
ऋषभ जैन
लोकतंत्र है तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होनी चाहिए। लोकतंत्र है तो माइक पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होनी चाहिए। लोकतंत्र है तो चालू माइक पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होनी चाहिए। आरोप है कि ऐसा नहीं हो रहा। आरोप है कि उनका माइक बंद कर दिया जाता है। उन्हें अभिव्यक्ति से वंचित रखा जाता है।
ऐसी ही समस्या गुप्ता जी की भी थी। उन्हें माइक से दूर रखा जाता था। सोसायटी वाले बताते थे कि गुप्ता जी के हाथ माइक आ जाये तो वे पकाते बहुत हैं। वे कहते थे कि यदि गुप्ता जी मनभावन बातें सुनाएं तो उन्हें भी माइक दिया जायेगा।
हो सकता है कि सदन के माइक पर भी पकाऊ अभिव्यक्तियां की जाती हों। अभिव्यक्तकर्ताओं को समझना चाहिए। उन्हें सदन में ऐसी बातें करनी चाहिए जो उन अज्ञातजनों को भी रास आयें जिनका हाथ माइक बंद करने के पीछे है। फिर देखना उनका माइक हमेशा चालू रखा जायेगा।
गुप्ता जी ने तो एक अदद बैटरी वाला माइक खरीद लिया है। जिन-जिन को भी माइक बंद किये जाने की शिकायत है उन-उन को अपने-अपने माइक खरीद लेने चाहिए। उन्हें अपना निजी माइक लेकर सदन में जाना चाहिए। कुछ लोगों का कहना है कि इससे सदन में बड़ी कांय-कांय मच जायेगी। वे गलत कहते हैं। सदन में तो वैसे भी कांय-कांय मची रहती है।
देश में बड़ी नाराजगी है कि उन्होंने माइक बंद होने की बात विदेश जाकर कही। उनका कहना है कि वे यह बात देश में कहना चाहते थे, पर कैसे कहते? यहां का माइक ही बंद था। वे यहां कहते तब भी बात विदेश चली ही जाती। ठीक वैसे ही जैसे विदेश में कहा तब भी बात यहां आ गयी। आजकल कोई नहीं कहे तब भी बातें विदेश चली जाती हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स वगैरह पढ़ो तो इस बात का पता चलता है। आजकल कफील आजर साहब की बात चरितार्थ हो गयी है। बात निकलती है तो दूर तलक जाती ही है। उन्होंने माइक बंद किये जाने की बात की तो वह भी दूर तलक गयी। वह चीन और रूस भी गयी। वहां वालों का कहना है कि आपके देश में तो फिर भी गनीमत है कि माइक ही बंद हुआ। हमारे यहां तो विपक्ष ही बंद रखा गया है।
उन्हें खुश रहना चाहिए कि अभी केवल आवाज ही गायब की गयी है। माइक अभी भी अस्तित्व में है। माइक का उपयोग केवल बोलने के लिए नहीं है। सदन में माइक के बहुमुखी प्रयोग किये जाते रहे हैं।
उनका कहना है कि वे सदन में बोलते हैं तो माइक बंद कर दिया जाता है। वे फोन पर बोलते हैं तो उसे टेप कर लिया जाता है। वे सभा में बोलते हैं तो उससे काटकर गलत-सलत वीडियो क्लिप चला दी जाती हैं। वे विदेश में बोलते हैं तो आपत्ति की जाती है। वे कहते हैं कि हमें तो बोलने ही नहीं दिया जाता। हालांकि वे इस बात को बोलकर ही बताते हैं।
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