भूख से मुकाबले के साथ जलती शिक्षा की लौ
अक्षय पात्र का भूखे, बेसहारा, गरीब, बेघर बुजुर्ग माताओं, आंगनबाड़ी और स्कूली बच्चों की भूख मिटाने को 2000 में शुरू हुआ संकल्प आज चौथाई सदी की यात्रा पूरी कर चुका है। जो सोलह राज्यों और तीन केंद्रशासित प्रदेशों के करीब 24 लाख बच्चों को स्कूलों में भोजन करा रहा है।
महाभारत की एक कथा के अनुसार जब वनवास के दौरान पांडव सूर्य की उपासना करते हैं। सूर्य देव प्रसन्न होकर युधिष्ठिर को अक्षय पात्र देते हैं, जिसका भोजन कभी खत्म ही नहीं होता। इस्कॉन का अक्षय पात्र भी पांडवों के अक्षय पात्र की तरह हो गया है—भूखे, बेसहारा, गरीब, बेघर बुजुर्ग माताओं, आंगनबाड़ी और स्कूली बच्चों की भूख मिटाने का आज यह बड़ा सहारा बन गया है। साल 2000 में शुरू हुआ यह संकल्प आज चौथाई सदी की यात्रा पूरी कर चुका है।
अक्षय पात्र सोलह राज्यों और तीन केंद्रशासित प्रदेशों के करीब 24 लाख बच्चों को नियमित रूप से उनके स्कूलों में भोजन करा रहा है। साल 2001 में सर्वोच्च न्यायालय ने स्कूली बच्चों को मध्याह्न भोजन योजना लागू करने का आदेश दिया। देश की सर्वोच्च अदालत में दायर एक जनहित याचिका में कहा गया था कि खाद्य निगम के गोदामों में काफी मात्रा में अन्न सड़ जाता है। उस अन्न के जरिए मध्याह्न भोजन योजना लागू की जा सकती है। सर्वोच्च न्यायालय को यह तर्क जंचा और उसके ही आदेश पर समूचे देश के स्कूलों में दोपहर में बना हुआ भोजन देना जरूरी कर दिया गया। इसके पहले केंद्र की नरसिंह राव सरकार ने 15 अगस्त, 1995 को राष्ट्रीय पोषण योजना के तहत चुने हुए ब्लॉकों में शुरुआत की थी, जिसके तहत स्कूली बच्चों को मध्याह्न भोजन मुहैया कराना शुरू हुआ। बाद में इसके तहत बच्चों को मुफ्त चावल दिया जाने लगा। अक्षय पात्र फाउंडेशन की शुरुआत के पीछे अंतरराष्ट्रीय श्रीकृष्ण भावनामृत संघ यानी इस्कॉन के संस्थापक स्वामी प्रभुपाद का भी एक संकल्प कार्य कर रहा है। स्वामी प्रभुपाद पश्चिम बंगाल के मायापुर में भगवान कृष्ण के भजन में लीन रहते थे। एक बार उन्होंने अपनी खिड़की से देखा, कूड़े में फेंके गए भोजन को लेकर कुत्ते और कुछ बच्चों में खींचतान चल रही थी। यह कारुणिक दृश्य देखकर प्रभुपाद परेशान हो गए। उन्होंने तब संकल्प लिया कि वे ऐसी व्यवस्था करेंगे, जिसकी वजह से उनके आसपास कोई भूखा रहने को मजबूर न हो सके। इस्कॉन के मंदिरों में यह व्यवस्था अहर्निश अब तक जारी है।
बहरहाल, दीन-दुखियों, बच्चों, विधवा और बुजुर्ग महिलाओं एवं पुरुषों, स्कूली बच्चों और आंगनबाड़ी में आने वाले बच्चों को भोजन मुहैया कराने के लिए इस्कॉन से जुड़े दो संतों ने अक्षय पात्र की स्थापना 2000 में कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू में की। इस्कॉन से जुड़े मधु पंडित दास और चंचलापति दास ने मिलकर अक्षय पात्र फाउंडेशन की स्थापना की। पहले साल इस योजना के तहत बेंगलुरू के पांच स्कूलों के 1,500 बच्चों को भोजन उपलब्ध कराया गया। तब से फाउंडेशन कार्य कर रहा है।
अक्षय पात्र योजना का उद्देश्य कुपोषित बच्चों को भोजन मुहैया कराना और उन्हें शिक्षा हासिल करने में सहयोगी बनना है। कालांतर में संस्था का विस्तार तेजी से हुआ। अक्षय पात्र के जरिए अब तक चार अरब से ज्यादा थालियां खिलाई जा चुकी हैं। अक्षय पात्र की पहुंच आज 23,978 से अधिक स्कूलों तक हो गई है। इस साल मार्च में अक्षय पात्र ने अपना 78वां रसोईघर स्थापित किया।
अक्षय पात्र फाउंडेशन दान दाताओं से मिले सहयोग पर भी निर्भर है। अक्षय पात्र ने न सिर्फ भोजन की गुणवत्ता बेहतर बनाए रखी है, बल्कि पौष्टिकता और पोषण का भी ध्यान रखा है। उसके पास जो 78 रसोईघर हैं, वे पूरी तरह मशीनीकृत हैं। उनमें स्वच्छता का पूरा ध्यान रखा जाता है। सैकड़ों लोगों द्वारा तैयार भोजन को स्कूलों और आंगनबाड़ियों को पूरी तरह एयर कंडिशंड व्यवस्था में भेजा जाता है। भोजन में तेल, सब्जी, आटा, दाल, चावल, मसाले आदि जिस भी चीज का इस्तेमाल होता है, उनकी गुणवत्ता का पूरा ध्यान रखा जाता है। इतना ही नहीं, भोजन का मेन्यू भी एक ही नहीं होता। भोजन मेन्यू रोजाना अलग-अलग होता है।
संस्था का मकसद उद्देश्य पौष्टिक और गुणवत्ता युक्त भोजन मुहैया कराकर स्कूली बच्चों की सेहत का ध्यान तो रखना ही है, उनकी पढ़ाई की गुणवत्ता को निर्बाध रखना है। अध्ययन बताते हैं कि दोपहर का भोजन मिलने के बाद स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या में गिरावट आई है।
साल 2003 में अक्षय पात्र फाउंडेशन को मध्याह्न भोजन योजना का भागीदार बनाया गया। इसी साल पहली बार फाउंडेशन ने कर्नाटक सरकार के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया। इसके बाद कर्नाटक के हुबली, मैसूर और मंगलुरु के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के वृंदावन और राजस्थान के जयपुर जैसे अन्य स्थानों पर भी और अधिक रसोइयां स्थापित की गईं। इसी साल अगस्त में रेल गाड़ियों और स्टेशनों पर भोजन आदि की व्यवस्था करने वाले रेलवे के आईआरसीसीटी के साथ अक्षय पात्र ने समझौता किया है। इसके तहत चुनींदा स्टेशनों और रूटों पर रेल यात्रियों को अक्षय पात्र की थाली मिलने लगी है। निस्संदेह अगर दानदाता आगे आते रहे तो दूसरे इलाकों में भी स्कूली और आंगनबाड़ी के बच्चों को भी भोजन मुहैया कराया जा सकता है।
