होकर खिन्न निकला ईवीएम का जिन्न
‘मतपत्र कहां से लाऊं, आका? ईवीएम में तो ठप्पा होता नहीं। आप चाहें तो एक नया सिस्टम बनवा दूं — बटन दबाते ही वोट खुद समझ जाए किधर जाना है।’
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से अचानक धुएं का गुबार निकलने लगा। देखते ही देखते वह एक इंसानी आकृति में बदल गया। गोल-मटोल चेहरा, मोतियों जैसी चमकती दो आंखें, सफाचट खोपड़ी पर लंबी चुटिया और चेहरे पर तनी हुई मूंछें।
भारी-भरकम आवाज़ में उसने कहा—‘क्या हुक्म है, मेरे आका!’
नेता जी की आंखें फटी की फटी रह गईं। कुर्सी से आधे उठते हुए उन्होंने पूछा— ‘क-कौन हो तुम?’
‘मैं हूं आपका गुलाम, मेरे आका... जिन्न!’
‘जिन्न?’
‘जी हां, ईवीएम मशीन का जिन्न!’
नेता जी ने लंबी सांस ली— ‘अरे, अलादीन के चिराग का जिन्न तो सुना था, मगर ईवीएम का जिन्न पहली बार देखा?’
जिन्न मुस्कराया—‘हुज़ूर, अब ज़माना बदल गया है। इंटरनेट का दौर है। कोई चिराग जलाता ही नहीं। सब जगह बिजली है, सरकार चौबीस घंटे बिजली देने का दावा करती है। अब चिराग बचे नहीं और हमारी दुनिया भी नहीं रही। पांच साल से इस गोदाम में बंद मशीन के भीतर सो रहा था। आप लोगों ने बटन दबा-दबा कर इतनी आवाज़ की कि मेरी नींद खुल गई। आंख खुली तो सामने आप थे—तो अब मैं आपका गुलाम।’
नेता जी संभलते हुए बोले— ‘तो तुम भी अलादीन के जिन्न की तरह मेरे लिए कुछ भी कर सकते हो?’
‘हुक्म दीजिए, मेरे आका’, जिन्न बोला।’
नेता जी की आंखें चमक उठीं—‘अच्छा, बताओ, इस चुनाव में मैं जीत जाऊंगा न?’
जिन्न ने सिर खुजाया—‘आका, मैं भविष्य नहीं बता सकता।’
‘अभी तो तुम हुक्म मानने की बात कह रहे थे!’
‘वो तो कह रहा हूं, आका— हुक्म मानने की, भविष्य बताने की नहीं।’
नेता जी ने कुर्सी के हत्थे पर हाथ मारा—‘तो फिर इस मशीन में पड़े सारे वोट मेरे पक्ष में कर दो।’
जिन्न ने शांति से कहा— ‘आका, मशीन में वोट हैं ही नहीं। मैं कैसे करूं?’
‘क्या मतलब—वोट नहीं हैं!’ नेता जी का चेहरा लाल हो गया।
‘जी, मैंने कोई वोट गिरते नहीं देखा। बस आवाज़ें सुनी—पीं... पीं... पीं... और मेरी नींद टूट गई।’
नेता जी का माथा घूम गया— ‘वही तो वोट हैं, बेवकूफ! वही बीप की आवाज़ें!’
‘तो मैं क्या करूं, आका? मैं तो नींद में था। —मगर बिना सबूत मैं क्या बदलूं?’
‘मतपत्र दिखा, ठप्पा लगवाना है!’ नेता जी झल्लाए।
‘मतपत्र कहां से लाऊं, आका? ईवीएम में तो ठप्पा होता नहीं। आप चाहें तो एक नया सिस्टम बनवा दूं — बटन दबाते ही वोट खुद समझ जाए किधर जाना है।’
नेता जी की आंखों में चमक लौट आई—‘हां, वही करो!’
‘आका, गुलामी भी एक मर्यादा में अच्छी लगती है’, जिन्न ने नम्रता से कहा।
नेता जी कुर्सी से उठे और पसीना पोंछते हुए बोले—‘भाग जा यहां से, निकम्मे, किसी काम के नहीं।’
जिन्न ने सिर झुकाया— ‘आपका हुक्म, आका।’
इतना कहकर वह धीरे-धीरे धुएं में बदलता हुआ फिर मशीन में समा गया।
