राजकुमार सिंह
सुशांत सिंह राजपूत के दुखांत का असली सच कभी सामने आयेगा या नहीं—दावे से नहीं कहा जा सकता। 14 जून, 2020 को एक होनहार फिल्मी कलाकार की आत्महत्या की खबर से शुरू हुए इस प्रकरण ने अब तक इतने नाटकीय मोड़ ले लिये हैं कि हर किसी की सच की परिभाषा भी अलग-अलग हो सकती है। खुद सुशांत के परिजनों ने शुरू में शक जताया था कि उसे आत्महत्या के लिए उकसाया गया होगा, लेकिन जांच के सवाल पर मुंबई पुलिस बनाम सीबीआई की लंबी जंग में मामला आत्महत्या बनाम हत्या का बन गया। शुरू में जो मामला प्यार, धोखा, दरकती महत्वाकांक्षाओं से उपजी हताशा और तनाव के चक्रव्यूह का नजर आ रहा था, उसके तार अब बॉलीवुड और ड्रग्स के नेटवर्क से जुड़ रहे हैं—और संदेह के घेरे में तो सब हैं, बड़े-बड़े स्टार से लेकर सत्ता गलियारों के खिलाड़ियों तक। कई बार तो ऐसा लगता है कि कोई सस्पेंस, थ्रिलर फिल्म चल रही हो, पर हमारे समय का कड़वा सच यही है कि हम एक कठोर, दुखद वास्तविकता से रूबरू हैं, और शर्मसार भी।
बिहार की राजधानी पटना के एक मध्यवर्गीय परिवार से आने वाले सुशांत ने इंजीनियरिंग के अच्छे-खासे करिअर से मुंह मोड़ कर बॉलीवुड का रास्ता चुना था। सुशांत की मौत के बाद बॉलीवुड में जिस भाई-भतीजावाद की बहुत चर्चा हुई, वह कब से है और कितना है, यह लंबी बहस का विषय हो सकता है, लेकिन यह तो सच है कि भविष्य को लेकर कई तरह के सपने संजोये मुंबई पहुंचे इस बिहारी युवा का सफर आसान नहीं रहा। हीरो के साथ नाचने वाले बैक स्टेज डांसरों की भीड़ में इक्का-दुक्का ही अपनी अलग पहचान बना पाते हैं। बेशक इसका श्रेय कड़ी मेहनत के साथ-साथ किस्मत को भी देना पड़ेगा कि टीवी सीरियलों के रास्ते फिल्मों में आये सुशांत न सिर्फ अपनी अलग पहचान बना पाये, बल्कि एक अच्छे अभिनेता के रूप में छाप भी छोड़ पाये। सवाल यह नहीं है कि सुशांत की फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर कितना बिजनेस किया, यह ज्यादा महत्वपूर्ण है कि ‘काय पो छे’ से लेकर ‘छिछोरे’ तक कमोबेश हर फिल्म में उन्होंने अपने अभिनय की छाप छोड़ी।
फिर भी क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है कि उन्हें लेकर कई बड़े बैनरों की फिल्मों की घोषणा तो हुई, पर वह सिरे नहीं चढ़ी। बड़े-बड़े सपने दिखाकर उन्हें तोड़ देने वाले कौन थे? महत्वाकांक्षी युवाओं के सपनों से खेलना मायानगरी का चरित्र ही है या उसके पीछे वे निहित स्वार्थी चेहरे थे, जो येन केन प्रकारेण चमक-दमक की दुनिया का बादशाह, शहंशाह और सुल्तान बने रहना चाहते हैं? ध्यान रहे कि बॉलीवुड में शह-मात और घात-प्रतिघात के खेल की खबरें पहले भी आती रही हैं। अपने समय की चर्चित हीरोइन परबीन बॉबी से लेकर प्रत्यूषा बनर्जी और कुशाल पंजाबी तक आत्महत्या करने वाले संभावनाशील कलाकारों की फेहरिस्त भी बहुत लंबी है, लेकिन सुशांत के दुखांत से पहली बार बॉलीवुड की चकाचौंध के पीछे के डरावने अंधेरे की परतें खुलती नजर आ रही हैं। पल भर में बदल जाते हैं रिश्ते—यह किसी धारावाहिक में अक्सर सुनायी पड़ने वाले गीत की पंक्तियां ही नहीं हैं, फिल्मी दुनिया के असली रिश्तों का सच भी यही है।
अपवाद हो सकते हैं, पर माफ करें फिल्मी दुनिया की प्रेम कहानियों से तो यही लगता है कि मानो रिश्ते भी फिल्म या सीरियल की तरह एक के बाद दूसरे की राह पर बदलते रहते हैं। फिर आश्चर्य कैसा कि इन रिश्तों का आधार आत्मिक मिलन तो दूर, वैचारिक मेल भी नहीं होता। होता है तो बस तात्कालिक जरूरतों और करिअर का गणित, जो स्वाभाविक ही समय के साथ बदलता रहता है। सुशांत की अंतिम प्रेमिका रिया चक्रवर्ती के दोषी-निर्दोष होने का अंतिम फैसला तो अदालत में ही होगा, लेकिन मीडिया ट्रायल में होने वाले खुलासों से तो उनकी छवि खलनायिका की ही उभरी है। खासकर इलेक्ट्रोनिक मीडिया में जारी गलाकाट स्पर्धा के मद्देनजर खुलासों में अतिरंजना संभव है, लेकिन जिस तरह कड़ियां जुड़ रही हैं या जोड़ी जा रही हैं, उन्हें पूरी तरह काल्पनिक भी करार नहीं दिया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट द्वारा सीबीआई को सौंपे जाने के बाद सुशांत केस की जांच की दशा-दिशा जिस तरह से एकदम बदलती दिख रही है, वह उस मुंबई पुलिस की कार्यप्रणाली पर भी बड़ा प्रश्नचिन्ह है, जिसकी तुलना अपने देश में स्कॉटलैंडयार्ड की पुलिस से की जाती रही है।
मुंबई पुलिस सुशांत की मौत को आत्महत्या मानते हुए तमाम संबंधित लोगों को बुलाकर पूछताछ करती रही, लेकिन सीबीआई ने इसे हत्या के नजरिये से देखते हुए जांच शुरू की, फिर संदिग्धों की चैट से सुराग मिला कि इसमें सबसे खतरनाक एंगल ड्रग्स का है। यह हैरत की बात है कि हत्या और ड्रग्स के एंगल की ओर सबसे पहले इशारा चर्चित भाजपा सांसद डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने किया तो सुशांत की मौत को बॉलीवुड में फैले भाई-भतीजावाद का परिणाम बताते हुए विवादास्पद अभिनेत्री कंगना रनौत ने भी ड्रग्स रैकेट की जांच की मांग की। कंगना ने 99 प्रतिशत फिल्मकारों द्वारा ड्रग्स लेने की बात कही है। यह आंकड़ा अतिरंजित हो सकता है, लेकिन एक चर्चित अभिनेत्री के इस दावे से यह तो पता चलता ही है कि परदे के नायक वास्तविक जिंदगी में कैसा खलनायक-जीवन जीते हैं। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की जांच और पूछताछ में अभी तक मिले तथ्य भी किसी बड़े और सुनियोजित ड्रग्स नेटवर्क की ओर इशारा कर रहे हैं, जो पुलिस-प्रशासन की मिलीभगत के बिना तो चल ही नहीं सकता, राजनीतिक संरक्षण का भी शक होता है। सुशांत के दुखांत से ही सही, जब बॉलीवुड से जुड़े नशे के कारोबार का खुलासा हो रहा है तो जांच और कार्रवाई तार्किक परिणति तक पहुंचनी चाहिए। कभी अंडरवर्ल्ड से रिश्तों के लिए बदनाम रहे बॉलीवुड ने जितने युवाओं के सपनों को साकार किया है, उससे कई गुणा को गुमनामी और बर्बादी के अंधेरे में धकेला है। हर कोई संजय दत्त जितना खुशनसीब नहीं होता कि अंडरवर्ल्ड और नशे के दलदल से भी वापस लौट कर करिअर में दूसरी-तीसरी पारी खेल पाये। हाल के दशकों में जरूर बॉलीवुड में अंडरवर्ल्ड का दबदबा कम हुआ है, वरना तो बड़े-बड़े सितारे सरगनाओं के दरबार की शोभा बढ़ाते रहे हैं।
सीबीआई को जांच सौंपे जाने के सवाल पर और उसके बाद भी, एक युवा फिल्मी कलाकार की दुखद मौत पर जिस तरह खुल कर राजनीति हो रही है, वह बताती है कि विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र कैसे–कैसे राजनेताओं के हाथों का खिलौना बना हुआ है। विधानसभा चुनाव बिहार में होने हैं, और राजनीति एक अभिनेता के मुंबई में दुखांत पर की जा रही है। बेशक इस सारे खेल की पृष्ठभूमि में कहीं-न-कहीं महाराष्ट्र की सत्ता का गणित भी हो सकता है, जहां सबसे बड़े दल भाजपा की पुरानी मित्र शिवसेना ने कांग्रेस-एनसीपी के साथ नया गठबंधन करते हुए सरकार बना ली। संसदीय लोकतंत्र में सत्ता तंत्र की कमान राजनीतिक नेतृत्व के हाथ होती है। इसलिए हर मामले में राजनीति होने की गुंजाइश रहती ही है, लेकिन नहीं भूलना चाहिए कि सार्वजनिक जीवन में जिम्मेदारी-जवाबदेही से नहीं बचा जा सकता। हत्या और ड्रग्स जैसे जघन्य अपराधों में अगर राजनीति की छाया भी नजर आयी तो राजनेताओं की साख रसातल में जाने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा।
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