विनय मोघे
उस दिन जब मैंने चिराग को घिसा तब उसमें से एकदम से जिन्न ने बाहर आकर ‘जो हुक्म मेरे आका’ नहीं कहा बल्कि पहले उसने धीरे से अपनी मुंडी बाहर निकाली। इधर-उधर देखा कहीं कोई भीड़-भाड़ तो नहीं है। धीरे-धीरे करके वो बाहर आया। इस बार उसके मुंह पर मास्क था। हाथ में ग्लव्स थे। जेब में सैनिटाइजर की बोतल थी। बगल में फुटपट्टी थी शायद दो गज की दूरी मापने के लिए होगी। उसने कहा ‘जो हुक्म देना है जल्दी दो मेरे आका। मैं ज्यादा देर तक यहां नहीं रह सकता। यहां मेरी जान को खतरा है।’ मैंने कहा ‘घबराने की कोई जरूरत नहीं है। अब कोरोना का खतरा कम है। फिर भी मैं तुम्हें जल्दी ही फ्री कर दूंगा। एक काम करो मेरे लिए एक लेटेस्ट कार हाजिर करो।’ ‘जो हुक्म मेरे आका’ कह कर वह गायब हो गया। कुछ ही देर में एक लेटेस्ट कार के साथ प्रकट हुआ। ‘क्या अब मैं वापस जा सकता हूं।’ उसने पूछा। मैंने कहा, ‘नहीं थोड़ी देर रुको।’
मैं कार में बैठ कर उसे स्टार्ट करने लगा कि चलो एक टेस्ट ड्राइव हो जाए। पर कार स्टार्ट नहीं हो रही थी। मैं परेशान हुआ कि नई नवेली कार भी चालू क्यों नहीं हो रही है। मेरी परेशानी देख कर उसने कहा ‘यह कार चालू नहीं होगी क्योंकि इसमें पेट्रोल नहीं है।’ यह सुनकर मैं उस पर नाराज होने लगा। यह क्या बात हुई। कार में पेट्रोल क्यों नहीं है। उसने कहा ‘पेट्रोल भरवाना अब हम जिन्नों के बस का भी नहीं रहा। हम कार तो प्रोवाइड कर सकते हैं। पर पेट्रोल नहीं। पेट्रोल आप को अपने पैसों से ही भरवाना पड़ेगा।’ मैंने माथा पकड़ लिया।
‘क्या अब मैं जा सकता हूं?’ उसने पूछा। मैंने कहा, ‘नहीं। एक काम करो मुझे भूख लग रही है। मेरे लिए एक लजीज सब्जी और रोटी का इंतजाम करो।’ ‘जो हुक्म मेरे आका’ कहकर वह गायब हो गया। कुछ देर बाद एक थैले में सब्जी लेकर आया। सब्जियां ताजी थी पर कच्ची थीं। मैंने कहा ‘यह क्या है। मैंने तो तुम्हें बनी बनाई सब्जी लाने के लिए कहा था। तुम तो कच्ची सब्जी उठा लाये।’ उसने कहा ‘क्षमा करे मेरे आका। पर खाने का तेल लाने की हिम्मत तो हम में भी नहीं है। इसे बनाने के लिए तेल का जुगाड़ तो आपको ही करना पड़ेगा।’ मैं फिर नाराज हुआ। उसने पूछा, ‘क्या अब मैं वापस जा सकता हूं।’
मैंने कहा ‘रुको। मुझे शादी करनी है। मेरे लिए सुशील कन्या ढूंढ़ कर लाओ जो अच्छा खाना बना सके।’ ‘जो हुक्म मेरे आका’ कहकर वह गायब हो गया। कुछ देर बाद खाली हाथ लौटा। मैंने पूछा ‘क्या हुआ’ उसने कहा ‘मेरे आका कन्याएं तो बहुत हैं। उनमें से कुछ सुशील भी हैं। पर अच्छा खाना बनाने वाली कोई नहीं मिली। आजकल की कन्याएं घर में खाना नहीं बनाती है। वे स्विगी जोमैटो से अपनी मनपसंद चीजें मंगवाकर खाती हैं।’
मैंने सोचा ये जिन्न भी अब ज्यादा काम के नहीं रहे। इस चिराग को फिर टांड पर रख दिया जाए। जैसे ही मैंने चिराग रखने के लिए ऊपर हाथ बढ़ाया, सपने से निकल कर धम्म से बिस्तर से नीचे गिर पड़ा।