लक्ष्मीकांता चावला
वर्ष 2020 के अंतिम दिनों में कोरोना पर कमोबेश भारत ने नियंत्रण कर लिया था। कोरोना की प्रतिरोधक वैक्सीन भी देश ने तैयार कर ली। गत 16 जनवरी, 2021 से वैक्सीन का नागरिकों ने बड़े गर्व से उपयोग भी प्रारंभ कर दिया। मानव धर्म को मानने वाले भारत ने अपने पड़ोसी देशों सहित सत्तर देशों को वैक्सीन भी दी और अभी-अभी प्रधानमंत्री बांग्लादेश की यात्रा पर जब गए तो 12 लाख डोज वैक्सीन का उपहार देकर आए। देश के नागरिकों ने पहले तो धीमी गति से पर अब पूरी तरह से वैक्सीनेशन का सदुपयोग शुरू कर दिया है, पर अब भी लगभग आठ करोड़ लोगों ने ही वैक्सीन लगवाई है जो भारत की जनसंख्या के हिसाब से बहुत थोड़ी है। सरकार ने अब 45 वर्ष की आयु के ऊपर के सभी नागरिकों के लिए वैक्सीन लेने की अनुमति दे दी है।
यह बहुत चिंताजनक और दुर्भाग्यपूर्ण है कि अब देश के कुछ प्रांतों में दूसरी और कुछ में तीसरी कोरोना की लहर बहुत तेजी से फैल रही है। भारत के 11 प्रांत इससे बहुत ज्यादा प्रभावित हैं, लेकिन महाराष्ट्र, पंजाब और छत्तीसगढ़ की हालत सबसे बुरी है, यद्यपि मध्य प्रदेश, दिल्ली, गुजरात आदि में भी स्थिति चिंताजनक है। कुछ प्रदेशों में तो रात का कर्फ्यू लग रहा है। कहीं-कहीं लाॅकडाउन भी लगा दिया गया है।
अब प्रश्न यह उठता है कि बहुत मेहनत के बाद लाॅकडाउन की पीड़ा, बेकारी और मंदी से निकलने के बाद जब कोरोना की गति कम हुई तो एकदम संक्रमण कैसे बढ़ गया? अब तो इसका उत्तर इतना मिल रहा है, जिसे कोई भी जान सकता है। कोरोना के भयानक दिनों में भी असंख्य लोग ऐसे थे, जिन्होंने न मास्क लगाए, न सामाजिक दूरी रखी और न ही उन नियमों का पालन किया जो कोरोना से बचने के लिए बहुत जरूरी थे। गत 26 जनवरी को जब अमृतसर में गणतंत्र दिवस पर ध्वजारोहण कार्यक्रम चल रहा था तब मंच पर नब्बे प्रतिशत से ज्यादा और पंडाल में उपस्थित जनसमुदाय का एक बड़ा वर्ग बिना मास्क के था। मैंने उसी समय पुलिस प्रमुख से यह निवेदन किया कि मंच पर जितने लोग बिना मास्क और एक-दूसरे के नजदीक बैठे थे, उनके चालान किए जाएं। जब राह चलते किसी भी स्कूटर, कार सवार को रोक कर चालान कर हजारों रुपये जुर्माना लगाया जा रहा है तो मंच पर आसीन वीआईपी इस दंड से मुक्त क्यों? ऐसा हुआ भी नहीं, आज भी नहीं हो रहा।
अब नयी स्थिति देखिए। भारत में एक बार फिर कुल कोरोना के रोगियों की संख्या सवा करोड़ के लगभग हो गई है और एक्टिव मामलों की संख्या छह लाख से ज्यादा है। संभवतः भारत के जो आमजन और नेतागण कोरोना के नियमों का पालन नहीं करते, उन्हें या तो ज्ञान नहीं या चिंता नहीं कि देश में एक लाख 65 हजार से ज्यादा लोग इस बीमारी के कारण मौत के मुंह में जा रहे हैं। आज का प्रश्न यह है कि क्या इस बीमारी के बहुत गति से फैलने का कारण हमारे देश के वे राजनेता तो नहीं जो आगामी चुनावों को लक्ष्य बनाकर बड़े जलसे करते हैं, जुलूस निकालते हैं और रैलियां करते हैं।
पंजाब में पिछले एक सप्ताह से बड़े जोर-शोर से चुनावी रैलियों जैसा ही वातावरण बना है। चुनावी संग्राम में कूदने के लिए बड़े-बड़े जनसमूह इकट्ठे किए गए। जुलूस निकला, नारे लगे, मंच से गर्मागर्म भाषण हुए, पर नहीं दिखाई दिया कोई भी ऐसा प्रयास, जिससे कोरोना को रोका जा सके। देश के पांच प्रांतों केरल, तमिलनाडु, असम, बंगाल और पुड्डुचेरी में जहां चुनाव अभियान चले, वहां तो किसी को याद भी नहीं कि देश की एक बहुत बड़ी जनसंख्या कोरोना के कहर से पीड़ित है। वहां भाषण करने वाले नेता भारत सरकार के मंत्रियों समेत कोई यह आदेश या संदेश नहीं देता कि दवाई भी कड़ाई भी, क्योंकि वहां कड़ाई नहीं, केवल वोटों की लड़ाई है।
देश में हजारों कोरोना संक्रमित अस्पतालों में जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहे हैं। प्राइवेट अस्पतालों में उपचार करवाने वालों की बड़ी बेरहमी से जेब खाली हो रही है। आयुष्मान जैसी जनहित योजना भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई। रोगी की जगह उन चिकित्सकों को ज्यादा फायदा हो गया जो यह ढंग सीख गए कि इसमें भी कैसे भ्रष्ट साधन अपनाए जा सकते हैं। जितने भी बड़े नेता कोरोना पाॅजिटिव होते हैं, वे तो देश के प्रसिद्ध नर्सिंग होम और अस्पतालों में उपचार के लिए पहुंचते हैं, क्योंकि उनका खर्च सरकारी कोष से होना है।
हर रोज समाचार पत्रों में यह आंकड़े गिनाए जाते हैं कि कितने चालान बिना मास्क पहने लोगों के किए गए लेकिन एक भी ऐसा समाचार नहीं मिला कि रैलियां करने वाले नेताओं पर कोई केस बनाया गया हो। दूसरा प्रश्न यह है कि हमारी पुलिस और प्रशासन बड़े-बड़े नेताओं को देखकर आगे बढ़कर उन्हें रोकने और कानून का पालन करवाने का साहस क्यों नहीं करता? प्रधानमंत्री बार-बार कहते हैं दवाई भी कड़ाई भी। भारत सरकार के स्वास्थ्य सचिव और गृह सचिव भी कह रहे हैं कि सरकार संभले, लोग संभलें पर कोई यह नहीं कहता कि इन नेताओं को कैसे संभालना है।