क्या हाल ही में दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के समक्ष राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और नाराज सचिन पायलट के बीच वास्तव में एकजुट होकर आगे बढ़ने के लिए समझौता हुआ था या फिर सत्ता में वापसी के लिए पार्टी आलाकमान पर आगामी विधानसभा चुनाव की बाध्यता थी।
पार्टी के अंदर और बाहर राजनीतिक खेमे में अस्पष्टता बनी हुई है क्योंकि कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने अनुभवी सीएम और राहुल गांधी के युवा ब्रिगेड नेता पायलट के बीच तय हुए किसी भी फॉर्मूले या समझौते की शर्तों का खुलासा नहीं किया। ये वही पायलट हैं जिन्होंने कांग्रेस पार्टी को राजस्थान में 2018 के चुनाव में कड़ी मेहनत से सत्ता में ला दिया था और उन्हें गहलोत के दबाव में पार्टी आलाकमान द्वारा सिर्फ डिप्टी सीएम पद ही दिया गया था।
दोनों के बीच तमाम बयानबाजी की जंग के बावजूद, राहुल गांधी ने अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान दावा किया था कि दोनों पार्टी के लिए ‘एसेट्स’ हैं। लेकिन यह अभी भी रहस्य है कि पायलट की भविष्य की कार्य सीमा क्या होगी या उन्हें सीएम की योजनाओं के साथ चलने के लिए पीसीसी अध्यक्ष या चुनाव समिति प्रभारी जैसा कोई पद दिया जाएगा?
सरकारी गलियारों में राहत है क्योंकि जयपुर में अपनी जन संघर्ष पद यात्रा के समापन पर उठाई गई तीन मांगों को लेकर पायलट का गहलोत सरकार को दिया गया अल्टीमेटम 30 मई को बिना किसी जोखिम के समाप्त हो गया।
इसके विपरीत पायलट गुट के नेता और समर्थक चुप्पी साधे हैं, लेकिन वे उन तीन मांगों पर बेचैन हैं जो पायलट ने 15 मई को जयपुर में जन संघर्ष यात्रा के समापन पर सार्वजनिक की और गहलोत सरकार को अल्टीमेटम दिया था कि मांगें नहीं मानी गईं तो वे राज्यव्यापी जन संघर्ष करेंगे। जाहिर है इस संक्षिप्त सुलह के बाद गहलोत सरकार प्रतियोगी परीक्षा पेपर लीक मामलों में पीड़ित लाखों छात्रों के नुकसान की भरपाई करने के बारे में नहीं सोचेगी। पायलट की दो अन्य मांगों में भाजपा की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे शासन के दौरान हुए भ्रष्टाचार मामलों और राजस्थान लोक सेवा आयोग को बंद करने और नये सिरे से जांच करने की मांग भी अधर में लटक गई है।
पायलट की गहलोत से नाराजगी और सड़क पर उतर आने पर भी आम लोग सोचते हैं कि पायलट पहले डिप्टी सीएम बने क्यों, बने तो निभाया क्यों नहीं? न निभा पाये तो गहलोत सरकार को झटका देने के लिये कथित रूप से विपक्षी पार्टी से हाथ मिलाने के चक्कर में मानेसर क्यों गए? फिर वापस आते ही बयानबाजी, एक दिन का मौन अनशन और अजमेर से जयपुर की पदयात्रा के बाद सरकार को अल्टीमेटम क्यों दिया, और दिया तो फिर से ‘यू टर्न’ क्यों किया। यानी समझौता-दर-समझौता।
महंगाई राहत कैंप के तहत गहलोत के दस प्रमुख कदमों, 6.9 करोड़ लाभार्थियों को गारंटी कार्ड सौंपने और अब तक करीब 1.35 करोड़ परिवारों को इन योजनाओं का सीधा लाभ देने से पार्टी आलाकमान को वास्तव में पायलट के अल्टीमेटम की अनदेखी को मजबूर होना पड़ा है क्योंकि कांग्रेस इस साल दिसंबर में लगातार दोबारा सत्ता में वापसी करना चाहती है।
यह भी कि लाखों कर्मचारियों को लाभान्वित करने वाली ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) के कार्यान्वयन को लेकर गहलोत का कदम सही सिद्ध हुआ और कांग्रेस ने इस मुद्दे पर हिमाचल और कर्नाटक विधानसभा चुनाव भी जीते। सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर प्रवर्तन निदेशालय के छापे और पूछताछ के दौरान गहलोत ने उन्हें दिल्ली जाकर सक्रिय समर्थन दिया था। इससे हाईकमान का मनोबल ऊंचा रखने में मदद मिली।
बहरहाल, समझौते की सफलता पर मुख्यमंत्री गहलोत ने दिल्ली में मीडिया से कहा, ‘अगर वह (सचिन पायलट) पार्टी में हैं तो साथ काम क्यों नहीं करेंगे। जिसके पास धैर्य है, पार्टी उसे मौका देगी।’ जब गहलोत से पूछा गया कि क्या उन्हें यकीन है कि पायलट उनके साथ काम करेंगे और उनकी भूमिका क्या होगी, तो गहलोत ने जवाब दिया कि यह भूमिका आलाकमान की है। मेरे लिए पद मायने नहीं रखता। तीन बार मुख्यमंत्री रह चुका हूं। मैंने काम करने में कसर नहीं छोड़ी। मेरा कर्तव्य है, मुझे उस दिशा में काम करना चाहिए कि सरकार कैसे दोहराएं, आलाकमान भी यही चाहता है। मैंने जनता के लिए कई योजनाएं बनाई हैं।’ वहीं समझौते से ठीक पहले पायलट की पेपर लीक मामले में पीड़ित छात्रों को मुआवजा देने की मांग को अतार्किक करार दिया था।
प्रतिशोध की चाल में, सचिन पायलट को चित्रित करने वाले एक पोस्टर में लिखा है: ‘सिर्फ एक बंदा काफी है। भ्रष्टाचार की जड़ को हिला देने के लिए, उसके खिलाफ आवाज उठाने के लिए एक व्यक्ति ही काफी है।’ दरअसल यह पोस्टर आलाकमान को चुनौती थी जिसके चलते उन्हें 30 मई से पहले सुलह की राह तलाशनी पड़ी।
यूं भी 2018 के बाद से गहलोत और पायलट के बीच हर समझौते के बाद कांग्रेस ने एक ग्रुप पिक्चर जारी की, जिसमें वे दोनों राहुल या वेणुगोपाल के साथ शुभचिंतकों के लिए हाथ हिला रहे थे। एकजुटता दिखाने वाली ऐसी तस्वीरें ज्यादा दिन नहीं चल पाईं और दिसंबर 2018, अगस्त 2020 और नवंबर 2022 के समझौतों के बाद 3 बार ये करार कड़वाहट में बदल गया। जनता और नेताओं के मन में सवालों के साथ, यह अनुमान लगाया गया है कि दोनों के साथ कांग्रेस आलाकमान की 29 मई, 2023 का समझौता राजस्थान विधानसभा चुनाव खत्म होने तक चलेगा।