न्यायमित्रों की भूमिका सशक्त करने की जरूरत
कई जनहित याचिकाओं में विभिन्न हितधारकों के जटिल और परस्पर विरोधी हित शामिल होते हैं। एमिकस क्यूरी इन सभी दृष्टिकोणों को ध्यान में रखते हुए अदालत को एक संतुलित और न्यायसंगत समाधान तक पहुंचने में सहायता करते हैं।
भारत में जनहित याचिका प्रणाली सार्वजनिक न्याय तक पहुंच सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण रही है। हालांकि, इसकी प्रभावशीलता बढ़ाने और दुरुपयोग को कम करने के लिए लगातार सुधार की आवश्यकता है। इन सुधारों में से एक है एमिकस क्यूरी (न्यायालय मित्र) की भूमिका को और मजबूत करना। यह न केवल जनहित याचिका की गुणवत्ता में सुधार करेगा, बल्कि न्याय वितरण प्रणाली में भी दक्षता लाएगा। जनहित याचिकाएं भारतीय न्यायपालिका का एक महत्वपूर्ण उपकरण रही हैं, जिन्होंने हाशिए पर पड़े लोगों को आवाज देने और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि, हाल के वर्षों में इनकी गुणवत्ता और दुरुपयोग को लेकर चिंताएं बढ़ी हैं।
एमिकस क्यूरी, जिसका शाब्दिक अर्थ ‘अदालत का मित्र’ है, वह व्यक्ति या संस्था होती है जो किसी मामले में पक्षकार न होते हुए भी अदालत को कानूनी या तथ्यात्मक जानकारी प्रदान करती है। इनकी विशेषज्ञता अदालत को जटिल मुद्दों को समझने और निष्पक्ष निर्णय लेने में मदद करती है। जनहित याचिकाओं के संदर्भ में, जहां अक्सर व्यापक सामाजिक, आर्थिक या पर्यावरणीय मुद्दे शामिल होते हैं, एमिकस क्यूरी की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। न्यायमित्र की भूमिका को भारतीय न्यायपालिका में एक ‘शांत क्रांति’ के रूप में देखा जा सकता है। कानूनी रूप से, न्यायमित्र की नियुक्ति भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सर्वोच्च न्यायालय और अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालयों की अंतर्निहित शक्तियों के दायरे में आती है। ये अनुच्छेद अदालतों को पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक आदेश पारित करने की शक्ति देते हैं।
दरअसल, जनहित याचिका ऐसे जटिल मुद्दों से संबंधित होती हैं जिनके लिए विशिष्ट वैज्ञानिक, तकनीकी या सामाजिक-आर्थिक विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है, जो अदालतों के पास हमेशा नहीं होती। ऐसे में, संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञों को एमिकस क्यूरी के रूप में नियुक्त करने से अदालत को मामले की गहराई और बारीकियों को समझने में मदद मिलती है। इसके अतिरिक्त, जनहित याचिका में प्रस्तुत तथ्य कभी-कभी अपर्याप्त या एकतरफा हो सकते हैं। एमिकस क्यूरी स्वतंत्र रूप से तथ्यों की गहन जांच कर सकते हैं, अतिरिक्त जानकारी जुटा सकते हैं, और अदालत के सामने एक निष्पक्ष और संपूर्ण तस्वीर प्रस्तुत कर सकते हैं।
कई जनहित याचिकाओं में विभिन्न हितधारकों के जटिल और परस्पर विरोधी हित शामिल होते हैं। एमिकस क्यूरी इन सभी दृष्टिकोणों को ध्यान में रखते हुए अदालत को एक संतुलित और न्यायसंगत समाधान तक पहुंचने में सहायता करते हैं। एमिकस क्यूरी द्वारा प्रदान की गई स्पष्ट और सटीक जानकारी अनावश्यक बहस और समय की बर्बादी को कम करके मामलों के शीघ्र निपटारे में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है, जिससे न्याय वितरण प्रणाली में दक्षता आती है।
ताजमहल संरक्षण मामले में एम.सी. मेहता की भूमिका एक सशक्त एमिकस क्यूरी का उत्कृष्ट उदाहरण है। 1980 के दशक में, सुप्रीम कोर्ट ने मेहता को ताजमहल को प्रदूषण से बचाने वाली जनहित याचिका में एमिकस क्यूरी नियुक्त किया। उनके व्यापक शोध और विस्तृत रिपोर्टों के आधार पर, सुप्रीम कोर्ट ने उद्योगों को स्थानांतरित करने और प्रदूषण नियंत्रण उपायों को लागू करने जैसे ऐतिहासिक निर्देश दिए।
इस बाबत हम कुछ अन्य देशों से प्रेरणा ले सकते हैं जहां यह व्यवस्था अधिक विकसित और व्यवस्थित है। भारत में, जनहित याचिका मुख्य रूप से न्यायिक सक्रियता पर केंद्रित रही है, लेकिन कुछ देशों में नागरिक भागीदारी को एक अलग और संगठित तरीके से बढ़ावा दिया जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में, एमिकस क्यूरी अक्सर महत्वपूर्ण संवैधानिक या सार्वजनिक हित के मामलों में हस्तक्षेप करते हैं। वे न केवल कानूनी तर्क प्रस्तुत करते हैं, बल्कि संबंधित हितधारकों के दृष्टिकोण और सामाजिक-आर्थिक प्रभावों पर भी व्यापक जानकारी प्रदान करते हैं। उनकी भागीदारी अक्सर कई पक्षकारों द्वारा की जाती है, जो न्यायालय को विभिन्न दृष्टिकोणों से अवगत कराती है। इसके विपरीत, भारत में, एमिकस क्यूरी की भूमिका आमतौर पर एकल व्यक्ति तक सीमित होती है कनाडा में, एमिकस क्यूरी को ‘सार्वजनिक हित हस्तक्षेपकर्ता’ के रूप में देखा जाता है, जो कानूनी सहायता के साथ-साथ नीतिगत और सामाजिक प्रभावों पर भी प्रकाश डालते हैं, और न्यायालय अक्सर विशेषज्ञ संगठनों को आमंत्रित करता है। ये वैश्विक उदाहरण दर्शाते हैं कि एमिकस क्यूरी की व्यापक और बहुआयामी भूमिका जनहित याचिकाओं की प्रभावशीलता को बढ़ा सकती है।
भारत में जनहित याचिका प्रणाली को सुदृढ़ करने के लिए विशेषज्ञता-आधारित पैनल बनाए जा सकते हैं, जिसमें वकील के साथ-साथ वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री और अन्य विशेषज्ञ शामिल हों, ताकि न्यायालय को तकनीकी और सामाजिक पहलुओं की गहरी जानकारी मिल सके। एमिकस क्यूरी को सक्रिय भूमिका और जांच का अधिकार भी दिया जाना चाहिए, जिससे वे न केवल कानूनी सलाह दें, बल्कि जानकारी जुटाकर और जमीनी जांच करके मामले की वास्तविक स्थिति प्रस्तुत करें।
लेखक कुरुक्षेत्र विवि के विधि विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं।