दुनिया भले कहती रहे कि अब किसी पर भरोसा करने का समय न रहा। एक शायर ने तो कहा भी है कि ‘मतलबी दुनिया में कौन किसका होता है/धोखा वही देता है जिस पे भरोसा होता है। ’ लेकिन,भरोसे पर तो दुनिया कायम है। भरोसा अब भी सलामत है बल्कि पहले से कहीं ज्यादा लोग भरोसा कर रहे हैं। भले आपको मेरी बात पर भरोसा हो-न हो।
नौकरीपेशा दंपति अपने दुधमुंहे बच्चे को आया के हाथ सौंपकर ओवरटाइम ड्यूटी करते हैं। हम अपने बच्चों को बड़े स्कूल में भर्ती करवाकर ये मानकर चलते हैं कि इसे हजारों की पगार नहीं लाखों का पैकेज ही मिलना है। पव्वा चढ़ाए पति के साथ पत्नी मय-झोला बाइक पर बेधड़क मीलों सवारी कर लेती है। डेचकी सिर पर लिए घूमती देहाती औरत से हम आंख मूंदकर किलो भर घी या शहद खरीद लेते हैं। अच्छे भले पढ़े-लिखे लोग नीम-हकीमों से महीनों गुर्दों का इलाज चलाते हैं। टोपी पहनकर टोपी पहनाने आए गधों को हम काका बना लेते हैं। …अब यह भरोसा नहीं तो और क्या है?
भरोसे की बात पर याद आया कि दीगर लोगों की तुलना में ‘गुटक्खड़’ प्रजाति के लोग ज्यादा भरोसा दिखाते हैं। हमारे सहकर्मी माणक जी गुटखा पाउच खाने के शौकीन हैं। पहले ‘टुक’ लगने पर ही खाते थे मगर जबसे ‘खाद्यान्न परमिट वितरण शाखा’ में अटैच हुए उनकी यह आदत लत बन गई। हालांकि यह कोई नई बात नहीं। सारा देश खा रहा है। कोई कुछ तो कोई कुछ…। जिन्हें बीवी-बच्चों के सामने खाने में असहज लगता है, वे दफ्तरों में खाते हैं। जो दफ्तरों में नहीं खा पाते, वे बाथरूम के बहाने आड़ में जाकर खाते हैं। वे कहते हैं, ‘न खाओ तो मुंह बसाता है।’ न खाने वाले से लोग पायरिया रोगी-सा व्यवहार करते हैं। खाने वाले से सब प्रसन्न रहते हैं।
अब तो माणक जी गुटखा पाउच की पूरी चेन खरीदते हैं और उन्हें मुंह के हवाले करके चैन पाते हैं। उनका स्टाइल है गुटखा पाउच को दांतों से फाड़ आसमान को निहारते हुए मुंह में उड़ेलना। गोया खाते हुए ऊपर वाले को धन्यवाद ज्ञापित कर रहे हों।
एक रोज माणक जी मुंह उठाए ऐसे ही गुटखा खाते दिखे तो मैंने समझाया, ‘पता है आजकल गुटखा पाउचों में पिन, स्क्रू, कंकड़ और मरी हुई छिपकलियां निकलने लगी हैं, मुंह में चली गई तो…?’
‘अरे! सब दुष्प्रचार है।’ माने ‘खातों के मुंह से पाउच छीनने’ जैसा षड्यंत्र। कोई भी कंपनी अपने ग्राहकों के मुंह में पिन थोड़ी ना चुभोना चाहेगी! ‘एक बात कहूं, गुटखा पाउच खाने से कैंसर होता है।’ मैंने उन्हीं से पाउच लेकर ‘वैधानिक चेतावनी’ पढ़वाई।
‘बहुत छोटी बात है’ वे बोले।
‘बड़ी बात होती तो यहां बड़े अक्षरों में छापी जाती।’ उन्हें भरोसा है। …पक्के वाला।