ज्ञाानेन्द्र रावत
तापमान में दिनोदिन हो रही बढ़ोतरी बेहद चिंता का विषय है। इससे देश के कुछ हिस्सों में हीट वेव जैसे हालात बन रहे हैं, वहीं भारतीय समुद्र पहले के मुकाबले ज्यादा गर्म हो रहा है। इससे मानसून के पहले, मानसून के दौरान और बाद में भीषण बारिश की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है। दरअसल, समुद्र में उठने वाली तेज लू की लहरें भविष्य में इस समस्या को और विकराल बना देंगी। नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक शोध रिपोर्ट के अनुसार 1870 से लेकर अब तक भारतीय समुद्र के औसत तापमान में 1.4 डिग्री की बढ़ोतरी हो चुकी है, जो दूसरे समुद्र के मुकाबले ज्यादा है। दरअसल, समुद्रीय तापमान में बढ़ोतरी से समुद्री हीट वेव में तेजी आ रही है।
असलियत में बारिश की तेजी की घटनाएं गंभीर होती जा रही हैं। इसका सामना देश के 27 राज्य और 75 फीसदी जिले करने को विवश हैं। यह सभी हाॅटस्पाॅट बन चुके हैं। यही नहीं, उनकी तकरीबन 63.8 करोड़ आबादी इस जोखिम का सामना कर रही है। इन राज्यों के 10 में से 8 भारतीय इस जोखिम का सामना करने को अभिशप्त हैं। शोध-अध्ययन के दौरान तकरीबन 30 हजार हीट वेव रिकार्ड की गयीं। रिपोर्ट की मानें तो साल 2000 से पहले कोई भी हीटवेव अमूमन 50 दिनों के भीतर समाप्त हो जाती थी लेकिन 2000 के बाद इसमें बदलाव आया और अब इसका समय बढ़कर 50 के बजाय 250 दिन के करीब हो चुका है जो मानसून पर असर डाल रही हैं।
दरअसल, जब मैदानी क्षेत्रों का तापमान 40 डिग्री को पार कर जाता है तो हीट वेव आती है। पर्वतीय इलाकों में जब तापमान 30 डिग्री हो जाता है, रात का तापमान 40 से अधिक हो और तटीय इलाकों में 37 डिग्री से अधिक होता है तब हीट वेव की स्थिति मानी जाती है। मौसम वैज्ञानिक डाॅ. एसएन पाण्डेय के अनुसार यह खतरनाक स्थिति है। मार्च में भी यही स्थिति रहने का अंदेशा है जो खतरनाक संकेत है। पहाड़ी राज्यों के निचले इलाकों में अधिकतम तापमान वृद्धि की दर 10 से 11 डिग्री दर्ज की गयी है।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन के अनुसार वैश्विक तापमान में वृद्धि अल-नीनो की वापसी की संभावना को बल प्रदान करती है। डब्ल्यूएमओ की मानें तो ला-नीना के तीन सालों तक लगातार सक्रिय रहने के कारण दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में तापमान बढ़ोतरी और बारिश के चक्र में असाधारण रूप से काफी बदलाव आया है। दरअसल ला-नीना भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर की सतह में निम्न हवा के दबाव बनने की स्थिति में बनता है। यह एक प्रतिसागरीय धारा होती है जो पश्चिमी प्रशांत महासागर में तब पैदा होती है जबकि पूर्वी प्रशांत महासागर में अल-नीनो का असर खत्म हो जाता है। ऐसी स्थिति में समुद्र की सतह का तापमान कम हो जाता है। दरअसल, ला-नीना के दौरान उष्णकटिबंधीय प्रशांत द्वारा गर्मी को सोख्ता की तरह सोख लिया जाता है। इससे पानी का तापमान बढ़ता है। यही गर्म पानी अल-नीनो प्रभाव के दौरान पश्चिमी से पूर्वी प्रशांत तक बहता है।
दरअसल, ला-नीना के तीन दौर गुजरने का सीधा मतलब यह है कि गर्म पानी की मात्रा चरम पर है। जहां तक अल-नीनो का सवाल है, यह उष्णकटिबंधीय प्रशांत के भूमध्यीय क्षेत्र के समुद्र के तापमान और वायुमंडलीय परिस्थितियों में होने वाले बदलाव के लिए जिम्मेदार समुद्री घटना है, जिससे समुद्री सतह का तापमान बढ़ जाता है। इसकी मार्च से मई महीने के बीच दक्षिणी दोलन यानी ईएनएसओ में तटस्थ स्थिति में 90 फीसदी आगे बढ़ने की संभावना है। वजह है प्रशांत महासागर क्षेत्र में भारतीय मानसून की दृष्टि से उपयुक्त माने जाने वाले ला-नीना का प्रभाव का खत्म होना है।
नेशनल ओसियन एण्ड एटमास्फेयरिक एडमिनिस्ट्रेशन यानी नोवा के अनुसार ला-नीना का अल-नीनो में रूपांतरण अप्रैल तक चलेगा जो 21वीं सदी में हुई पहली पुनरावृत्ति है। यह अब तक का चलने वाला सबसे लम्बा दौर भी है जिसका तीसरी बार पड़ना एक दुर्लभ और विलक्षण घटना है। इसको ‘ट्रिपिल डिप’ ला-नीना के नाम से भी जानते हैं। इसका असर 1950 से अभी तक केवल दो ही बार 1973 से 1976 और 1998 से 2001 के बीच ही पड़ा है। इस बार इसका असर अप्रैल तक होगा जो 80 फीसदी तक असर डालेगी। मई से जुलाई तक इसमें बढ़ोतरी होगी। इस दौरान देश के 60 फीसदी हिस्से में कम बारिश की आशंका है।
गौरतलब है कि तापमान में बढ़ोतरी और बारिश के चक्र में आये बदलाव के कारण न केवल समुद्र में हलचल बढ़ रही है, सूखे की संभावना बलवती हो रही है। यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन के शोध-अध्ययन में कहा गया है कि जंगल से लेकर समुद्र तक इंसान और जानवरों के बीच संघर्ष जारी है। कारण जलवायु परिवर्तन से हर जीव-जंतु का जीवन प्रभावित हो रहा है। खाने और पानी का संकट भी भयावह रूप लेता जा रहा है। तापमान में बेतहाशा बढ़ोतरी और बारिश में बढ़ता असंतुलन खतरनाक संकेत है जिसका समाधान बेहद जरूरी है।