। जनसंपर्क भी हुआ। आमसभाएं भी हुईं। इन सबने कोरोना पीड़ितों की संख्या में बढ़ोतरी में अपना योगदान दिया। इनमें कुछ जनप्रतिनिधि भी शामिल रहे, जिन्हें कोरोना से संबंधित दिशा-निर्देशों का पालन करना था और जनता से भी करवाना था।
लेकिन वे निर्देशों की धज्जियां उड़ाने के अगुआ बन गए। उन्होंने पुलिस और प्रशासन से तो यह कह कर रौब झाड़ा, ‘मुझे जानते नहीं हो क्या।’ लेकिन कोरोना ऐसे स्वयंभू लोगों को नहीं जानता था। वह ऐसे कुछ लोगों को अपने साथ लेकर चला गया। ऐसे लोगों ने यमराज के सामने भी रौब झाड़ा होगा कि भैयाजी से बात करवाऊं क्या। यानी ऐसे लोगों को सुधारना आसान नहीं।
कुछ लोग छूट मिलते ही बिना सुरक्षा के बाजारों में जा घुसे। जैसे बाजार में मिलने वाला सामान बाद में नहीं मिलने वाला है। कुछ लोग इस दौर में जोर-शोर से त्योहार मनाने में जुट गए, जैसे अगले वर्ष यह त्योहार आएगा ही नहीं। यह बात अलग है कि त्योहार तो आएगा लेकिन ये जश्न प्रेमी रहेंगे कि नहीं, यह पक्का नहीं है। कुछ कारोबारी महामारी के नाम पर जेब भरने का त्योहार मनाते रहे। जिस सामान की कमी थी, उसे गायब करके महंगे दामों पर बेचने लगे। नकली माल बना कर बेचने लगे।
उधर कभी सेवा के लिए विख्यात रहे सेवक रोगियों के लिए अपने जाल बिछा कर बैठ गए। इनमें जब भी कोई रोगी फंसते रहे, उनकी बांछें खिलती रहीं। एक मरीज भर्ती करवाने पर दूसरे मरीज का इलाज फ्री जैसे ऑफर भी हवा में तैरने लगे। ऐसे लोगों को ही कोरोना की तीसरी लहर का बेसब्री से इंतजार है ताकि शवों पर अपने हितों की रोटियां सेंक सकें।