उनके डंके में गुम रही जो आवाज़! : The Dainik Tribune

सुमन कल्याणपुर

उनके डंके में गुम रही जो आवाज़!

उनके डंके में गुम रही जो आवाज़!

हेमंत पाल

फ़िल्मी दुनिया के रिवाज अजीब हैं। यहां एक बड़ी प्रतिभा के पीछे कई दूसरी प्रतिभाएं दब जाती हैं। ऐसे ही जब मंगेशकर बहनों का डंका बजता था, तब कई मधुर पार्श्व गायिकाओं को आगे बढ़ने का मौका नहीं मिला। ऐसी ही एक गायिका हैं, सुमन कल्याणपुर। उन्होंने अपने दौर के करीब सभी बड़े संगीतकारों के लिए गीत गाये। उनकी आवाज और गायकी का अंदाज काफी हद तक लता मंगेशकर से मिलता था। यही कारण रहा कि जब भी लता की किसी संगीतकार या गायक से अनबन हुई, तो उसका लाभ सुमन कल्याणपुर को मिला। लेकिन, उनके जीवन में एक घटना ऐसी घटी जो उन्हें आज भी कचोटती है। महाराष्ट्र के नांदेड़ में आयोजित ‘आषाढी महोत्सव’ के दौरान सुमन कल्याणपुर ने उस बात का खुलासा भी किया था। उन्होंने बताया था कि 1946 में पंडित जवाहरलाल नेहरू के सामने मुझे ‘ए मेरे वतन के लोगो’ गीत गाने का मौका मिला था। यह जानकर मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। लेकिन, जब कार्यक्रम के दौरान गाना गाने को मंच के पास पहुंची तो मुझे रोका और कहा गया कि इस गाने के बजाय आप दूसरा गाना गाएं। कल्याणपुर ने बताया था कि ‘ए मेरे वतन लोगो’ मुझसे छीन लिया गया।

एक समय जब किसी मामले में मोहम्मद रफी और लता मंगेशकर में अनबन हुई तो इसका लाभ सुमन कल्याणपुर को मिला। रफ़ी के साथ गाये उनके अधिकांश गीत कामयाब हुए। दिल एक मंदिर है, तुझे प्यार करते हैं करते रहेंगे, अगर तेरी जलवानुमाई न होती, मुझे ये फूल न दे, बाद मुद्दत के ये घड़ी आई, ऐ जाने तमन्ना जाने बहारां, तुमने पुकारा और हम चले आए, अजहूं न आए बालमा, ठहरिए होश में आ लूं तो चले जाईएगा, ना ना करते प्यार तुम्हीं से कर बैठे, रहें ना रहें हम महका करेंगे, इतना है तुमसे प्यार मुझे मेरे राजदार और ‘दिले बेताब को सीने से लगाना होगा’ जैसे गीत उसी दौर में बने थे।

अपनी गुमनाम जिंदगी के बावजूद सुमन कल्याणपुर का लता मंगेशकर से हमेशा अपनत्व बना रहा। उन्हें आज भी लताजी के गाने पसंद हैं। उनका कहना है कि लता दीदी की आवाज बहुत कोमल और मधुर थी। उनकी आवाज मतलब एक ऐसा स्वर जो हम सभी के लिए आदर्श था। मैं उनसे चार या पांच बार ही मिली, लेकिन जब भी मिली तो मुझे अपनापन महसूस होता था। हमारा एक ही डुएट गाना ‘चांद के लिए’ भी रिकॉर्ड हुआ था।’

सुमन कल्याणपुर का जन्म 28 जनवरी, 1937 को ढाका में सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के बड़े बाबू शंकरराव हेमाड़ी के यहां उनकी पहली संतान के रूप में हुआ। शंकर बाबू और उनकी पत्नी सीता ने अपनी बेटी का नाम सुमन रखा। बच्चों की बेहतर पढ़ाई के लिए शंकर बाबू सपरिवार 1943 में मुंबई चले आए। उनके घर में कला और संगीत की तरफ सभी का झुकाव था। पहली बार उन्हें 1952 में ‘ऑल इंडिया रेडियो’ पर गाने का मौका मिला। ये सुमन कल्याणपुर का पहला सार्वजनिक कार्यक्रम था!

इसके बाद 1953 में उन्हें मराठी फिल्म ‘शुक्राची चांदनी’ में गाने का मौका मिला। उन्हीं दिनों शेख मुख्तार फिल्म ‘मंगू’ बना रहे थे जिसके संगीतकार मोहम्मद शफी थे। मराठी गीतों से प्रभावित होकर ही उन्होंने ‘मंगू’ में तीन गीत रिकॉर्ड करवाए थे। किन्तु, न जाने क्या हुआ और ‘मंगू’ के संगीतकार को बदल दिया गया। मोहम्मद शफी की जगह ओपी नैयर आ गए। उन्होंने सुमन कल्याणपुर के तीन में से दो गीत हटा दिए और सिर्फ एक लोरी ‘कोई पुकारे धीरे से तुझे’ ही रखी। ‘मंगू’ के फौरन बाद उन्हें इस्मत चुगताई और शाहिद लतीफ की फिल्म ‘दरवाजा’ में नौशाद के साथ पांच गीत गाने का मौका मिला। साल 1954 में उन्हें ओपी नैयर के निर्देशन में बनी फिल्म ‘आरपार’ के हिट गीत ‘मोहब्बत कर लो, जी भर लो, अजी किसने रोका है’ में रफी और गीता का साथ देने का मौका मिला था। सुमन के मुताबिक इस गीत में उनकी गायी एकाध पंक्ति को छोड़ दिया जाए तो उनकी हैसियत महज कोरस गायिका की रह गई थी।

आज भी उनका नाम उन सुरीली गायिकाओं में होता है, जिन्होंने लता मंगेशकर के एकाधिकार के दौर में अपनी पहचान बनाई। इसके बावजूद उन्हें वो जगह कभी नहीं मिली, जिसकी वो हकदार थीं। शास्त्रीय गायन की समझ, मधुर आवाज़ और लम्बी रेंज जैसी सभी खासियतों के होते हुए भी सुमन कल्याणपुर को कभी लता मंगेशकर की परछाई से मुक्त नहीं होने दिया गया। करीब तीन दशक के अपने कैरियर में उन्होंने कई भाषाओं में तीन हजार से ज्यादा फिल्मी-गैर फिल्मी गीत-ग़ज़ल गाये। बचपन से सुमन कल्याणपुर की पेंटिंग और संगीत में दिलचस्पी थी। अपने पारिवारिक मित्र और पुणे की प्रभात फिल्म्स के संगीतकार पंडित ‘केशवराव भोले’ से उन्होंने संगीत सीखा। उन्होंने गायन को शौकिया सीखना शुरू किया था। लेकिन, धीरे-धीरे इस तरफ उनकी गंभीरता बढ़ने लगी तो वो विधिवत ‘उस्ताद खान अब्दुल रहमान खान’ और ‘गुरुजी मास्टर नवरंग’ से संगीत की शिक्षा लेने लगीं।

सत्तर के दशक में नये संगीत निर्देशकों और गायिकाओं के आने के साथ ही सुमन कल्याणपुर की व्यस्तताएं कम हो गई। 1981 में बनी फिल्म ‘नसीब’ का ‘रंग जमा के जाएंगे’ उनका आखिरी रिलीज गीत साबित हुआ। सुमन कल्याणपुर को रसरंग (नासिक) का ‘फाल्के पुरस्कार’ (1961), सुर सिंगार संसद का ‘मियां तानसेन पुरस्कार’ (1965 और 1970), ‘महाराष्ट्र राज्य फिल्म पुरस्कार’ (1965 और 1966), ‘गुजरात राज्य फिल्म पुरस्कार’ (1970 से 1973 तक लगातार) जैसे करीब एक दर्जन पुरस्कार मिल चुके हैं। उन्हें मध्यप्रदेश सरकार ने भी वर्ष 2017 के लिए राष्ट्रीय लता मंगेशकर सम्मान दिया। बरसों की गुमनामी के बाद अब उन्हें पद्मश्री दिया जाना एक गलती को सुधारने जैसी बात है।

सब से अधिक पढ़ी गई खबरें

ज़रूर पढ़ें

तोड़ना हर चक्रव्यूह...

तोड़ना हर चक्रव्यूह...

बेहतर जॉब के लिए अवसरों की दस्तक

बेहतर जॉब के लिए अवसरों की दस्तक

नकली माल की बिक्री पर सख्त उपभोक्ता आयोग

नकली माल की बिक्री पर सख्त उपभोक्ता आयोग

सबक ले रचें स्नेहिल रिश्तों का संसार

सबक ले रचें स्नेहिल रिश्तों का संसार

मुख्य समाचार

एलएसी पर मजबूत होगा माेर्चा

एलएसी पर मजबूत होगा माेर्चा

देपसांग, दौलत बेग ओल्डी के लिए 180 दिन में बनेगा कंक्रीट रोड

दवा नदारद बक्सा भारी, ऐसी रोडवेज की लारी

दवा नदारद बक्सा भारी, ऐसी रोडवेज की लारी

रोडवेज बसों में रखे फर्स्ट एड बॉक्स में दवाइयों का टोटा